यह डॉ. ज्ञानशंकर पाण्डेय कृत समीक्षा ग्रन्थ है। इसमें व्याकरण के साथ-साथ अवधी साहित्यकारों का विशद परिचय दिया गया है। इसका प्रणयन सन् १९८९ में हुआ।
हिन्दी विभाग लखनऊ विश्वविद्यालय
इस विभाग द्वारा संपादित अवधीग्रंथों, शोध प्रबन्धों, पत्र पत्रिकाओं, पाठ्यक्रमों और अवधी साहित्य हेतु किये गये प्रयासों की सर्वत्र सराहना की गयी है। ‘अवधी परिषद’ की स्थापना करके विभाग ने अवधी के मानकीकरण का कार्य किया है। अवधी पर यहाँ से दो दर्जन डी.लिट. एवं लगभग सत्तर पी-एच.डी. शोध कार्य सम्पन्न हो चुके हैं और दर्जनों विषयों पर शोध कार्य चल रहा है।
हिन्दुस्तानी ग्रामर
यह गिलक्राइष्ट कृत हिन्दी की गद्य कृति है। इसमें अरबी-फारसी के प्रभाव के साथ-साथ अवधी भाषा का भी पर्याप्त प्रभाव परिलक्षित होता है। इसका सृजन सन् १७९६ ई. में हुआ था।
हुसैन अली
ये सूफी कवि थे। इन्होंने सन् १७३८ में ‘पुहुपावती’ नामक रचना का प्रणयन किया। इसी रचना में इनके उपनाम सदानंद का उल्लेख मिलता है। इनके काव्य गुरू केशवलाल थे। इनकी भाषा ब्रज मिश्रित अवधी है। यों अवधी का विनियोग अपेक्षाकृत अधिक है।
हेमचन्द्र
इनका जन्म सं. ११४५ वि. में हुआ था तथा इनकी मृत्यु सं. १२२९ वि. में। हेमचन्द्र की रचनाएँ- प्राकृत पैंगलम् प्रबंध चिंतामणि, प्रबंध कोश, पुरातन प्रबंध संग्रह तथा व्याकरण है, जिनमें अवधी भाषा के बीज देखे जा सकते हैं।
होरी
होलिकोत्सव के अधिकांश लोकगीत अवध क्षेत्र में पुरुषों द्वारा गाये जाते हैं, केवल यह होरी गीत स्त्रियों द्वारा गेय है। इसमें वे अपना उल्लास व्यक्त करती हैं।