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Awadhi Sahitya-Kosh

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घानु
यह विवाह के लगभग एक सप्ताह पूर्व होने वाला संस्कार है। इसमें गेहूँ, चावल आदि खाद्य - सामग्री को साफ सुथरा करने हेतु कार्य का शुभारम्भ किया जाता है। स्त्रियों द्वारा इस संस्कार में गीत विशेष रूप से गाये जाते हैं। इस गीत के साथ वाद्ययंत्र नहीं बजता।

घूरूप्रसाद किसान
इनका जन्म ग्राम कुसुंभी, जिला उन्नाव में चैत्र पूर्णिमा सं. १९८७ वि. में हुआ। विषम परिस्थितियों में रहकर सामान्य शिक्षा ही प्राप्त कर सके। जीविकोपार्जन का साधन इन्होंने कृषि कर्म को बनाया, साथ ही लोकगीत शैली में अवधी कविताएँ लिखनी शुरू कर दीं। ‘बरसाति’ एवं ‘फकनहा मेला’ इनकी प्रसिद्ध कविताएँ हैं। इनकी कविताओं में अवधी, विशेषतः बैसवारी संस्कृति मुखरित हुई है। ग्राम्य जीवन की दुर्दशा पर भी कवि-दृष्टि गई है। साथ ही राष्ट्रीय नियोजन एवं नगरीकरण के बढ़ते प्रभाव से ग्राम्य विघटन पर भी प्रकाश डाला गया है।

चंद्रशेखर मिश्र ‘चण्डूल’
चण्डूल जी आधुनिक अवधी काव्य की हास्य-व्यंग्य-परम्परा में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। इनका परिचयात्मक विवरण अप्राप्त है।

चकल्लस
यह बलभद्र प्रसाद दीक्षित ‘पढ़ीस’ जी की श्रेष्ठ अवधी काव्य कृति है। इसमें तुकान्त, अतुकान्त लगभग ३७ कविताओं का संग्रह है, जिसका प्रकाशन सन् १९३३ में हुआ है। यह काव्य कृति अनेक दृष्टियों से महिमामण्डित है। इस संग्रह में अवध के जनजीवन की मर्मच्छवियाँ अंकित हैं। कविताओं में जनवादी चेतना का प्रखर स्वर है, साथ ही अनुभूति की प्रगाढ़ता और सूक्ष्म पर्यवेक्षण की शक्ति भी। विषय-वस्तु, भाव वैविध्य, नवीन छन्द योजना तथा युगीन काव्य प्रवृत्तियों की प्रतिनिधि कृति है - चकल्लस। इनकी रचना का मूल उद्देश्य अवधी भाषा को प्रश्रय देकर ग्राम्य संस्कृति को उजागर करना था। इस संकलन की कविताओं में सामाजिक कुरीतियों, पाखण्ड, पाश्चात्य संस्कृति, सामंती जीवन,आधुनिक फैशन, जाति-पाति आदि का विरोध मुखरित हुआ है। इन कविताओं की भाषा ठेठ अवधी है। इनमें तद्भव शब्दों का ही बाहुल्य है। बोलचाल की भाषा का सहज सौन्दर्य इसमें समाहित हैं।

डॉ. चक्रपाणि पाण्डेय
इनका जन्म सन् १९३३ में रायबरेली जनपद के भीरा गोविन्दपुर में हुआ था। ये उ.प्र. के राजकीय शिक्षा विभाग में एक अध्यापक हैं। इस समय प्राचार्य के पद पर सेवारत हैं। इन्होंने खड़ी बोली में भी रचनायें की हैं। इनकी अवधी की प्रकाशित रचनायें हैं - बैसवंश भूषण, बैसवारा विभूति, राव रामबख्श उमराव चन्द्रिका, भवानी दास आदि। ‘बनौधा बीर ‘बीरा’ इनका एक प्रबन्ध काव्य है। ये प्रायः वीर रस पूर्ण रचनायें लिखते हैं। बैसवारी में लिखी इनकी घनाक्षरिया, जो वीर रस-पूर्ण हैं, बड़ी महत्त्वपूर्ण हैं। वस्तुतः बैसवारी लोकजीवन की गहन अनुभूति प्राप्त है डॉ. पाण्डेय को। इनकी रचना में शब्द-गुणमयता (ओज) सरसता तथा प्रवाह है। कुछेक रचनाओं में ब्रजावधी की झलक मिलती है।

चतुर्भुज शर्मा
इनका जन्म सन् १९१० में बीहट वीरम के निकट ग्राम राजपुर खुर्द जिला सीतापुर में हुआ था। गजोधर दीक्षित इनके पिता थे। इण्टरमीडिएट की परीक्षा उत्तीर्ण करने के पश्चात् इन्होंने गन्ना विभाग में सुपरवाइजर के पद पर नौकरी कर ली। हिन्दी, अंग्रेजी, संस्कृत के साथ उर्दू और फारसी के भी ज्ञाता हैं चतुर्भुज शर्मा। इनकी अवधी रचनायें हैं - बजरंग-बावनी, नारद मोह, किसान की अरदास, धनुष भंग, कुत्ता-भेड़हा की लड़ाई, बाल रामायण, र्‌याल-प्याल, नहर का मुकदमा, सरदार पटेल, महात्मा गांधी का निधन, स्वतंत्रता दिवस, पोक्कन पाण्डे, गोधूली, यहिया खाँ, मधई काका की चौपारि, मेघनाथ वध, इत्यादि। इनकी समस्त अवधी सेवाओं पर उ.प्र. हिन्दी संस्थान ने इन्हें जायसी (नामित) पुरस्कार से सम्मानित किया है। भाषा में बैसवारी अवधी की स्पष्ट झलक मिलती है।

चन्द्रभान सिंह
इनका जन्म सन् १९७४ में ग्राम बरउवाँ, जनपद रायबरेली में हुआ था। ये होली-चहली, छंद के लिए प्रसिद्ध हैं। इनके लोकगीत रामकृष्ण कथा पर आधृत हैं। भाषा ठेठ अवधी है। ‘कृष्ण-सुदामा’ नामक इनका लोकगीत संग्रह है, जो अभी अप्रकाशित है।

चन्द्रभूषण त्रिवेदी “रमई काका”
आधुनिक अवधी कविता में श्री चन्द्रभूषण त्रिवेदी “रमई काका” का शीर्षस्थ स्थान है। महाकवि तुलसीदास के बाद ये अवधी के सर्वाधिक लोकप्रिय कवि हैं। इनका हास्य-व्यंग्य-विनोद अति विशिष्ट हैं। काका के काव्यसंग्रह हैं - ‘भिनसार’, ‘बौछार’, ‘फुहार’, ‘गुलछर्रा’, नेताजी एवं हरपाती तरवारि आदि। इनका काव्य, भाव और शिल्प दोनों दृष्टियों से वैविध्यपूर्ण है। इनकी रचनाओं में बैसवारा-जनजीवन की अनेक मर्मच्छवियाँ प्रोद्‍भासित हुई हैं। प्रकृति-परिवेश का एक-एक रूप-रंग उनकी रचनाओं में अन्तर्याप्त हो उठा है। इनका दूसरा महत्त्वपूर्ण पक्ष है- अवध की लोक संस्कृति का दिग्दर्शन। ’काका’ मूलतः ग्रामीण-व्यवस्था एवं कृषि संस्कृति के कवि हैं। अवध ग्रामांचल में व्याप्त गरीबी, भुखमरी, पर्दा-प्रथा, मुकदमेबाजी आदि समस्याओं एवं कुप्रथाओं का समाधान इनकी रचना का विषय रहा है। कृषि कर्म एवं ग्रामोद्योग का इन्होंने पुरजोर समर्थन किया है। इन्होंने अवधी लोकसंस्कृति का बड़ी बारीकी से वर्णन किया है। इनकी कविताओं का काव्य-सौष्ठव विशिष्ट है। इन्होंने जनजीवन में प्रचलित लोकोक्तियों, मुहावरों और ठेठ आंचलिक लहजों (बोली-बानी) का प्रयोग करके अपनी विलक्षण व्यंजनगतिशयता का निर्वाह किया है। ‘रमई काका’ की कविता जितनी भावबहुला है, उतनी शिल्प विविधा भी। इन्होंने छोटी-बड़ी मुक्त कविताओं के अतिरिक्त, गीत, घनाक्षरी, दोहा, सोरठा, कुण्डलियाँ, पद, विरहा, आल्हा आदि छन्दों तथा विभिन्न काव्यरूपों का सफल प्रयोग किया है। भले ही इनकी भाषा में कहीं- कहीं खड़ी बोली तथा भोजपुरी का अवधी रूपांतरण दिखाई देता हो, यों उसमें बैसवारी अवधी का सफल विनियोग हुआ है। ‘काका’ ने लोकरुचि के अनुकूल हास्यरस में अधिक लिखा है, पर श्रृंगार, करुण और वीर रसों में भी इनकी यथेष्ट गति रही है। राष्ट्रीय विभूतियों गाँधी, नेहरू आदि के प्रति इन्होंने अनेक वन्दना गीत लिखे हैं। राजनीतिक समस्याओं पर भी ‘काका’ ने पर्याप्त चिंतन किया है। पाकिस्तानी, चीनी आक्रमण के दौरान इन्होंने ‘आल्हा’ शैली में अनेक प्रेरणादायक गीत लिखे। अवधी गद्य में ‘काका’ की महती भूमिका रही है। ‘रतौंधी’, ‘बहिरे बोधन बाबा’ नामक हास्य एकांकी (ध्वनि रूपक) संकलन द्वारा इन्होंने अवधी नाटक के क्षेत्र में पहल की है। वस्तुतः ये आधुनिक अवधी के कीर्तिस्तम्भ हैं।

श्रीमती चन्द्रावती मिश्र (मीराबाई)
२०वीं शताब्दी में उत्पन्न ये राम की अनन्य उपासिका थीं। इनकी एकमात्र काव्य कृति - ‘आनन्द रस भजन रामायण’ है। ये ग्राम मवई खानपुर जिला उन्नाव (बैसवारा-जनपद) की निवासी थीं। इनका जीवन प्रारम्भ से ही संघर्षशील रहा। बाल्यकाल (८ वर्ष की आयु) में ये मातृ सुख से वंचित हो गईं। बालिका चन्द्रावती को पिता द्वारा वैष्णवी संस्कार तथा अक्षर ज्ञान प्राप्त हुआ। चन्द्रावती का वैवाहिक जीवन सुखी न रहा। १९ वर्ष की आयु में वैधव्य से अभिशप्त चन्द्रावती ने अपना समग्र जीवन राम के चरणों में अर्पित कर दिया। अन्वेष्य तथ्यों के अभाव में इनके जीवन वृत्त पर स्पष्ट प्रकाश नहीं डाला जा सकता। कवयित्री चन्द्रावती मिश्र को पर्याप्त पौराणिक ज्ञान था। ये हिन्दी और संस्कृत जानती थीं। इनकी ‘आनन्द रस भजन रामायण’ प्रकाशित रचना है, परन्तु प्राप्त प्रति के अत्यन्त जर्जर होने के कारण प्रकाशन तिथि तथा प्रकाशक का स्पष्ट पता दे सकना कठिन है। आधुनिक अवधी के विकास में ‘आनन्द रस भजन रामायण’ और इसके रचयिता का महत्त्व नकारा नहीं जा सकता।

चन्द्रशेखर ‘चण्डूल’
चण्डूल जी लखनऊ जनपद के बंथरा क्षेत्र के निवासी हैं। साहित्य क्षेत्र में उतरने के लिए इन्होंने अवधी को अपनी मूल भाषा के रूप में स्वीकार किया है।


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