यह प्रेमलता द्वारा प्रणीत अवधी रचना है। इसमें रामभक्ति शाखा के रसिकोपासना के सिद्धांतों का बड़ा सुन्दर विवेचन हुआ है।
वंशीधर शुक्ल
आधुनिक काल में जनमें वंशीधर जी भारतेन्दु युग के प्रतिनिधि अवधी कवि हैं। बैसवाड़ा इनका निवास-स्थल है।
वंशीधर शैदा
शैदा जी मोहनलाल गंज, रायबरेली में जनमे एक उच्चकोटि के अवधी साहित्यकार हैं। इनकी अवधी रचनाएँ समाज को विशिष्ट उपलब्धि साबित हुई हैं।
वंशीधर शैदा (कलयुगी)
ये एक अवधी प्रेमी साहित्यकार रहे हैं। इन्होंने ’वाल्मीकि रामायण’ का अनुवाद अवधी भाषा में सन् १९४१ से १९४९ के बीच सम्पन्न किया था।
वर्ण रत्नाकर
यह शेष ज्योतिरीश्वर ठाकुर द्वारा प्रणीत १४वीं शताब्दी की गद्य रचना है, जिसमें अवधी का प्रारम्भिक रूप देखने को मिलता है।
वागीश शास्त्री
पैरोडी लेखक (अवधी भाषा)।
वारसी
वारसी जी बेड़हौरा, सीतापुर के निवासी अवधी साहित्यकार हैं। इन्होंने सन् १९४४ में ज्ञानसागर’ नामक कृति सृजित कर अपना अवधी प्रेम अभिव्यक्त किया है।
वासुदेव सिंह चौहान
इनका जन्म १६ जनवरी सन् १९२८ ई. को ग्राम उम्मेद खेड़ा, (बंथरा के निकट) लखनऊ में हुआ था। इनके पिता का नाम श्री हरदेव सिंह है। सन् १९८६ में राजकीय सेवा से अवकाश प्राप्त कर काव्य सृजन में ये प्रवृत्त हैं। इनकी खड़ी बोली, ब्रज एवं अवधी तीनों पर समान अधिकार है। इन्होंने असंख्य कविताएँ लिखी हैं। ‘हुलसी के तुलसी’ (सन् १९६१) इनकी सशक्त अवधी कविता है।
विंध्येश्वरी प्रसाद श्रीवास्त
ये बिसवाँ, सीतापुर के निवासी हैं। इनकी कई कविताएँ बहुत प्रसिद्ध हुई हैं। अपनी काव्य भाषा के रूप में इन्होंने अवधी को स्वीकार किया है। इन्होंने ‘भला भाई’ नामक भड़ौवा सृजित किया है, जो अवधी की हास्य व्यंग्यात्मक विधा के रूप में प्रख्यात हुई है।
विकास गीत
जिन गीतों में राष्ट्र के उत्थान की बात कही जाती है, ‘विकास गीत’ कहे जाते हैं। इन गीतों में आर्थिक उन्नति, सामाजिक कुरीतियों को दूर करने का प्रयास, शिक्षा का प्रसार आदि ग्रामीण समस्याओं पर बल दिया जाता है। विकास गीत दो प्रकार के होते हैं - १- सुधार गीत, २-प्रसार गीत।