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Awadhi Sahitya-Kosh

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दंगल जी
ये बस्ती के निवासी अवधी कवि हैं।

दयानंद जड़िया ‘अबोध’
अबोध जी श्री परमानंद जड़िया ‘परमानन्द’ के अनुज हैं। ये सम्प्रति डाक उप डाकपाल के पद पर कार्यरत हैं तथा अपने पिता के नाम पर ‘श्री वैद्यनाथ धाम’ ५५१ क/४१६, आजाद नगर, आलमबाग, लखनऊ-५ में निवास कर रहे हैं। विगत दस वर्षों के अन्तराल में ‘मधुलिका प्रकाशन’, लखनऊ के माध्यम से इनके कई ग्रंथ प्रकाशित हुए हैं। अवधी में इन्होंने स्फुट काव्य रचनाएँ लिखी है।

दयानंद सिंह ‘मृदुल’
फैजाबाद के निवासी मृदुल जी अवधी साहित्य के एक उदीयमान रचनाकार हैं।

दयाबाई
ये सहजोबाई की समकालीन संत कवयित्री हैं। इनके सृजन में अवधी भाषा की बहुलता है।

दयाल
ये आधुनिक काल के अवधी रचनाकार हैं, परन्तु इनका साहित्य प्रकाशित नहीं हो सका है। इनका क्षेत्र बैसवाड़ा है।

दयाशंकर दीक्षित ‘देहाती’
ये कानपुर के निवासी रहे हैं। इन्होंने अवधी भाषा के माध्यम से अनेकानेक कविताएँ समाज को समर्पित की हैं। इनकी ‘ई चारिउ नित ही पछितात’ नामक कविता और साथ ही व्यंग्यपरक दोहे अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं।

दयाशंकर शुक्ल ‘देहाती’
देहाती जी जनसामान्य से जुड़े हुए कवि हैं। इन्होंने अपनी अवधी कविताओं के माध्यम से सामाजिक बुराइयों एवं समस्याओं को बड़े साहस के साथ उजागर करते हुए उनका विरोध किया है।

दरिया साहब
इनका जन्म सन् १६३४ ई. में हुआ था और मृत्यु सन् १७८० ई. में। दरिया अपने को कबीर का अवतार मानते थे। इन्होंने लगभग २७ रचनाओं का प्रणयन किया है। इनकी अधिकतर कृतियाँ अवधी भाषा में लिखी गई हैं। दरिया साहब ने अवधी का अधिक प्रयोग तुलसीदास के आधार पर किया है। दरिया साहब की कवित्व शक्ति सामान्य सन्त कवियों की तुलना में कहीं बेहतर है। इन्होंने ४० प्रकार के छन्दों का प्रयोग अपने काव्य में किया है।

दहाड़
सन् १९६४ ई. में रचित यह श्री उमाप्रसाद बाजपेयी ‘सुजान’ जी की अवधी रचनाओं का संकलन है।

दिनेश दादा
ये महमूदाबाद, सीतापुर के निवासी अवधी साहित्यकार हैं। इनकी कविताएँ बड़ी ही गम्भीर हैं। इनमें समाज की बुराइयों का मर्मोद्घाटन है एवं उनसे मुक्त होने का स्वर भी है।


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