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Awadhi Sahitya-Kosh

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चन्द्रशेखर पाण्डेय ‘चन्द्रमणि’
इनका जन्म बन्नावाँ, रायबरेली में १९०८ में हुआ था। इन्होंने अश्लील लोकगीतों के विरोध में लोकगीतों का एक संग्रह ‘होली का हुलम्बा’ सृजित किया। इस संग्रह की भाषा अवधी है। इनकी मृत्यु सन् १९८२ में हुई।

चन्द्रशेखर बाजपेयी
इनका जन्म पौष शुक्ल पक्ष दशमी संवत् १८५५ को असनी के निकट मुअज्जमाबाद जिला फतेहपुर में हुआ था। इनके पिता का नाम मनीराम बाजपेयी था। इनकी प्रमुख कृतियाँ हैं - रसिक विनोद, हम्मीर हठ, विवेक विलास, हरिभक्ति विलास, नख - शिख, गुरु पंचाशिका, वृन्दावन शतक, माधवी वसंत आदि। हम्मीर हठ (वीर-काव्य) इनकी सर्वाधिक लोकप्रिय रचना है। सं. १९३२ में इनका निधन हो गया। ये संस्कृत के अच्छे विद्वान थे। इनकी अनेक अवधी कविताएँ हैं। ये अपनी कविताओं में ‘शेखर’ उपनाम का प्रयोग करते थे। इन्हें पटियाला, कश्मीर, जोधपुर आदि रियासतों में आश्रय प्राप्त था। अवधी के विकास में इनका योगदान उल्लेखनीय है।

चन्द्रशेखर सिंह ‘चन्द्र’
लखनऊ जनपद के ग्राम भवानीपुर पो. इन्दौरा बाग निवासी श्री रघुनाथ सिंह चौहान के सुपुत्र चन्द्र का जन्म १६ अगस्त सन् १९३१ को हुआ। इन्होंने अवधी के साथ-साथ खड़ी बोली में भी रचनाएँ की हैं। इनके काव्यसंग्रह हैं-छंदमाला भाग-१, छंदमाला भाग-२, गीतमंजरी, लंका-संग्राम। इनकी स्फुट रचनाएँ अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं।

चन्द्रिका प्रसाद बाजपेयी ‘कौतुक’
इनका जन्म सं. १९६४ में जिला रायबरेली के ग्राम बेहटा कला के ‘बाजपेयी खेरा’ में हुआ था। इनके पिताजी का नाम निजानन्द बाजपेयी था। रायबरेली में श्री रामावतार शुक्ल द्वारा स्थापित ‘चातुर मंडल’ के ये प्रकाशमान नक्षत्र थे। इसके अतिरिक्त रायबरेली के स्वतंत्रता संग्राम तथा राष्ट्रीय कविता के क्षेत्र में कौतुक जी की भूमिका महत्त्वपूर्ण है। समस्यापूर्ति के कवि सम्मेलनों में ये कई बार पुरस्कृत हो चुके हैं। इन्होंने अनेक प्रकार की कवितायें की हैं। सामाजिक-सामयिक विकृतियों पर इनकी लेखनी साधिकार चली है। इनकी रचनाओं के संकलन एवं संग्रह की आवश्यकता है। इनका निधन सं. २०३९ में हो गया।

चमरौधा
यह कृपाशंकर मिश्र ‘‘निर्द्वन्दु” द्वारा प्रकाशित काव्य-कृति है। इसमें विभिन्न विषयों से संबंधित अवधी कविताएँ हैं। इसकी भाषा बैसवारी अवधी है, जिसमें ठेठ देशज शब्दों की गूढार्थ व्यंजना दिखाई देती है। उल्लेखनीय कविताएँ हैं - सिपाही की चिट्ठी, किसानी आदि।

चरनदास
ये कृष्ण-काव्य-परम्परा से सम्बद्ध कवि हैं। ब्रजमण्डल के निवासी होने के बावजूद इन्होंने अवधी भाषा में सं. १७६० में ‘ब्रजचरित’ ग्रंथ लिखकर अवधी को जो सम्मान प्रदान किया है, वह प्रशंसनीय है।

चरनदास (संत)
इनका जन्म सं. १७६० में राजपूताना के मेवाण प्रदेश के डेहरा ग्राम में मुरलीधर के घर में हुआ था। पिताजी की मृत्यु के बाद ये ९-१० वर्ष की अवस्था में अपने मातामह के साथ दिल्ली चले आये। इनके प्रसिद्ध ग्रन्थ हैं - ‘ज्ञान स्वरोदय’, ’अष्टांग योग’, ‘पंचोपनिषदसार’, ‘भक्ति-पदार्थ’, ‘अमर लोक’, ’अखण्ड धाम’, ’सन्देह-सागर’, ‘भक्ति-सागर’ आदि। इनके प्रामाणिक २१ ग्रन्थ हैं। इन्होंने अधिकांश ग्रन्थ और साखियाँ अवधी भाषा में रची हैं। कहा जाता है कि इनके ५२ शिष्य थे, जिन्होंने चरनदास जी द्वारा प्रवर्तित चरनदारी सम्प्रदाय की ५२ शाखाएँ स्थापित की।

चर्यागीत
यह मूलतः बौद्ध साहित्य का अंग है। इसमें दिनचर्या का प्रतिफलन होता रहा है। बुद्धचर्या इस दृष्टि से उल्लेखनीय है। ‘चर्यागीतों’ में सिद्धों की मनःस्थिति का प्रतीकात्मक निदर्शन किया गया है। इनमें श्रृंगार, वीभत्स और उत्साह की मार्मिक व्यंजना की गई है। प्राप्त प्रमाणों के अनुसार गीतों में जनभाषा अवधी के बहुत प्रयोग हुए हैं, शायद इसलिए कि दोनों एक ही मूल से संबद्ध हैं।

चहलारी - नरेश
अवधी साहित्य की अमर विभूति गुरुप्रसाद सिंह ‘मृगेश’ जी द्वारा रचित यह आंचलिक इतिहास से ओत-प्रोत एक महाकाव्य है। इसमें राजा बलभद्र सिंह को नायक बनाकर प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की गौरव गाथा वर्णित है।

चहली
अवध प्रदेश में होलिकोत्सव के अवसर पर सवाद्य वृन्दगान के रूप में गाया जाने वाला यह लोकगीत विशेष चहलपहल पूर्ण होने के कारण चहली कहलाता है। इसमें विविध पौराणिक आख्यान उपलब्ध होते हैं।


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