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Awadhi Sahitya-Kosh

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पं. गयाप्रसाद तिवारी ‘मानस’
तिवारी जी का जन्म ८ जनवरी सन् १९२१ ई. को कानपुर निवासी पं. सदाशिव तिवारी एवं श्रीमती शिवदुलारी दम्पति के घर हुआ। सम्‍प्रति ३७२, राजेन्द्र नगर, लखनऊ के निवासी बन गये हैं। शिक्षा ग्रहण करने के बाद उ.प्र. सचिवालय में कार्यरत हो गये। ३१ जनवरी १९७९ को उप सचिव के पद से सेवानिवृत्त हुए। इन्होंने खड़ी बोली, ब्रज भाषा के साथ-साथ अवधी भाषा में भी काव्य सृजन किया। इनकी रचनाएँ हैं - मानद विनयावती, ब्रज विहार, मानस काव्य तरंगिणी, मनुआ मगन मगन है चोला, दोहा, गीत भी इन्होंने लिखे हैं। ये ‘काव्यश्री’ उपाधि से सम्मानित भी किये गये हैं।

पंचनामा
यह टोडरमल कृत १७वीं शती की पद्यबद्ध रचना है। इसमें अवधी का प्रारम्भिक रूप से स्पष्ट रूप से झलक उठा है।

पंचम
ये रायबरेली जनपद में स्थित डलमऊ क्षेत्र के निवासी रहे हैं। भारतेन्दुयुगीन अवधी कवियों में इनका महत्वपूर्ण स्थान है।

पंच रामायण
यह सन् १९५१ में सृजित श्री सुमेर सिंह भदौरिया जी की अवधी कृति है।

पंथक गीत
मार्ग में चलती हुई, विशेषतः मेले-ठेले में जाती हुई स्त्रियाँ सामूहिक रूप से इस अवधी लोकगीत का गायन करती हैं, जिससे यात्रा-श्रम का परिहार होता है, मनोरंजन होता है और पुण्य स्मरण भी। इसमें राम-वन गमन के कई प्रसंग प्राप्त होते हैं।

पँवारी
लोक-साहित्य की एक विधा है- लोक गाथा। ये कथात्मक गीत होते हैं। इनमें कथानक का सम्पूर्ण विकास मिलता है। अत्यधिक लम्बे होने के कारण ये लोकगाथायें ही अवधी क्षेत्र में पँवारा कहलाते हैं। ‘पँवारा’ शब्द का अर्थ ही है वर्णन विस्तार के साथ गायी जाने वाली लम्बी कथा। चर्चित लोकप्रिय पँवारे हैं - शिव-पार्वती, धानू भगत, राजा भरथरी, श्रवण कुमार, चन्द्रावली, लोरिकी, चनैनी, रसोलिया, इन्द्रपरी का छलावा, पँवारा जानकी जी का। इनसे महाकाव्य अथवा खण्डकाव्य जैसा आनंद प्राप्त होता है। इनमें प्रमुख पात्र का सम्पूर्ण चरित्र चित्रित हुआ है।

पतितदास
ये बैसवारा क्षेत्र के गिरधरपुर के निवासी थे। इन्होंने अवधी गद्य में दो ग्रन्थ- वैद्यक कल्प, सर्वग्रंथोक्ति लिखा था, जो आयुर्वेद विषयक ग्रंथ सिद्ध हुए।

पदमावत
यह हिन्दी का श्रेष्ठ सूफी प्रेमाख्यानक महाकाव्य है। इसके रचयिता मलिक मोहम्मद जायसी हैं। इसकी रचना पूर्वी अवधी भाषा में हुई है। प्रेमगाथाओं की परम्परा में अत्यधिक महत्वपूर्ण पदमावत महाकाव्य में सिंहल के राजा गन्धर्व सेन की पुत्री पदमावती तथा चित्तौड़गढ़ के राजा रत्नसेन की प्रेमकथा वर्णित है। इस कथा में इतिहास और कल्पना का अद्भुत समन्वय है। इसमें सूफी सिद्धान्तों का निर्वाह हुआ है। लौकिक प्रेम के आधार पर आध्यात्मिक प्रेम की व्यंजना की गई है। कवि ने समस्त कथा को रूपक में बाँधने का प्रयत्न किया है। कवि के इस प्रयास में रहस्यवादी प्रवृत्ति के दर्शन होते हैं। इसमें वेदांत की अद्वैत भावना, हठयोग आदि हिन्दू धर्म की बातों का समावेश है साथ ही विदेशी प्रभाव भी स्पष्ट है। पदमावत-दोहा-चौपाई पद्धति को अपनाकर ठेठ अवधी भाषा में लिखा गया काव्य है। इसमें लोक जीवन के बहुरंगी चित्र निरूपित हुये हैं। इसमें लोकभाषा अवधी का सौन्दर्य देखने योग्य है।

पद विचार
यह संत अहमकशाह द्वारा रचित अवधी गद्य कृति है। इसमें जीव, जगत, माया, ब्रह्म, गुरू, संत-असंत आदि का बड़ा ही तात्त्विक विवेचन हुआ है।

पन्नगेश जी
ये अयोध्या के निवासी एवं सुविख्यात अवधी रचनाकार हैं।


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