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Awadhi Sahitya-Kosh

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इन्द्रदत्त
ये द्विवेदीयुगीन अवधी काव्य-धारा के रचनाकार हैं।

इन्द्रगोपाल सिंह ‘इन्द्र’
ख्याति प्राप्त अवधी कवि रघुनाथ सिंह चौहान के पुत्र इन्द्रजी का जन्म सं. १९८२ वि. में भवानीपुर ग्राम में हुआ था। साहित्यानुराग इन्हें विरासत में मिला। शिक्षा न के बराबर ही रही। इन्होंने भक्त प्रह्लाद’ नामक पुस्तक की रचना की है। इसके अतिरिक्त अनेक स्फुट रचनाएँ हैं। छंद, गीत, पद आदि भी लिखे हैं। इनकी अवधी सामान्य जन-भाषा है।

इन्द्रावती
यह नूर मोहम्मद कृत अवधी प्रेमाख्यान है। इसमें कलिंग के राजकुमार राजकुँवर और आगमपुर की राजकुमारी इन्द्रावती की प्रेम-कथा वर्णित है। हर पाँच चौपाइयों के बाद दोहा का योग हैं। भाषा में संस्कृत और ब्रज के भी शब्द प्रयुक्त हुए हैं।

इश्क विनोद
यह सुल्तानपुर निवासी सीता प्रसाद कृत अवधी रचना है। इसमें बरवै छंद का प्रयोग हुआ है।

ईश्वरदास
ईश्वरदास नामक कवि, राम काव्य के सर्जक रहे हैं। जायसी और तुलसी (जिन्होंने अवधी को विश्व साहित्य में प्रतिष्ठा दिलाई) के आविर्भाव से पहले ये १५ वीं शती के मध्य में हुये थे, उपलब्ध साहित्य के आधार पर इन्हें अवधी का प्रथम उल्लेखनीय कवि माना जाता है। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने इनकी रचना ‘स्वर्गारोहिणी कथा’ को अवधी की प्रथम रचना माना है। इनकी अन्य रचनायें हैं:- भरत-विलाप, राम-जन्म, अंगद-पैज। ये तीनों रचनायें राम कथा पर आधारित है। इनकी रचना अवधी भाषा में हुई है। इन्होंने अपनी कृतियों -रामजन्म व अंगद-पैज में आख्यान शैली का प्रयोग किया है। आचार्य पं. विश्वनाथ प्रसाद मिश्र के शब्दों में - ’ईश्वरदास की सभी प्राप्त रचनायें इस बात का स्पष्ट संकेत करती हैं कि वे कथा शैली के सिद्धहस्त रचनाकार थे। आख्यान तत्व इनकी कृतियों में सहजता से मिलता है। इस तरह तुलसी और जायसी जैसे विश्वविश्रुत कवियों ने कथा आख्यायिका शैली का जो भव्य रूप अवधी भाषा की दृढ़ पीठिका पर खड़ा किया, उसका आरम्भ प्रारम्भिक अवधी में और विशेषकर ईश्वर दास की रचनाओं में हुआ है। ईश्वर दास द्वारा प्रणीत ‘सत्यवती कथा’ का उल्लेख भी मिलता है। मसनवी शैली में रचित यह कृति हिन्दी-प्रेमाख्यान परम्परा से ओत-प्रोत है। इसमें भारत की सती-साध्वी नारियों का चरित्र निरूपित किया गया है। भाषा अवधी है, पर सूफियों जैसी जन-भाषा नहीं। इसका रचना-काल सन् १५०१ ई. है।

ईश्वरी प्रसाद
भारतेन्दुयुगीन अवधी कवियों में इनका महत्वपूर्ण स्थान है। इनका निवास-स्थान बैसवारा क्षेत्र है।

ईसायण
यह एस. मार्शलीन द्वारा अवधी भाषा में लिखा गया एक महत्वपूर्ण महाकाव्य है। इसकी मूल कथा ईसा-चरित्र है। इसको हिन्दी जगत में सर्वप्रथम मान्यता दिलाकर प्रकाश में लाने का काम श्री मायापति मिश्र ने किया। मिश्र के अनुसार ‘मानस’ और पदमावत की रचना पद्धति को आधार मानकर रचित ‘ईसायण’ का आरम्भ ‘मंगलाचरण’ दोहों से होकर अंत सोरठा से हुआ है। ग्रन्थ से प्राप्त सूचनाओं के आधार पर इसका प्रकाशन काल १९३८ ई. है। ‘मानस’ की चौपाइयों की भाँति इस काव्य की चौपाइयों में भी सरसता देखने को मिलती है।

उक्ति-व्यक्ति-प्रकरण
दामोदर पण्डित रचित यह ग्रन्थ अवधी माध्यम से लिखा गया संस्कृत का प्रथम व्याकरण है। इसके आधार पर डा. रामविलास शर्मा की स्थापना है कि अवधी संस्कृत के समानान्तर विकसित हुई है तथा यह भी कि अवधी भाषा का व्याकरण संस्कृत व्याकरण से पूर्व निर्धारित था। तात्पर्य यह कि अवधी आरम्भ में ही एक स्वायत्त भाषा रही है। यह ग्रंथ इसका प्रमाण है।

उबहटि
नववधू के ससुराल आगमन के अवसर पर उसका स्वागत करती हुई स्त्रियाँ यह अवधी लोक गीत गाती हैं। इसमें मंगलाशा का भाव होता है।

उभय प्रबोधक रामायण
यह महात्मा बनादास द्वारा प्रणीत अवधी ग्रंथ है। इसकी कथा सात काण्डों में विभक्त है। इसमें छप्पय, सवैया, कुण्डलियाँ, घनाक्षरी आदि छंदों का प्रयोग हुआ है। इसकी रचना सं. १९३१ में हुई थी।


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