यह पं. प्रताप नारायण मिश्र द्वारा रचित लघु कथा है। भाषा अवधी है। इसमें दोहा-चौपाई शैली का प्रयोग है। एक गड़रिया, मूसा और आकाशवाणी के मध्य इसमें संवाद कराया गया है।
डॉ. गणेशदत्त ’सारस्वत’
इनका जन्म सीतापुर जनपद के बिसवाँ नगर में १० सितम्बर, १९३६ ई. को हुआ था। इनके पिता का नाम पं. उमादत्त सारस्वत है। ये खड़ी बोली के साथ-साथ अवधी में भी रचनाएँ करते हैं। इनके द्वारा लिखित एवं संपादित दर्जनों ग्रंथ हैं। ये आर.एम.पी. स्नातकोत्तर महाविद्यालय, सीतापुर में हिन्दी विभागाध्यक्ष के पद को भी सुशोभित कर चुके हैं।
मुंशी गणेशप्रसाद कायस्थ
इनका उल्लेख ‘मिश्र बन्धु विनोद’ (द्वितीय भाग) में मिलता है। इनकी अवधी रचनाएँ हैं - ‘राधाकृष्ण दिनचर्या’ और ‘ब्रजवन-यात्रा।’
गणेशप्रसाद गणाधिप
इनका जन्म सन् १९०१ में ग्राम भुइला, जनपद सीतापुर में हुआ था। ये मूलतः ब्रज और खड़ी बोली के कवि थे। फिर भी इन्होंने अवधी में कभी-कभी रचनाएँ की हैं। जैसे - ‘काह्यक यार बकावत हौ हमका, हमहू छलछंद पड़े हन।’
गयाचरण
ये द्विवेदी युग की अवधी काव्य धारा से सम्बद्ध महत्वपूर्ण कवि है। इनका साहित्य अप्राप्य है।
पं. गयाप्रसाद तिवारी ‘मानस’
तिवारी जी का जन्म ८ जनवरी सन् १९२१ ई. को कानपुर निवासी पं. सदाशिव तिवारी एवं श्रीमती शिवदुलारी दम्पति के घर हुआ। सम्प्रति ३७२, राजेन्द्र नगर, लखनऊ के निवासी बन गये हैं। शिक्षा ग्रहण करने के बाद उ.प्र. सचिवालय में कार्यरत हो गये। ३१ जनवरी १९७९ को उप सचिव के पद से सेवानिवृत्त हुए। इन्होंने खड़ी बोली, ब्रज भाषा के साथ-साथ अवधी भाषा में भी काव्य सृजन किया। इनकी रचनाएँ हैं - मानद विनयावती, ब्रज विहार, मानस काव्य तरंगिणी, मनुआ मगन मगन है चोला, दोहा, गीत भी इन्होंने लिखे हैं। ये ‘काव्यश्री’ उपाधि से सम्मानित भी किये गये हैं।
गयाप्रसाद शुक्ल ‘सनेही’
सनेही जी का जन्म १८८३ ई. में हड़हा (उन्नाव) नामक ग्राम में हुआ। इन्होंने कानपुर को केन्द्र बनाकर कई वर्षों तक मंचीय काव्य का संचालन किया। सनेही जी अपने युग के आचार्य कवि रहे हैं, साथ ही गुरुवत् पूज्य भी। अपने जीवनकाल में इन्होंने अनेक अखिल भारतीय विराट कवि सम्मेलनों को संयोजन एवं संचालन किया। दीर्घ अवधि तक ये ‘सुकवि’ नामक मासिक पत्रिका के संपादक भी रहे। इस युग को इतिहासकारों ने सनेही युग की संज्ञा दी है। सनेही जी ने त्रिशूल’ उपनाम से ओजगुण पूर्ण राष्ट्रीयता प्रधान रचनाएँ की हैं। इनकी प्रकाशित कृतियों में प्रेमपचीसी, कुसुमांजलि, कृषक क्रन्दन, मानस तरंग, करुण भारती, संजीवनी (काव्य-संग्रह) आदि उल्लेखनीय हैं। अवधी काव्य के क्षेत्र में सनेही जी की स्फुट रचनाएँ महत्वपूर्ण हैं।
गारी
अवध क्षेत्र में विवाह एवं अन्य शुभ अवसरों पर स्त्रियों द्वारा गारी गाने की प्राचीन-प्रचलित परम्परा रही है। इन उत्सवों में जब भोजन का समय होता है, उसी समय गारी गाई जाती है। गारियाँ प्राचीन शैली में राम-विवाह का माध्यम बनाकर गाई जाती हैं। कालांतर में इन गीतो में विकृति आ गई और ओछे शब्दों का प्रयोग होने लगा। भोजन के समय गारी गाने का एक वैज्ञानिक सिद्धांत भी है। गारी सुनने से चित्त को प्रसन्नता होती है, जिससे भोजन आसानी से पच जाता है। आधुनिक गारी में राजनैतिक, आर्थिक और सामाजिक सभी समस्याओं को प्रश्रय मिला है।
गिरधारी लाल ‘पुंडरीक’
इनका जन्म बाराबंकी जनपद के रघुनाथ गंज में सन् १९५१ में हुआ। इन्होंने अवधी कविताओं के माध्यम से गाँव का यथार्थ चित्रण प्रस्तुत करने की कोशिश की है। ये सम्प्रति अध्यापनरत हैं।
गिरिजादयाल ’गिरीश’
गिरीश जी लखनऊ जनपद के निवासी रहे हैं। इनकी रचनाओं में किसानों के जीवन का सुन्दर वर्णन देखने को मिलता है। सुख-सुविधा विहीन होने पर भी कृषक अपने जीवन से उदासीन नहीं होता। कर्म पर उसे असीम विश्वास है। गिरीश जी के गीत, विषय-वस्तु तथा वर्णन-कौशल की दृष्टि से पर्याप्त उत्कृष्ट हैं। इनकी भाषा सजीव एवं ललित है।