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Awadhi Sahitya-Kosh

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मुंशी गणेशप्रसाद कायस्थ
इनका उल्लेख ‘मिश्र बन्धु विनोद’ (द्वितीय भाग) में मिलता है। इनकी अवधी रचनाएँ हैं - ‘राधाकृष्ण दिनचर्या’ और ‘ब्रजवन-यात्रा।’

मंझन
मंझन जी का समय सं. १५७५ या १५९७ से पूर्व का है। ‘मधुमालती’ इनकी अतिप्रसिद्ध अवधी रचना है। ये हिन्दी के सूफी कवि थे। इनका पूरा नाम गुफ्तार मियाँ मंझन है। अपनी रचना मधुमालती में मंझन ने आध्यात्मिक तत्वों का समावेश स्थान-स्थान पर किया है। साधारणतः सूफी कवियों ने अपनी कहानी को दुखांत बनाया है, पर मंझन ने इसके विपरीत अपनी कहानी का अन्त नायक-नायिका के सुखद मिलन पर किया है। मंझन जी की काव्य भाषा अवधी है। दोहा-चौपाई छंदों का प्रयोग है।

मथुरादास
ये मलूकदास के शिष्य हैं। इनका समय १६४० वि. माना जाता है। इन्होंने मलूकदास के जीवन-चरित्र से सम्बद्ध ‘परिचयी’ नामक ग्रन्थ की रचना अवधी भाषा के माध्यम से की। इसके अतिरिक्त कई अवधी ग्रन्थों की रचना भी इन्होंने की।

मथुराप्रसाद सिंह ‘जटायु’
जटायु जी ने अवधी साहित्य की पर्याप्त सेवा की है, जिससे इन्हें अवधी क्षेत्र में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। शेष विवरण अनुपलब्ध है।

मदनमोहन पाण्डेय ‘मनोज’
मनोज जी का जीवन परिचय तो उपलब्ध नहीं है, परन्तु इन्होंने अवधी साहित्य की जो सेवा की है, वह श्लाघ्य है। इन्होंने गीत, काव्य, खण्ड काव्य आदि के साथ निबन्ध और कहानियाँ भी अवधी साहित्य को प्रदान किया है। साहित्य सर्जना के साथ-साथ लोकगीतों का संकलन भी इन्होंने किया है।

मदनेश महापात्र
मदनेश जी का वास्तविक नाम गयाप्रसाद है। इनका जन्म सं. १८८१ में असनी में हुआ था, इनके पिता का नाम दौलतराम था। इनके प्राप्त चार ग्रन्थ हैं- (१) सजन प्रकाश (२) फतेह भूषण (३) नायिका भेद (४) रसराज तिलक।

मधुर फैजाबादी
जन्म स्थान- फैजाबाद, अवधी रचना- ‘देश की माटी’।

मधुसूदन दास
ये इटावा निवासी माथुर चौबे थे और रामानुज सम्प्रदाय के वैष्णव थे। इनकी एक मात्र अवधी रचना ‘रामाश्वमेध’ उपलब्ध है।

मध्य अवध क्षेत्र की ग्रामोद्योग शब्दावली का सर्वेक्षण और विश्लेषण
यह डॉ. सजीवनलाल द्वारा सन् १९९३ में प्रस्तुत शोध-प्रबन्ध है। इस शोध-प्रबन्ध में मध्य अवध-क्षेत्र में प्रचलित ग्रामोद्योग शब्दावली का संकलन तथा उसका व्याकरणिक दृष्टि से विश्लेषण प्रस्तुत किया गया है।

मनछुहा/धनछुहा
यह उपनयन संस्कार का प्रथम लोकाचार है। इसे चाकी-काँड़ी तथा कहीं कहीं मठमंगरा भी कहा जाता है। जौनपुर में इसे ‘अनाज छुवइया’ कहते हैं, जो धनछुहा (धान्यछुआ) का ही आधुनिक रूप है।


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