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Awadhi Sahitya-Kosh

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किसान कटौंझनि
यह स्व. अवधेश त्रिपाठी की एक अवधी रचना है, जिसमें किसानों के यथार्थ जीवन पर प्रकाश डाला गया है।

कीर्तन
यह एक स्तुतिपरक अवधी गीत है, जिसमें पंचदेवोपासना और विनयभावना दृष्टिगत होती है। उदाहरण - ‘महरानी वरदानी, जै जै विंध्याचल रानी।’

कीर्तिलता
यह विद्यापति की कृति है, जो मिथिलानरेश गणेश्वर के पुत्र कीर्ति सिंह की प्रशस्ति में लिखी गई है। कीर्तिलता का रचनाकाल १४०२ ई. के लगभग है। इसमें विद्यापति ने स्वयं को आश्रयदाता का ‘खेलन कवि’ कहा है। आलोचकों के मतानुसार ‘खेलन कवि’ विद्यापति की उपाधि है, जो सरस कविता लिखने के कारण उन्हें मिली है, किंतु इनका तात्पर्य है बाल सखा से। इस ग्रन्थ में महाराज कीर्ति सिंह का राज्याभिषेक, युद्धारोहण, विजय आदि वर्णित है। साथ ही तत्कालीन राजनीतिक, सामाजिक परिस्थितियों का चित्रण हुआ है। इस काव्य का रूप ऐतिहासिक चरित-काव्य का है। ऐतिहासिक घटनाओं का यथातथ्य अंकन ही कवि का उद्देश्य रहा है। कल्पना और अतिरंजना का इसमें कम से कम सहारा लिया गया है। भाषा एवं साहित्य की दृष्टि से विशिष्ट इस रचना में पद्य के साथ गद्य का भी प्रयोग मिलता है। देशी भाषा अपभ्रंश (अवहट्ट) में कीर्तिलता की रचना की गई है। इसमें एक ओर संस्कृत का मिश्रण हैं तो दूसरी ओर लौकिक भाषाओं का। कीर्तिलता में अवधी के प्रारम्भिक रूप के दर्शन मिलते हैं।

डॉ. कुँवर चन्द्रप्रकाश सिंह
कुँवर साहब का जन्म सीतापुर जनपद के दसिया ग्राम में सन् १९१० ई. में हुआ था। ये अवधी के यशस्वी साहित्यकार हैं। अवधी के प्रति इनका लगाव निरन्तर बना रहा जो अवधी रचनाओं के मध्य व्यक्त होता रहा है। युवराजदत्त कालेज, लखीमपुर में हिन्दी के प्राध्यापक पद पर कार्य करते हुए इन्हें अवधी जनचेतना के कवि पढ़ीस का सान्निध्य मिला। फलतः यदा-कदा ये अवधी में काव्य रचना भी करने लगे। कुँवर साहब ने साहित्य की सभी विधाओं का प्रयोग किया है। इन्होंने लगभग एक दर्जन काव्यग्रन्थ, नाटक तथा लगभग एक दर्जन समीक्षा ग्रन्थ लिखे हैं। बड़ौदा, जोधपुर तथा मगध विश्वविद्यालय में हिन्दी विभागाध्यक्ष पद पर रहने के पश्चात् सेवा निवृत्त होकर तथा आजीवन साहित्य सेवा करके कुँवर साहब १९९७ में दिवंगत हो गए।

कुँवर बहादुरलाल श्रीवास्तव ‘शेष’
शेष जी का जन्म नौबस्ता, जिला प्रतापगढ़ में १९१० ई. में हुआ। इनको बाल्यकाल सुखसुविधापूर्वक बीता। इन्होंने एच.टी.सी. ट्रेनिंग प्राप्त करके वर्षों तक अध्यापन कार्य किया। इनकी रचनाओं में सामाजिक चिंता-धारा वेगपूर्वक प्रवाहित होती रही है। नेतावर्ग की कपटलीला, पुलिस प्रशासन के अत्याचार और सामाजिक शोषण-पीड़न इनके लेखन के मूल लक्ष्य रहे हैं। इन्होंने तीन काव्य-संग्रह प्रस्तुत किए हैं - (१) गाँव की गोहार (२) अमर बापू (३) अवध खण्ड। इन्होंने हरिजन समस्या और छुआछूत पर विशेष व्यथा व्यक्त की है। इनका कवित्व समाजवादी दर्शन से पर्याप्त प्रेरित दिखता है। ‘मालिक-मजूर’ कविता में इसका श्रेष्ठ नमूना दर्शनीय है। शेष जी ने अध्यापकों की दयनीय दशा की करुण-कथा भी कही है। इनकी रचनाओं में क्रान्तिकारी भाव भी मुखरित हुआ हैं। कवि को न सुधार की आशा है और न नियोजन पर विश्वास। ’हमरे गाँव’ शीर्षक रचना में उन्होंने गाँव की पीड़ा व्यक्त की है। पूर्वी अवधी के प्रयोगों से। ओत-प्रोत इनमें निर्भीकता एवं स्पष्टवादिता भी देखने को मिलती है।

कुतबन शेख
इन्होंने सं. १५५८ में अवधी भाषा में ‘मृगावती’ की रचना दोहा-चौपाई में की। कुतबन शेख सूफी मत के अनुयायी कवि थे। प्रेमाख्यानक परम्परा में उनका स्थान महत् है। कवि ने कृति का रचनाकाल हि. सन् ९०९ बताया है, जिसके अनुसार वि.सं. १५६० होता है, जिसे आचार्य रामचन्द्र शुक्ल, मिश्र बन्धु आदि विद्वानों ने सही माना है। इस कृति में मृगावती नामक राजकुमारी को नायिका के रूप में प्रतिष्ठित कर कवि ने प्रेम-पक्वता की स्थापना की है।

श्री कुटिलेश
ये उन्नाव जनपद के टेढ़ा ग्राम के निवासी अवधी कवि रहे हैं। इन्होंने ‘गडबड़ रामायण’ नामक अवधी रचना समाज को समर्पित कर सामाजिक बुराइयों को उद्घाटित करने की कोशिश की है।

कृपा निवास
ये रामकाव्य परंपरा से सम्बद्ध अवधी कवि हैं। इनका समय सं. १८४३ और निवास-स्थान अयोध्या रहा हैं। इन्होंने राधाकृष्ण की लीलाओं से सम्बद्ध एक ग्रंथ सृजित किया है। इनके अन्य ग्रंथ हैं - भावना पचीसी, समय प्रबन्ध, माधुरी प्रकाश, जानकी सहस्रनाम, लगन पचीसी आदि। ये सभी ग्रंथ रामचरित से समबद्ध हैं।

कृपाशंकर मिश्र ‘निर्द्वनद्व
अवधी रचनाकारों में निर्द्वन्द्व जी का उल्लेखनीय स्थान है। इनका जन्म ‘ऊँचगाँव-सानी’ जिला उन्नाव में हुआ था। इन्होंने हिन्दी में पी-एच.डी. की उपाधि प्राप्त की है। वर्षों तक अध्यापन कार्य करके सम्प्रति स्वतंत्र लेखन में रत हैं। इनकी दो कृतियाँ ‘बमचक’ और ’चमरौधा’ उल्लेखनीय हैं। इनकी कविताओं में जनवादी चिंतन का स्वर है। कवि ने ग्राम्य अंचल और संस्कृति के सजीव चित्र अपने गीतों में उतारे हैं। हास्य व्यंग्य के क्षेत्र में भी कवि ने अपनी सुरुचि का परिचय दिया है। साथ ही राष्ट्रीय, सामाजिक समस्याओं की ओर यथाप्रसंग दृष्टि डाली है। ये बैसवारी अवधी के कवि हैं। इन्होंने गेय छन्दों के अतिरिक्त मुक्त छन्दों का प्रयोग भी अपनी कविता में किया है और शिल्पगत नये प्रयोगों द्वारा अवधी कविताओं को समृद्ध किया है।

डॉ. कृष्णकुमार श्रीवास्तव
प्रतिभा के धनी श्रीवास्तव जी लखीमपुर, खीरी के निवासी हैं। ये अपनी अवधी रचनाओं के लिए विख्यात हैं।


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