दामोदर पण्डित रचित यह ग्रन्थ अवधी माध्यम से लिखा गया संस्कृत का प्रथम व्याकरण है। इसके आधार पर डा. रामविलास शर्मा की स्थापना है कि अवधी संस्कृत के समानान्तर विकसित हुई है तथा यह भी कि अवधी भाषा का व्याकरण संस्कृत व्याकरण से पूर्व निर्धारित था। तात्पर्य यह कि अवधी आरम्भ में ही एक स्वायत्त भाषा रही है। यह ग्रंथ इसका प्रमाण है।
उबहटि
नववधू के ससुराल आगमन के अवसर पर उसका स्वागत करती हुई स्त्रियाँ यह अवधी लोक गीत गाती हैं। इसमें मंगलाशा का भाव होता है।
उभय प्रबोधक रामायण
यह महात्मा बनादास द्वारा प्रणीत अवधी ग्रंथ है। इसकी कथा सात काण्डों में विभक्त है। इसमें छप्पय, सवैया, कुण्डलियाँ, घनाक्षरी आदि छंदों का प्रयोग हुआ है। इसकी रचना सं. १९३१ में हुई थी।
उमादत्त सारस्वत ‘दत्त’
सीतापुर जनपद ही नहीं, अपने कृतित्व से सम्पूर्ण हिन्दी-जगत में चर्चित बदोसराँय (बाराबंकी) के मूल निवासी पं. रामदास सारस्वत के यहाँ सं. १९९२ वि. में बिसवाँ (सीतापुर) में जनमें, हास्य एवं व्यंग्य के पुट कवि, कहानीकार एवं नाटककार पं. उमादत्त सारस्वत ‘दत्त’ सनेही मण्डल के प्रौढ़ कवि रहे हैं। इनकी रचनाओं में श्रृंगार की स्थूलता का अभाव है। भाषा में प्राञ्जलता तथा व्याकरण-सम्मत शुद्धता है, जो द्विवेदी युग की प्रमुख देन है। ’दत्त’ जी आत्मविज्ञापन से दूर एकान्त साहित्य सेवी हैं। इन्होंने ‘मस्तराम का चिट्ठा’, ‘मस्तराम का सोंटा’, मैया केंचुलबदल (सभी व्यंग्य रचनाएँ), भाई-बहन (कहानी-संग्रह), मिलन (सामाजिक नाटक), लेखलतिका (निबन्ध संग्रह) आदि गद्य रचनाओं के अतिरिक्त छः काव्य-ग्रन्थ लिखें हैं। वे हैं ‘किरण’, ‘किसलय’, ’कोयल’, ‘प्रवासी पति’ (महाकाव्य), ‘मन्दोदरी’ (खण्डकाव्य) तथा मस्तराम की कुंडलियाँ (हास्यरसपूर्ण कुंडलियों का संग्रह)। इनमें से प्रथम तीन गद्य रचनाएँ तथा ‘किरण’ (काव्य-संग्रह) प्रकाशित है। ‘मस्तराम की कुंडलियाँ’ में दत्त जी की हास्यरस पूर्ण कुंडलियाँ संकलित हैं। विशुद्ध अवधी भाषा में लिखी इन कुंडलियों में सामाजिक कुरीतियों के प्रति तीव्र आक्रोश है। कवि का यह आक्रोश व्यंग्य के माध्यम से अभिव्यंजित हुआ है। ‘जुगुल जोड़ी’ शीर्षक रचना में जहाँ उनमें विवाह पर करारा व्यंग्य है, वहीं ‘चुनाव चर्चा’ तथा ‘ओट की भीख’ आदि रचनाओं में राजनीतिक विद्रूपताओं पर तीखा प्रहार है। इसी प्रकार रिशवती आँखें, ‘घूसवन्दना’ ‘खद्दर महिमा, ‘सुधारक यू समौ’ अदि रचनाएँ भी किसी न किसी सामाजिक कुरीति पर प्रकाश डालती हैं।
उमाप्रसाद बाजपेई ‘सुजान’
अरथाना, जिला सीतापुर में सन् १९०२ ई. में जन्में कविवर सुजान जी खड़ी बोली और अवधी के अच्छे कवि थे। इनका जीवन एक अध्यापक के रूप में व्यतीत हुआ था। कार्य-स्थल सीतापुर रहा। सुजान जी के ग्रन्थों में -चूकनाथ, कृष्ण कीर्तन, नैमिषारण्य, दुर्गावती चरित्र, कुसुमांजलि आदि उल्लेखनीय हैं। ‘दहाड़’ इनकी अवधी रचनाओं का संकलन है। ‘परमार्थ प्रवेश’ इनकी एक आध्यात्मिक कृति है। इस कवि पर बैसवारी अवधी का प्रभाव है। इनकी भाषा में बिम्ब प्रस्तुत करने की क्षमता है। उपमान भी लोक जीवन से जुड़े हुए हैं। कवि का देहावसान सन् १९८८ ई. में हो गया था।
उमाशंकर मिश्र ’उमेश’
उमेश जी का जन्म ३० अप्रैल सन् १९३१ ई. को रायबरेली जनपद के तौधकपुर ग्राम में पं. रामकृष्ण मिश्र के पुत्ररूप में हुआ। इन्होंने एम.ए. हिन्दी तक शिक्षा ग्रहण की। तत्पश्चात् डाक-तार विभाग में लम्बे समय तक कार्य किया, किंतु सम्प्रति काव्य सृजन में अपने समय का सदुपयोग कर रहे हैं। इनकी काव्य कृतियाँ हैं-‘काँच के वृक्ष’ (काव्य-संग्रह), मुखौटे सलीब युद्ध (काव्य-संग्रह), आग भी अनुराग भी (गीत-संग्रह), नये-पुराने फूल (गजल-संग्रह)। मिश्र जी की अवधी रचनाएँ अत्यन्त सशक्त हैं। सम्प्रति मिश्रजी ५५४/२०३ छोटा बरहा, आलमबाग, लखनऊ में रह रहे हैं।
उमेशदत्त श्रीवास्तव ‘सुमन’
सुमन जी का जन्म २१ जनवरी १९४५ ई. को सुल्तानपुर जनपद के ग्राम परसपट्टी, कादीपुर में हुआ था। इनके पिता का नाम कृष्णमुरारी लाल श्रीवास्तव है। स्नातक स्तर तक शिक्षा ग्रहण करने के बाद अध्ययन-अध्यापन में लग गये। बिटिया की पाती (खण्ड काव्य), गउँवा हमार, कवितावली, स्तुतिमाला, भिखारी (खण्ड काव्य), सुमनमाला, मुक्तावली, श्रद्धासुमन आदि इनकी प्रमुख कृतियाँ हैं। इनकी अवधी उद्भावनाओं में जन-जन की संवेदना अभिव्यक्त हुई है। रचनाओं में देश-प्रेम एवं सामाजिक समस्याओं को भी उजागर किया गया है।
उषा-चरित
यह सं. १८३१ में कवि जनकुंज द्वारा रचित अवधी काव्य ग्रंथ है। इसकी भाषा सरल, मधुर एवं संस्कृतनिष्ठ है।
उषाहरण
यह सं. १८८६ में सृजित जीवनलाल नागरजी का ग्रंथ है। भाषा अवधी है, जिसमें ओज एवं प्रसाद गुण का पुट है।
उसमान
प्रसिद्ध सूफी कवि उसमान का रचना-काल सं. १६७० सुविदित है। इन्होने ‘चित्रावली’ नामक प्रेम कहानी दोहा-चौपाइयों में लिखी है। यह रचना जायसी के अनुकरण के आधार पर लिखी गई है। इसकी भाषा प्राचीन अवधी है। उसमान बादशाह जहाँगीर के सम सामयिक थे, क्योंकि कवि ने चित्रावली में जहाँगीर की न्यायप्रियता और उनके घण्टे का उल्लेख किया है। हिन्दी के सूफी कवियों में जायसी के बाद उसमान का नाम उल्लेखनीय है। चित्रावली में पग-पग पर काव्य-प्रतिभा तथा वाग्वैदग्ध्य का परिचय मिलता है। इनकी रचना में पौराणिकता का पुट है। कृति के नायक को भगवान शिव का अंश माना गया है।