ये जनपद मेरठ की रहने वाली व्यंग्यकार कवयित्री हैं। इन्होंने अपना अवधी प्रेम ‘आपन मान जात है हाँसी’ अदि रचनाओं के माध्यम से प्रकट किया है।
कमलेश मौर्य ‘मृदु’
मृदु जी का जन्म सन् १९५० के आसपास सीतापुर जनपद के रामाभारी आम में हुआ था। शत्रुहनलाल मौर्य इनके पिता थे। ये मंच के सफल कवि रहे हैं। मौर्यजी युवापीढ़ी के सशक्त हस्ताक्षर के रूप में प्रसिद्ध हैं। ’चकबन्दी’, ‘अंबियन केरि बहार’, बाढ़ राहत’, ‘दसवाँ हिस्सा’, ’हमार देसवा’ आदि इनकी अवधी की प्रमुख रचनाएँ हैं।
कलुआ बैल
यह चन्द्रभूषण त्रिवेदी ‘रमई काका’ कृत अवधी उपन्यास है।
कहरवा
जिन गीतों का प्रयोग कहार लोग करते हैं, वे ’कहरवा’ कहलाते हैं। यह अवधी का जातीय लोकगीत है। कहरवा हुडुक और मंजीरे की तान पर गाए जाते हैं। कहरवा का मुख्य विषय नारी का सौन्दर्य वर्णन हैं। इनमें नारी की विभिन्न दशाओं का भी वर्णन मिलता है। जायसीकृत कहरानामा या ‘महरावाईसी’ इसका श्रेष्ठ उदाहरण है।
कहरानामा
यह जायसी की महत्वपूर्ण अवधी रचना है। इसमें डोली को उठाने वाले कहारों से सम्बद्द कथा है।
काजरु
विवाह और उपनयन के अवसर पर सौन्दर्य प्रसाधन करते अथवा काजल लगाते हुए यह अवधी गीत स्त्रियों द्वारा गाया जाता है। इसमें पारस्परिक सम्बन्धों का प्रगाढ़ परिचय प्राप्त होता हैं।
काजी का नौकर
यह अवधी सम्राट पं. वंशीधर शुक्ल कृत अवधी कहानी है, जिसका सृजन सन् १९५५ में हुआ थी। इसका प्रकाशन दैनिक ’स्वतंत्र भारत’ में हो चुका है।