logo
भारतवाणी
bharatavani  
logo
Knowledge through Indian Languages
Bharatavani

Definitional Dictionary of Archaeology (English-Hindi)
A B C D E F G H I J K L M N O P Q R S T U V W X Y Z

Amersfoot interstadial
अमेरफुट उपअंतराहिमानी वाइशैलियन शीत चरण का उप-अन्तराहिमानी काल। रेडियो कार्बन प्रविधि द्वारा काल आज से लगभग 68,000 से 65,000 वर्ष पूर्व आँका गया है।

amino acid racemization
ऐमीनो अम्ल रेसिमीकरण पुरातत्व में प्राचीन कंकालों के तिथि निर्धारण हेतु प्रयुक्त प्रविधि। मृत्यु उपरांत शरीर के साथ अस्थि का भी अपघटन होता है। अस्थि के प्रोटीन घटक विशेषकर सोलैजन में विघटन एवं परिवर्तन होता है। अन्य प्रोटीनों की तरह कोलैजन में विघटन एवं परिवर्तन होता है। अन्य प्रोटीनों की तरह कोलैजन, ऐमिनो अम्ल इकाई से मिलकर बनता है। यही ऐमीनो अम्ल अलग होकर विखंडित से समय निर्धारण में सहायता मिलती है। जीवन में प्रत्येक ऐमीनो अम्लों में उनकी आणविक संरचना में एक विशिष्ट अभिविन्यास रहता है। (इसे 'L'-आइसोमर कहते हैं)। मृत्यु के बाद समस्त ऐमीनो अम्ल का आणविक संरचना मे पुनः पंक्तिबंधन होता है (इसं 'D'-आइसोमर कहते है)। इस प्रक्रिया को रेसिमीकरण कहते हैं जो बहुत धीमे-धीमे एक समान होता है। 'L'आइसोमर और 'D' आइसोमर के मापन से कंकालों का तिथि निर्धारण किया जाता है।

Amorites
एमोरित जन प्रचीन फिलस्तीन एवं सीरिया के लोग, जो मुख्यतः उत्तरी एवं पूर्वी पर्वतीय क्षेत्रों में रहते थे। कीलाक्षरी साहित्य में अमूरू (Amurru) शब्द का उल्लेख ई. पू. तृतीय सहस्राब्दि के मध्य मिलता है। मिल्री स्मारकों में इन लोगों का रंग हल्का श्वेत, नेत्र नीलवर्णी तथा केश काले दिखाए गए हैं। इन लोगों ने, लगभग ई. पू. 2000 में सुमेरी सभ्यता का उन्मूलन किया और मेसोपोतामिया प्रदेश में, इन्होंने सीरिया एवं फिलस्तीन के आरंभिक कांस्य युगीन नगरों को जीता था।

amphitheatre
रंगवाट रंगभूमि, अखाड़ा गोलाकार, वृत्तीय या अर्द्धवृत्तीय रंगशाला या अखाड़ा, जिसमें दर्शकों के बैठने के लिए चारों ओर सोपानाकार आसन बने होते हैं, रंगशाला का मध्य भाग खुला होता है तथा जहाँ दर्शकों को प्रतियोगी अपने करतब दिखाते हैं। प्राचीन रोम में इन रंगशालाओं में अनेक प्रकार की प्रतियोगिताएं होती थी। भारत की प्राचीन रंगशालाओं मे अंबिकापुर जिले में स्थित रामगढ़ गुफा की रंगशाला तथा नागार्जुनकोंडा मे अनावृत रंगवाट उल्लेखनीय हैं।

amphora
दुहत्थी सुराही, एंफोरा सुरा, तैल, अनाज इत्यादि को रखने का दो हत्थेवाला यूनानी मृदेभांड। प्राचीन यूनान के प्रारंभिक ज्ञात मृद्भांडों में यह दुहत्थे मर्तबान के रूप में मिलता है। इसका प्रचलन संपूर्ण यूनान और रोम में था। भारत के अनेक पुरातात्विक स्थलों मे इस प्रकार के आयातित मृद्भांड मिले हैं। इस प्रकार के बर्तनों मे एथेस के डिफिलोन भांड अपने ज्यामितिक अलंकरण के लिए विश्वप्रसिद्ध हैं। ये आकार में विशाल अंडे की तरह होते थे। इनकी गरदन संकरी होती थी। गरदन तथा मुख भाग के ठीक नीचे, दाहिने और बाएं भाग में कान की तरह दो हत्थे होते थे। भांड को खड़ा करने के लिए आधार बना होता था। हत्येदार सुराही दो प्रकार के होते थे :(1) अनलंकृत;सामान्यतः सुरा, तैल, धान्य इत्यादि रखने के लिए। (2) अलंकृत, इन पर अनेक सुन्दर अभिकल्प और चित्र बने होते थे। इनको पेनेएथिनी उत्सव में पुरस्कार रूप मे भी प्रदान किया जाता था।

ampulla
1. तुंबिका लघभग गोलाकार (फंलास्कनुमा) काँच या मिट्टी का बना वह पात्र, जिसे पकड़ने के लिए उसकी ग्रीवा में दो हत्ये बने होते हैं। ऐसे पात्रों के प्रयोग प्राचीन रोम में मदिरा, इत्र या उबटनादि द्रव्यों को रखने के लिए प्रायः किया जाता था। 2. कलशिका (क) ईसाई धर्म में पवित्र तेल को रखने के लिए बनी वह कलशिका, जिसका आकार छोटे कलश या घड़े सदृश होता है। (ख) अनुष्ठानों मे प्रयुक्त वह कूपिका, जिसमें मदिरा या जल रखा जाता है।

Amratian figurine
अमरानी लघुमूर्ति ऊपरी मिस्र की नवाश्मोत्तरकालीन वह संस्कृति अमराती कही जाती थी, जिसके आवास-स्थल अर्ध भूगर्भित हुआ करते थे। तत्कालीन लघु मूर्तिया, मूर्तिकला का सुंदर नमूना है। इस संस्कृति का काल लगभग ई. पू. 3800-ई. पू. 3600 माना जाता है।

Amratian people
अमराती जन मिस्र के राजवंशीय काल की संस्कृति, जिसका काल लगभग ई. पू. 3800-ई. पू. 3600 माना जाता है। अमराती नामकरण 'अल-अमरा' नामक स्थल के आधार पर पड़ा, जहाँ इस संस्कृति के अवशेष बहुत बड़ी मात्रा में मिले हैं। इन अवशेषों में तत्कालीन लोगों द्वारा प्रयुक्त पाषाण उपकरण भी हैं। प्राप्त साक्ष्य के आधार पर कहा जा सकता है कि तांबे के प्रयोग से भी ये लोग परिचित थे और इनकाप्रमुख व्यवसाय कृषि और पशुपालन रहा होगा। इन लोगों द्वारा निर्मित विभिन्न आकार-प्रकार के मिट्टी के बर्तन भी मिले हैं। अनावृत कब्रों स प्राप्त अवशेषों से सिद्ध हुआ है कि ये लोग शवों के साथ दैनादिन प्रयोग में आनेवाली वस्तुओं को भी दफनाया करते थे।

Amri Nal Culture
आमरी-नाल संस्कृति पाकिस्तान के सिंध प्रांत का आमरी नगर तथा बलूचिस्तान का नाल नगर अपने मृद्भांडों के लिए प्रसिद्ध है। धूसर वर्ण के प्राप्त, इन मृद्भांडों मे ज्यामितिक चित्र बने हैं। नाल शैली के मृद्भांडों मे पशुओं एवं वनस्पतियों के आलंकारिक चित्र मिले हैं। इन संस्कृतियों का सिंधु सभ्यता से सम्पर्क था, इस तथ्य की पुष्टि प्राप्त पुरातात्विक अवशेषों से हुई है। इस संस्कृति का काल ई. पू. 3000 आँका गया है। उत्खनन कार्य ई. 1929 में ननीगोपाल मजुमदार तथा ई. 1959-ई. 1962 तक कड़ाल ने करवाया था। प्राचीन नाल के निवासी, उपकरणों के लिए तांबे का प्रयोग करते थे। गृह-निर्माण के लिए ये लोग कच्ची ईटों का इस्तेमाल करते थे। ये लोग अपने मृतकों का आंशिक करते थे।

Amudian
अमूदी पश्चिम एशिया की ऐश्यूली संस्कृति के बाद की संवर्धित प्रावस्था। विद्वानों का अनुमान है। कि इस संस्कृति के लोग उत्तर-पुराश्मयुगीन पश्चिम एशियायी लोगों के पूर्वज थे। इनके प्रमुख उपकरण फलक तथा उत्कीर्णक हैं। इस काल के उद्योगों और सामग्री एतत्बून (माउन्ट कारमेल), जब्रूद (सीरिया) एडलम तथा लेवां (Levant) में अब्री जूमोफेन के स्थलों से भी मिली है।


logo