logo
भारतवाणी
bharatavani  
logo
Knowledge through Indian Languages
Bharatavani

Awadhi Sahitya-Kosh

Please click here to read PDF file Awadhi Sahitya-Kosh

गुलछर्रा
यह रमई काका की ‘फुहार’ की भाँति ही हास्य व्यंग्य प्रधान अवधी काव्य कृति है। इसका प्रकाशन सन् १९७७ में हुआ है। इस उल्लेखनीय काव्य कृति के कई प्रकाशन अद्यावधि प्रकाशित हो चुके हैं। इसमें कवि की ३६ रचनायें संकलित हैं। विषयगत वैविध्य और शिल्पगत वैशिष्ट्य इसका प्रमुख प्रदेय है। ‘गुलछर्रा’ एक फुलझरी के समान है, जिसके हास्य और व्यंग्य से आलम्बन तिलमिला नहीं उठता, वरन् उसके मधुर हास्य व्यंग्य से प्रभावित होकर आकृष्ट होता है। इस काव्य कृति की भाषा बैसवारी अवधी है। इसमें आंचलिक बोली बानी का सहज सौन्दर्य है। अवधी के लोक प्रचलित छन्दों का इसमें प्रयोग हुआ है।

गो-गज-चिकित्सा
यह महेश्वरबख सिंह कृत अवधी रचना है। इसमें महाभारत के नकुल द्वारा वर्णित गो-गज-चिकित्सा का वर्णन प्रस्तुत किया गया है।

गोपालकृष्ण निगम ‘विरोधी’
इनका जन्म लखनऊ के मोहल्ला फतेहगंज नाला में सन् १९१६ ई. में हुआ था। इनके पिता स्व. सूरजबली निगम अमीनाबाद हाईस्कूल (अब इण्टरमीडिएट) में अध्यापक थे। २१-२२ वर्ष की अल्पावस्था में पिता जी के देहावसान से इनकी माता ने इनको ले जाकर इनके ननिहाल (बहराइच) में पालन पोषण किया। अनेक महापुरुषों एवं विद्वानों के सीधे सम्पर्क में आकर इनमें हिन्दी प्रेम ही नहीं बल्कि काव्य प्रतिभा भी जाग्रत हुई। कई कालेजों में अपनी शिक्षा पूरी करके ये अध्ययन कार्य से जुड़े। १९७४ ई. में राजकीय रचनात्मक प्रशिक्षण महाविद्यालय, लखनऊ से अवकाश ग्रहण किया। सम्प्रति ई-२१४४, राजाजी पुरम, लखनऊ में निवास करते हैं। ‘रामाचार्या’ इनका अवधी खण्ड काव्य है। इनका अधिकांश काव्य स्तुतिपरक है। विभिन्न देवी-देवताओं के सम्बन्ध में पचासों रचनाएँ इन्होंने लिखी हैं। लहचारी, चैती आदि लोकगीतों पर भी इनकी लेखनी चली है।

गोपालचन्द्र मिश्र
इनका जन्म संवत् १६६० के आसपास माना जाता है। इनके पिता का नाम गंगाराम था। ये छत्तीसगढ़ी की पुरानी राजधानी रतनपुर के राजा राजसिंह के दरबार में रहते थे। राजा ने इनको अपना दीवान बनाया था। इन्होंने सं. १७४६ में राजाज्ञानुसार ‘खूब तमाशा’ नामक रचना का प्रणयन किया था। इसके अतिरिक्त जैमिनी अश्वमेध, सुदामा चरित, भक्ति चिंतामणि, रामप्रताप एवं छंद विलास आदि कवि की रचनाएँ मिलती हैं। इनकी कविताओं का अवधी साहित्य में विशिष्ट स्थान है।

गोस्वामी तुलसीदास
विश्वकवि गोस्वामी तुलसीदास का जन्म सं. १५८९ में अवध क्षेत्र में हुआ था। इनका जीवनवृत्त भले ही विवादास्पद हो, किंतु गौरव नहीं। गोस्वामीजी ने ‘ग्राम्यगिरा’ अवधी में अपनी कल्पकृति ’रामचरित मानस’ की रचना करके इस विभाषा को विश्वस्तरीय भाषा की महत्ता प्रदान की और उसे देववाणी की प्रतिस्पर्धा में प्रतिष्ठित करके जिस अंभूतपूर्व गुण गरिमा से अभिमण्डित किया, वह विस्मयकारक है। अवधी में गोस्वामी जी ने तीन रूपों का प्रयोग किया है- १- पूर्वी अवधी, जिसमें ‘बरवै रामायण’ और ‘रामलला नहछू’ की रचना की गई है, २- पश्चिमी अवधी, जिसमें जानकी मंगल और पार्वती मंगल की रचना की गई है, तथा ३- बैसवारी अवधी, जिसमें रामचरितमानस का प्रणयन किया गया है। इन कृतियों का विवरण यथास्थान द्रष्टव्य है। महत्त्व की दृष्टि से तुलसी का कर्तृत्त्व सर्वविदित है, अतएव यहाँ सूत्र रूप में ही प्रस्तुत्य है।

गौतम ऋषि
गौतम ऋषि का जीवन परिचय अप्राप्त है, किन्तु यह निर्विवाद सत्य है कि इन्होंने अवधी को गद्य कृति प्रदान कर उसकी गद्यात्मक धरोहर में पर्याप्त अभिवर्द्धन किया है। इनकी रचना है -‘सगुनावती’।

डॉ. गौरीशंकर पाण्डेय ‘अरविन्द’
अरविन्द जी का जन्म २८ अगस्त १९४० ई. को ग्राम जरौली, हैदरगढ़ जनपद बाराबंकी में हुआ था। इनके पिता का नाम रामखेलावन पाण्डेय है। पी-एच.डी. तक शिक्षा ग्रहण करने के पश्चात ये अध्यापन-कार्य में लग गये। साकेत महाविद्यालय फैजाबाद के शिक्षा विभाग में प्राध्यापक पद को ये सुशोभित कर रहे हैं। तुलसीदास, स्वर और रेखाएँ, भवानी भीख, अभिनन्दन ग्रंथ इनकी प्रमुख कृतियाँ हैं। सम्प्रति ये अवधी संस्थान, अयोध्या के महामंत्री हैं तथा सामाजिक संस्थाओं एवं देश प्रेम की भावनाओं से युक्त अवधी रचनाएँ कर रहे हैं।

ग्यारहाँ
यह भगवानदास कृत अवधी रचना है।

घट रामायण
यह हाथरस निवासी संत तुलसीदास की अवधी रचना है। इसमें निर्गुणोपासना से सम्बद्ध रामकथा का वर्णन है।

घाघ
इनका जन्म सन् १९९६ ई. में हुआ था। ‘घाघ’ ने लोक जीवन पर आधारित काव्य की रचना की है। इनकी रचनाएँ ‘कहावतों’ का रूप ले चुकी हैं। आचार्य शुक्ल, रसाल जी तथा हजारी प्रसाद द्विवेदी आदि प्रायः सभी इतिहासकारों ने इन्हें हिन्दी का लोक कवि माना है। रामनरेश त्रिपाठी ने इन्हें अकबर का समकालीन माना है। आज सम्पूर्ण उत्तर भारत में मौसम तथा इनके खेती - पाती विषयक कहावतें लोकप्रिय हैं। स्थान के अनुसार इनकी भाषा में बदलाव होता रहा है। देहात के अपढ़ किसानों के लिए ये छन्द सूत्र का कार्य करते हैं। ये छन्द वर्षा, बुवाई, जोताई, गोड़ाई, दँवाई, भोजन तथा स्वास्थ्य आदि के सम्बन्ध में रचे गए हैं। असमी तथा उड़िया में भी ‘डाक’ नाम के कवि हुए हैं, जिनकी रचनाएँ ‘घाघ’ की रचनाओं से साम्य रखती हैं। बिहार, राजस्थान में भी ‘डाक’ के नाम से प्रसिद्ध हैं। तुलनात्मक आधार पर यह निष्कर्ष निकाला गया है, तीनों स्थानों के ‘डाक’ एक ही हैं। यह तथ्य अभी परीक्षणीय है। इनके छन्दों की पुरानी प्रतिलिपि नहीं मिलती है। लोगों से सुन-सुन करके इनका संग्रह किया गया है।


logo