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Awadhi Sahitya-Kosh

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हंस जवाहर
यह काव्यकृति सूफी कवि जान कवि द्वारा रचित है। सूफी प्रेमाख्यान काव्य परम्परा से सम्बद्ध यह कृति मसनवी शैली से ओत-प्रोत है। इसकी भाषा अवधी है, जो इसके माध्यम से अत्यन्त गौरवान्वित हुई है। मिश्र बन्धुओं के अनुसार इस कृति का रचना-काल सं. १९०० वि. है।

हनुमान शरण ‘मधुर आलि’
ये रसिक सम्प्रदाय के रामभक्त कवि रहे हैं। इन्होंने अवधी भाषा में ‘रामदेहावली’ नामक रचना सृजित कर अपना साहित्यिक योगदान प्रकट किया है। इस रचना का सृजन सन् १८८७ में हुआ था।

हनुमान-स्तुति
यह संत जगजीवन साहब कृत स्‍तुतिपरक अवधी रचना है। इसी नाम से नेवाजदास जी ने भी अपनी अवधी कृति प्रस्तुत की है।

हरभक्त सिंह पँवार
सन् १९४० में जनमे बहराइच निवासी पँवार जी अवधी सेवी के रूप में जाने पहचाने जाते हैं। इनकी सेवा अवधी साहित्य के परिवर्द्धन में सहायक सिद्ध हुई है। इनकी अवधी रचनाएँ जनसामान्य एवं गाँव की धरती से जुड़ी हुई हैं। पारस भ्रमर इनके प्रेरणा-स्रोत हैं। इनका व्यवसाय अध्यापन कर्म रहा है।

हरि कवि
इनका मूलनाम हरिचरणदास त्रिपाठी था। इनका जन्म सम्वत् १७६६ सारन (बिहार) जिले के चैनपुर ग्राम में हुआ था। इन्होंने ‘बिहारी सतसई’ पर टीका लिखी थी। इसके अतिरिक्त इनका एक स्फुट छंद-संग्रह भी मिलता है। इनकी रचनाओं में विशुद्ध अवधी का प्रयोग हुआ है।

हरितालिका प्रसाद
ये द्विवेदी युगीन अवधी कवि हैं। विशेष रचना दे सकने में भले ही प्रसाद जी सफल नहीं हो पाये, किन्तु अपने समय में अवधी काव्यधारा को जीवित रखने में अवश्य सफल रहे।

हरिदत्त सिंह
ये अलऊपुर, फैजाबाद के निवासी एवं अवधी कवि हैं।

हरिदास
हरिदास का पूर्वनाम हरिसिंह था। ये डीडवाणा (राजस्थान ) के निवासी थे। कहा जाता है कि ये गोरखनाथ जी के शिष्य थे। हरिदास का जीवन-वृतांत प्रमाण पुष्ट नहीं है। यों तो इनका स्थितिकाल आदिकाल से संबद्ध है। इनकी रचनाओं में पर्याप्त अवधी प्रयुक्त हुई है।

हरिनाथ शर्मा
शर्मा जी सीतापुर के बदैयाँ क्षेत्र के निवासी हैं। इन्होंने साहित्यिक क्षेत्र में अवधी भाषा को अपना केन्द्र बिन्दु बनाया है। अतः इनका अवधी प्रेम सराहनीय है।

हरिपाल सिंह
सुहिलामऊ, तहसील संडीला जनपद हरदोई निवासी सिंह साहब आधुनिक अवधी साहित्यकार थे। साथ-साथ ब्रज एवं खड़ी बोली का भी प्रयोग किया। इनका जन्म १८७९ को हुआ था एवं मृत्यु १९२३ ई. को। इन्होंने श्री दुर्गाविजय नामक अवधी ग्रंथ का प्रणयन किया है। जिसका प्रकाशन नवल किशोर प्रेस, लखनऊ से सन् १८९८ में हुआ। इनकी अन्य रचनाएँ हैं- विद्या के लाभ, राजा पुरूरवा और उर्वशी की कथा, सोम्बारी का मेला, ललितादेवी का मेला आदि लगभग एक दर्जन रचनाएँ हैं।


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