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Awadhi Sahitya-Kosh

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श्रीमती ऊर्मिला मिश्र
आधुनिक अवधी काव्य धारा की एक कीर्तिमान श्रीमती ऊर्मिला मिश्र हरगाँव, जिला सीतापुर की निवासिनी थी। इनका जन्म सन् १९२९ को हुआ था। झब्बू लाल मिश्र इनके पिता तथा श्रीमती चन्द्रावती मिश्र इनकी माता थीं। अपने जीवन काल में ये कांग्रेस की एक सक्रिय कार्यकर्ता रही हैं और कई वर्षों तक महिला कांग्रेस की अध्यक्ष भी रहीं। खड़ी बोली और अवधी दोनों में ही इन्होंने सुमधुर गीतों की रचना की थी। राष्ट्रीय भावनाओं का समादर इनकी कविताओं में प्राप्य है। इनकी चर्चित रचनायें है- इन्दिरा गांधी, दहेज, बेटी, नेहरू चाचा, बापू आदि। कविता में मृसणता है, प्रवाह है और है सरसता। श्रीमती मिश्र जी का देहावसान सन् १९९२ में हो गया।

श्रीमती किशोरी तिवारी ‘बौड़मी’
लखनऊ के कवि सम्मेलनों में ‘बौड़म’ जी के साथ उनकी धर्मपत्नी बौड़मी जी भी अपने हास्य-व्यंग्य के कारण मशहूर रही हैं। इनका जन्म बाराबंकी में सन् १९३६ ई. में हुआ, किंतु इनकी शिक्षा-दीक्षा लखनऊ में हुई। सम्प्रति पति-पत्नी १३५, नौबस्ता, लखनऊ के स्थायी निवासी बन गये हैं। बौड़म जी के प्रभाव से इन्होंने भी अवधी लोक गीतों से अपना काव्य लेखन प्रारम्भ किया। इनके लगभग ५० लोकगीत हैं जिनमें से कुछ आकाशवाणी लखनऊ से प्रसारित भी हो चुके हैं।

श्री कुटिलेश
ये उन्नाव जनपद के टेढ़ा ग्राम के निवासी अवधी कवि रहे हैं। इन्होंने ‘गडबड़ रामायण’ नामक अवधी रचना समाज को समर्पित कर सामाजिक बुराइयों को उद्घाटित करने की कोशिश की है।

श्रीमती चन्द्रावती मिश्र (मीराबाई)
२०वीं शताब्दी में उत्पन्न ये राम की अनन्य उपासिका थीं। इनकी एकमात्र काव्य कृति - ‘आनन्द रस भजन रामायण’ है। ये ग्राम मवई खानपुर जिला उन्नाव (बैसवारा-जनपद) की निवासी थीं। इनका जीवन प्रारम्भ से ही संघर्षशील रहा। बाल्यकाल (८ वर्ष की आयु) में ये मातृ सुख से वंचित हो गईं। बालिका चन्द्रावती को पिता द्वारा वैष्णवी संस्कार तथा अक्षर ज्ञान प्राप्त हुआ। चन्द्रावती का वैवाहिक जीवन सुखी न रहा। १९ वर्ष की आयु में वैधव्य से अभिशप्त चन्द्रावती ने अपना समग्र जीवन राम के चरणों में अर्पित कर दिया। अन्वेष्य तथ्यों के अभाव में इनके जीवन वृत्त पर स्पष्ट प्रकाश नहीं डाला जा सकता। कवयित्री चन्द्रावती मिश्र को पर्याप्त पौराणिक ज्ञान था। ये हिन्दी और संस्कृत जानती थीं। इनकी ‘आनन्द रस भजन रामायण’ प्रकाशित रचना है, परन्तु प्राप्त प्रति के अत्यन्त जर्जर होने के कारण प्रकाशन तिथि तथा प्रकाशक का स्पष्ट पता दे सकना कठिन है। आधुनिक अवधी के विकास में ‘आनन्द रस भजन रामायण’ और इसके रचयिता का महत्त्व नकारा नहीं जा सकता।

शंभूसिंह
ये रायबरेली जनपद के निवासी एवं अल्पख्यात अवधी कवि हैं।

शत्रोहनलाल अवस्थी ‘लवलेश’
‘लवलेश’ जी का जन्म भाद्रपद कृष्ण सप्तमी सन् १६२१ ई. को जिला सीतापुर की सिघौली तहसील के ऊँचाखेरा ग्राम में हुआ था। अवधबिहारी लाल अवस्थी इनके पिता थे। ये स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के रूप में जीवन भर देश एवं समाज सेवा में लगे रहे। ये गाँधीवादी विचार धारा के पोषक और कांग्रेसी कार्यकर्ता थे। ये अवधी के कुशल कवि थे। इनकी कवितायें सामाजिक तथा राजनीतिक विचार धारा से उदभूत हैं।

शम्भुनाथ मिश्र
ये बैसवाड़ा क्षेत्र के खजूर गाँव के निवासी एवं भारतेन्दु युगीन अवधी कवि हैं।

शम्भुशरण द्विवेदी ‘बन्धु’
इनकी रचना है- ‘झौवा भरि लरिका का करिहौ। अन्य विवरण अनुपलब्ध है।

शारदा कुमारी
इनका जन्म हरदोई नगर में सन् १९३० में हुआ था। इनका विवाह नैमिषारण्य तीर्थ स्थल क्षेत्र में हुआ था। एक बीमारी में एक नेत्र की ज्योति भी चली गयी थी। कवयित्री होने के साथ-साथ प्रवचन देने का कार्य भी करती थीं। फलस्वरूप यज्ञादि समारोहों, सम्मेलनों में भाग लिया करती थीं। ये अवधी में प्रायः भक्ति सम्बन्धी रचनाएँ लिखती थीं। १९८५ ई. में इनका निधन हो गया था।

शारदा प्रसाद ‘भुशुण्डि’
‘पढ़ीस’ जी की परंपरा को बढ़ाने वाले कवियों में शारदा प्रसाद जी का नाम उल्लेखनीय है। शासन, दुराचार और बाह्याचारों के ये बड़े कटु आलोचक है। ‘असेम्बली मे चख-चख’ और ’अब लखनऊ न छ्वाड़ा जाई’ इनकी प्रसिद्ध कविताएँ हैं। ‘हम तब्बो चना कहावा है’ ‘हम अब्बौ चना कहाइति है’ - नामक कविता में कवि ने अवध के प्रचलित मुहावरों और रीति-रिवाजों का सुन्दर चित्रण प्रस्तुत किया है। इनके काव्य मे शोषित वर्ग की विद्रोही भावना व्यक्त हुई है। इनका जन्म वैशाख सम्वत् १९६७ में प्रयाग जिले के कैमें गाँव मे हुआ था।


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