ये रायबरेली के निवासी थे। इनका पूरा नाम थानराय है। इनके पिता का नाम निहालराय था। थान कवि ने बैसवारा के रईस दलेलसिंह के नाम पर ‘दलेल प्रकाश’ नामक रीतिग्रन्थ का प्रणयन संवत् १८४८ में किया। काव्योचित विविधता तथा क्रमबद्धता के अभाव में रचे गये इस ग्रन्थ के सम्बन्ध में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने कहा हैं - यदि ‘दलेल प्रकाश’ को भानुमती का पिटारा न बनाया गया होता तो कवि-ख्याति विशद होती’ - (हिन्दी साहित्य का इतिहास)।