ये घाघ, भड्डरी आदि की श्रेणी में परिगणित की जाने वाली एक महत्वपूर्ण लोकपंडिता रही हैं। इन्होंने अवधी साहित्य में अपने पर्याप्त अनुभवों को पद्यबद्ध करके उसमें महती भूमिका अदा की है। लोक कहावतें इनका प्रतिपाद्य विषय रही हैं।
खिसकढ़ी
यह श्री सूर्यप्रसाद त्रिवेदी ‘काका बैसवारी’ की हास्य-व्यंग्य प्रधान रचना है। इसमें ‘काका बैसवारी’ की ४४ रचनायें संकलिन हैं। इसकी कवितायें पाठक को हँसाती एवं विस्मित करती हैं। साथ ही हृदय पर सीधे प्रहार करती हैं।
खुशाल
ये भारतेन्दु युग के ख्यातिप्राप्त अवधी कवि हैं। बैसवाड़ा क्षेत्र इनका निवास स्थान रहा है।
ख्वाजा अहमद
ये बाबूगंज (प्रतापगढ़) के निवासी थे। इनके पिता का नाम लाल मोहम्मद था। इनका अवधी काव्य है - नूरजहाँ। यह एक प्रेमपरक कृति है। इसकी रचना सं. १९६२ में की गई है। ‘नूरजहाँ’ प्रेमाख्यानक काव्यों की भाँति अवधीयुक्त है। इसमें दोहा-चौपाई छंद का प्रयोग है।