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Awadhi Sahitya-Kosh

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लक्षदास
ये अवधी कृष्ण-काव्य-परम्परा के अत्यंत प्रसिद्ध कवि थे और तुलसी के समकालीन थे। इन्होंने ‘कृष्ण-रस-सागर’ ‘भागवत पुराण-सार’, ‘दोहावली’, आदि कई ग्रंथों का प्रणयन किया हैं। इनमें से ‘कृष्णचरित्र’ का विशेष प्रकाशन हुआ है।

लक्ष्मण प्रसाद ‘मित्र’
मित्र जी का जन्म सन् १९०६ में ‘हिंडौरा’ (सीतापुर) में वैश्य कुल में हुआ था। इन्होंने अवधी में आल्हा, बारहमासा, भजन माला आदि की रचना की। पढ़ीस जी के संपर्क में आने पर इन्होंने अवधी रचनाएँ लिखनी आरंभ की है। प्रमुख कृतियों में बुड़भस, सोमवारी, प्रेमलीला, सराध की श्रद्धांजलि, सिलहारिनी, बहू की सीख, घूस का जन्म, मड़ए की धूम, तशरीफ, दो खेतों की कहानी काव्य रचनाएँ हैं। इनके सिवा ‘वाणशय्या’ नामक नाटक भी लिखा है। मित्र जी की लेखनी सामाजिक समस्याओं तथा कुरीतियों के चित्रण एवं उनके समाधान हेतु सक्रिय रही है।

लक्ष्मण शरण
इन्होंने रामलीला बिहार (लीलानाटक) नामक अवधी रचना का सृजन सं. १८५० में किया था। शेष विवरण अप्राप्य है।

लक्ष्मीनारायण यादव ‘बन्दा’
बन्दा जी जन्म १५ जनवरी सन् १९३० ई. को लखनऊ में हुआ था। इनके पिता स्व. गयादीन आर्म पुलिस विभाग में कार्यरत थे, जिनक मूल निवास बाराबंकी जिले के हैदरगढ़ तहसील का मैनपुरवा नामक ग्राम हैं। बंदा जी ने पं. गोमती प्रसाद पांडेय को अपना काव्य गुरू माना है। ये संगीत एवं काव्य प्रतिभा के जितने धनी हैं उतने ही सदाचरण और स्वाभिमान के। इन्होंने अवधी के अतिरिक्त खड़ी बोली के छंदविद्या में अनेक छंद लिखे है। गीत-गजल में भी इनकी लेखनी चली है। इन्होने अवधी भाषा में अनेक श्रेष्ठ कविताएँ लिखी हैं।

ल्क्ष्मीप्रसाद ‘प्रकाश’
से जनपद रायबरेली के तकनपुर सेहगो गाँव में सन् १९५३ में जन्मे थे। वसन्त लाल पिता तथा श्रीमती मोहन देवी इनकी माता हैं। संस्कृत विषय से ये एम.ए. हैं तथा इस समय रायबरेली के स्वास्थ्य विभाग में कार्यरत हैं। अवधी की अनेक रचनायें विविध पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। ‘ममाखी’ नाम से एक अवधी काव्य संकलन इन्होंने तैयार किया है, जो अभी अप्रकाशित है। अवधी की विभिन्न संस्थाओं से प्रकाश जी सन्नद्ध हैं। राष्टीय भावधारा, आज के संदर्भ में गिरते मानवमूल्य, कोरी स्वार्थपरता, भ्रातृत्त्व का नष्ट होना, अलगाववाद की भावना आदि की मार्मिक अभिव्यक्ति इन्होंने अपनी रचनाओं में की है।

लपकौरि
यह एक वैवाहिक गीत हैं। इसमें दुर्गा जनेऊ के उपरांत नाई या वर का भाई जनवास में दही गुड़ ले जाकर वर को खिलाता है। इसे लपकौरि खिलाना कहा जाता है। इसी अवसर पर स्त्रियाँ अत्यन्त फूहड़ गीत गाकर वर तथा बरातियों का मनोरंजन करती हैं।

ललकदास
सन् १७१ ई. में आविर्भूत ये लखनऊ निवासी रामानन्दी सम्प्रदाय के गद्दीधारी वैष्णव संत थे। ये भगवान राम की उपासना श्रृंगार भाव से करते थे। ललकदास विचरण करने वाले महात्मा थे। इनके दो ग्रन्थों का पता चला है। (१) सत्योपाख्यान (१७६८ ई.) एवं (२) भाषा कोशल खण्ड (१७९३ ई.)। इनका प्रतिपाद्य विषय राम की विलास क्रीड़ाओं का वर्णन है। अधिकांशतः तुलसीदास की दोहा-चौपाई शैली में इन्होंने काव्य का सृजन किया है।

ललिता चालीसा
यह श्याम सुन्दर शर्मा कृत अवधी कृति है, जो सन् १९५२ में सृजित हुई

ललिता प्रसाद
ये द्विवेदी युग के अवधी कवि हैं। अपने युग में इन्होंने इस काव्यधारा को सतत प्रवहमान बनाये रखने में अपना भरपूर योगदान किया है।

लवकुश दीक्षित
ये बलभद्र प्रसाद दीक्षित ‘पढ़ीस’ जी के पुत्र हैं। इनका जन्म सन् १९३३ में ग्राम अम्बरपुर जनपद सीतापुर में हुआ था। लवकुश जी के चारों भाई अवधी काव्य की सेवा में संलग्न हैं। मंच के सफल कवि लवकुश विशेषतः अवधी में गीत और लोकगीत लिखते हैं। इनका अवधी गीतों का संकलन ‘अंजुरी के मोती’ सन् १९६६ में प्रकाशित हो चुका है। हिन्दी संस्थान लखनऊ से इन्हें सम्मानित भी किया जा चुका है। इनके लोकप्रिय गीत हैं- उजेरिया भुइँ उतरी, च्यातौ किसान, बिरनवा बांधौ रखिया, नदिया, गंगा मैया आदि। इनके काव्य में कहीं प्रकृति का सौन्दर्य है तो कहीं श्रृंगार के चित्ताकर्षक दृश्य। इनकी लेखनी ने किसानों के दैन्य भाव का चित्र खींचा है। किसानों में जागृति के स्वर भरे हैं। राष्ट्रीय भावना, स्वावलम्बन एवं जोश का स्वर भी इनके गीतों में परिलक्षित होता है।


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