होलिकोत्सव के अवसर पर गाया जाने वाला वृंदगान ‘धमारि’ कहलाता है। यह अवधी का छन्द विशेष है, जो तथाकथित पिछड़े वर्गों द्वारा ऋतुगीत रूप में गाया जाता है। इसका प्रकाशित स्वतंत्र संग्रह तो प्राप्य नहीं है, किंतु अनेक जनपदीय और मध्ययुगीन कवियों के संकलनों में इसका विनियोग द्रष्टव्य है।
धरनीदास
ये छपरा जिला (बिहार) के माँझी गाँव में सम्वत् १७१३ वि. में जनमे एक सन्त कवि हैं। पिता का नाम परशुराम दास था। ‘सत्य प्रकाश’ एवं ’प्रेम प्रकाश’ इनके प्रसिद्ध ग्रन्थ हैं। इनकी रचनाओं में अवधी का साहित्यिक रूप उपलब्ध होता है। इनकी भाषा पर ब्रज और अन्य प्रांतीय बोलियों का प्रभाव भी पड़ा है। एक अन्य जगह इनका जन्म सं. १६३२ एवं रचनाएँ ‘प्रेमपरगास’, ‘शब्द प्रकाश’, ‘रत्नावली’ मिली हैं।
धर्मदास
ये बांधवगढ़ निवासी थे एवं कबीरदास के प्रधान शिष्यों में से एक थे। कहा जाता है। कि संवत् १५७५ में कबीर के गोलोकवासी होने पर ये ही गद्दी के उत्तराधिकारी बने थे। कबीर वाणी को ‘बीजक’ में संकलित करने का श्रेय इन्हीं को है। इनकी रचनाएँ ‘धनी धरमदास की बानी’ नाम से संकलित हैं। इन पर कबीरदास जी का प्रभाव है। किंतु इन्होंने खण्डन-मण्डन से विशेष प्रयोजन न रखकर प्रेमतत्व को ही लेकर अपनी वाणी का प्रसार किया। इनकी भाषा सरल सुस्पष्ट एवं अवधी से युक्त है। इनका जन्म सं. १५०० में तथा मृत्यु सं. १६०० में हुई थी। इनकी रचनाएँ हैं- द्वादश पंथ, निर्भय ज्ञान, कबीर ज्ञानी।
धीरदास
ये बैसवाड़ा क्षेत्र के निवासी एवं भारतेन्दु युगीन अवधी कवि रहे हैं।
धोबिया
धोबी लोगों के जातीय गीतों को ‘धोबिया गीत’ कहा जाता है। ‘धोबिया’ गीतों को एक शैली विशेष के आधार पर गाया जाता है, इसलिए हर व्यक्ति इसको स्वर देने में समर्थ नहीं होता है। धोबिया गीत अत्यंत मार्मिक और प्रभावशाली होते हैं। आज इनका विषय जातीयता से उठकर काफी विस्तृत हो गया है। धोबिया गीतों में करुणा एवं श्रृंगार रस की बहुलता होती है।
ध्यान मंजरी
यह स्वामी अग्रदास द्वारा रचित अवधी ग्रंथ है। इसमें राम और उनके अन्य भाइयों के रूप, लावण्य एवं सरयू तथा अयोध्या नगरी के सौंदर्य का अच्छा वर्णन हुआ है।
ध्रुव-चरित्र
मलूकदास द्वारा रचित ‘ध्रुव-चरित्र’, जैसा कि नाम से विदित होता है, ध्रुव के चरित्र को आधार बनाकर लिखा गया है। यह कृति इनके सगुण भक्त होने की पुष्टि करती है। ध्रुव-चरित्र की रचना दोहा, चौपाई में की गई है। इसकी भाषा अवधी है।