अवधी का यह वात्सल्य प्रधान लोकगीत है। शिशु के केश अब कटाने योग्य हो गये हैं, इस भाव को लक्ष्य कर शिशु की माँ परिवार के पुरखों से मुण्डन संस्कार कराने का अनुरोध करती है। वाद्ययंत्र रहित यह गीत सामूहिक रूप में गाया जाता है।
झलरिया-छेदनु
यह अवधी का वात्सल्य प्रधान लोकगीत है, जो कर्णवेध संस्कार के समय गाया जाता है; यथा- ’जो मैं जनतेउँ लालन मोरे छेदनु तुम्हार है रे। (लालन) सोने की सुइया पठावै तो बाबा तुम्हार रे।। जो मैं जनतेउँ लालन मोरे छेदनु तुम्हार है रे। (लालन) सोने का टकवा उतारै वो आजी तुम्हारि रे।।
झामदास रामायण
यह झामदास द्वारा प्रणीत रामकाव्य परम्परा का अवधी ग्रंथ है। झामदास का आविर्भाव सं. १८१८ में हुआ था।
झुनझुना
यह चूड़ाकर्म संस्कार और जातकर्म के समय स्त्रियों द्वारा वृन्दगान के रूप में सस्वर गाया जाने वाला एक अवधी लोकगीत है। प्रारम्भिक पंक्तियाँ हैं - मोरे लाल का झुनझुना है बाजना एहु झुनझुना सोरवा के गा है (अरे) सोने की डाँड़ी लगावो।