ये बैसवारा क्षेत्र के निवासी एवं भारतेन्दु युगीन अवधी साहित्यकार हैं।
गंगादयाल द्विवेदी
निगसर (बैसवारा क्षेत्र) के निवासी द्विवेदी जी भारतेन्दु युगीन अवधी साहित्यकार हैं।
गंगाधर व्यास
ये ‘सत्योपाख्यान भाषा’ को अवधी भाषा में अनूदित करने वाले एक साहित्यकार रहे हैं। इनका जीवनकाल सन् १८४२ से १९१५ ई. तक रहा है।
गंगा प्रसाद
ये अवधी काव्यधारा को अक्षुण्ण बनाये रखने वाले साहित्यकारों में से एक हैं। द्विवेदी युग इनका आविर्भाव काल था।
गंगाप्रसाद मिश्र
ये अवधी गद्य लेखक विशेषकर लघु नाट्य एवं एकांकियों में कुशल कलाकार हैं। इनके नाटक सामाजिक समस्याओं पर आधारित हैं। इनकी अवधी रचनाएँ हैं - नेवासा, नानक, धरती का धन, सौदागर, पाहुन, ससुराल की सैर आदि।
गंगासागर शुक्ल
ये अवधी भाषा के एक अल्पख्यात कवि रहे हैं। इनका जन्म सन् १९४३ में रायबरेली में हुआ था।
गजराज सिंह यादव ’अमर’
अमर जी का जन्म सन १९३० ई. में खीरी जनपद के चन्दनापुर गाँव में हुआ था। इनके पिता जी का नाम ठाकुरप्रसाद यादव था। शिक्षा ग्रहण करने के बाद ये श्री हनुमत रामेशवर दयाल इण्टर कालेज, बिसवाँ में अंग्रेजी के अध्यापक हो गये। ‘कल्पना-कुसुम’ इनका खड़ी बोली का काव्य-संग्रह है। ‘अमर कीरति’ इनकी अवधी रचनाओं का संकलन है। ये अवधी में सवैया और घनाक्षरी बड़ी कुशलता से लिखते हैं।
गड़बड़ रामायण
यह सन् १९४२ में रचित श्री कुटलेश जी की अवधी रचना है, जो दोहा चौपाई छंदों में लिखी गयी है। इनकी चौपाइयों में एक चरण श्रीरामचरित मानस का है तो दूसरा चरण उनके द्वारा सृजित किया गया है। इसमें सामाजिक बुराइयों को उद्घाटित किया गया है।
गड़रिया और मूसा पैगम्बर
यह पं. प्रताप नारायण मिश्र द्वारा रचित लघु कथा है। भाषा अवधी है। इसमें दोहा-चौपाई शैली का प्रयोग है। एक गड़रिया, मूसा और आकाशवाणी के मध्य इसमें संवाद कराया गया है।
गणेशप्रसाद गणाधिप
इनका जन्म सन् १९०१ में ग्राम भुइला, जनपद सीतापुर में हुआ था। ये मूलतः ब्रज और खड़ी बोली के कवि थे। फिर भी इन्होंने अवधी में कभी-कभी रचनाएँ की हैं। जैसे - ‘काह्यक यार बकावत हौ हमका, हमहू छलछंद पड़े हन।’