ईश्वरदास नामक कवि, राम काव्य के सर्जक रहे हैं। जायसी और तुलसी (जिन्होंने अवधी को विश्व साहित्य में प्रतिष्ठा दिलाई) के आविर्भाव से पहले ये १५ वीं शती के मध्य में हुये थे, उपलब्ध साहित्य के आधार पर इन्हें अवधी का प्रथम उल्लेखनीय कवि माना जाता है। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने इनकी रचना ‘स्वर्गारोहिणी कथा’ को अवधी की प्रथम रचना माना है। इनकी अन्य रचनायें हैं:- भरत-विलाप, राम-जन्म, अंगद-पैज। ये तीनों रचनायें राम कथा पर आधारित है। इनकी रचना अवधी भाषा में हुई है। इन्होंने अपनी कृतियों -रामजन्म व अंगद-पैज में आख्यान शैली का प्रयोग किया है। आचार्य पं. विश्वनाथ प्रसाद मिश्र के शब्दों में - ’ईश्वरदास की सभी प्राप्त रचनायें इस बात का स्पष्ट संकेत करती हैं कि वे कथा शैली के सिद्धहस्त रचनाकार थे। आख्यान तत्व इनकी कृतियों में सहजता से मिलता है। इस तरह तुलसी और जायसी जैसे विश्वविश्रुत कवियों ने कथा आख्यायिका शैली का जो भव्य रूप अवधी भाषा की दृढ़ पीठिका पर खड़ा किया, उसका आरम्भ प्रारम्भिक अवधी में और विशेषकर ईश्वर दास की रचनाओं में हुआ है। ईश्वर दास द्वारा प्रणीत ‘सत्यवती कथा’ का उल्लेख भी मिलता है। मसनवी शैली में रचित यह कृति हिन्दी-प्रेमाख्यान परम्परा से ओत-प्रोत है। इसमें भारत की सती-साध्वी नारियों का चरित्र निरूपित किया गया है। भाषा अवधी है, पर सूफियों जैसी जन-भाषा नहीं। इसका रचना-काल सन् १५०१ ई. है।
ईश्वरी प्रसाद
भारतेन्दुयुगीन अवधी कवियों में इनका महत्वपूर्ण स्थान है। इनका निवास-स्थान बैसवारा क्षेत्र है।
ईसायण
यह एस. मार्शलीन द्वारा अवधी भाषा में लिखा गया एक महत्वपूर्ण महाकाव्य है। इसकी मूल कथा ईसा-चरित्र है। इसको हिन्दी जगत में सर्वप्रथम मान्यता दिलाकर प्रकाश में लाने का काम श्री मायापति मिश्र ने किया। मिश्र के अनुसार ‘मानस’ और पदमावत की रचना पद्धति को आधार मानकर रचित ‘ईसायण’ का आरम्भ ‘मंगलाचरण’ दोहों से होकर अंत सोरठा से हुआ है। ग्रन्थ से प्राप्त सूचनाओं के आधार पर इसका प्रकाशन काल १९३८ ई. है। ‘मानस’ की चौपाइयों की भाँति इस काव्य की चौपाइयों में भी सरसता देखने को मिलती है।