हरिताश्म, जेड
पाइरॉक्सीन (जैडाइट) और ऐम्फिबोल (नेफ्राइट) दोनों खनिज वर्गों में मिलने वाला एक कठोर एवं अति चीमड़ खनिज पदार्थ। यह हरे-श्वेत रंग से लेकर गहरे हरे रंगों में पाया जाता है और इसे एक रत्न-पदार्थ के रूप में बहुत अधिक प्रयोग में लाया जाता है। भारत में, हरिताश्म के बने मनके आभूषणों के रूप में प्रयुक्त होते रहे हैं। कभी-कभी इस खनिज के पात्र भी बनाए जाते थे।
janiform
द्विमुखी
(1) दो मुखोंवाली ऐसी मानव मूर्ति, जिसकी ग्रीवा एक तथा मुख दो हों।
(2) दो मुँहवाले प्राचीन रोमन देवता जेनस के समरूप वाला।
Janus
जेनस
प्राचीन रोम का देवता, जिसकी स्मृति में जनवरी नाम रखा गया। प्राचीन रोम के भवनों के मेहराबों एवं द्वारों पर इसकी मूर्ति उत्कीर्ण की जाती थी। इस मूर्ति का मस्तक तो एक होता था पर इसके दो मुख विपरित दिशाओं में बने होते थे।
jar burial
कलश शवाधान
मृतकों को गाड़ने की एक प्राचीन प्रथा, जिसके अंतर्गत मिट्टी के विशाल भांडों में मुर्दे को रखा जाता था। यह प्रथा विशेषकर भूमध्यसागरीय क्षेत्र के अनेक स्थानों में प्रचलित थी। अनातोलिया के पूर्व कांस्ययुगीन काल में भी इस प्रथा का पता चलता है। भारत में, ताम्राश्मयुगीन अनेक स्थलों से कलश शवाधान प्राप्त हुए हैं, जिनमें प्रमुख रूप से महाराष्ट्र की जोर्वे संस्कृति का उल्लेख किया जा सकता है। इस संस्कृति में इस प्रक्रिया द्वारा बच्चों के शवों को ही दफनाया जाता था। सामान्यतः शव का आधा भाग एक पात्र और आधा भाग दूसरे पात्र में रखकर पात्रों को मिलाकर झोपड़ियों के सामने ही प्रांगण में गाड़ दिया जाता था।
java man
जावा मानव
लुप्त-मानव का आदिम रूप। जावा मानव को प्राचीन मानव का वह अति प्राचीन रूप माना जाता है, जिसकी नस्ल बहुत पहले लुप्त हो चुकी थी। जावा मानव को खोज निकालने का श्रेय यूजीन डुबाय को है, जिन्होंने ई. 1891 में जावा के ट्रिनिल नामक स्थान से एक जंधास्थि कपाल और दो दाँतों को खोज निकाला था। कालांतर में इस क्षेत्र से इसके अन्य अवशेष भी खोज निकाले गए। यह माना जाता है कि यह मानव सीधा खड़ा होकर चल सकता था, इसलिए इसे कपि मानव ('पिथिकैथ्रोपस इरेक्टस') कहा जाता था। वर्तमान काल में इस मानव को होमो इरेक्टस श्रेणी में रखा जाता है। इसका ललाट कम चौड़ा था और चिबुक नहीं था। मस्तिष्क क्षमता 900 से 1000 घन सेंटीमीटर थी। कुछ विद्वानों की धारण है कि यह मानव बोलना भी जानता था।
Jellinge style
जेलिंग शैली
स्कैंडिनेविया की एक प्राचीन अलंकरण शैली। इसका नामकरण पूर्वी जटलैंड के जेलिंग नामक स्थल से प्राप्त विशिष्ट कलाकृतियों के आधार पर पड़ा। ई. नवीं से ग्यारहवीं शताब्दी तक एंग्लो-सेक्सन तथा स्कैंडिनेवी कला में इस शैली की प्रमुख विषय-वस्तु पशु-आकृतियाँ हैं जो रूढ़िगत अथवा पूर्णतया अमृर्त रूप से मिलती हैं।
jet
जेट
एक प्रकार का काला और कच्चा पत्थर, जो कोयले का खनिज है, और जिसका प्रयोग ब्रिटेनी कास्य युग में मिलता है। इस पत्थर से बटन, मनके, आभूषण, खिलौने तथा अन्य अलंकरण की वस्तुएँ बनाई जाती थी।
Jhangar culture
झांगर संस्कृति
गुजरात के कच्छ जिले में सिंधु या हड़प्पाकालीन एक प्रमुख संस्कृति जिसमें लाल, पांडु तथा लेपित मृद्भांड एवं क्रोड और शल्क पर बनी खुरचनी (स्करेपर) और फलक मिले हैं। यहाँ पर 'रंग महल मृद्भांडों' से मिलते-जुलते चित्रित मृद्भांड मिले हैं। झांगर संस्कृति में मृदभांडों के निर्माण तथा उनके उपचार की पूर्णतया नई तकनीक का प्रयोग किया गया था।
Jhukar culture
झूकर संस्कृति
पाकिस्तान के सिंध क्षेत्र में प्राप्त ताम्रपाषाण के अतिरिक्त इस संस्कृति के महत्वपूर्ण प्रमाण आमरी तथा चान्हूदड़ो से भी प्राप्त हुए हैं। झूकर मृदभांडों तथा हड़प्पाकालीन मृद्भांडों के शैला-विन्यास और अलंकरण में पर्याप्त साम्य है, इसी कारण कुछ विद्वान इसे हड़प्पा संस्कृति का ही परवर्ती रूप मानते हैं जिनमें नगरीय जीवन लुप्त हो चुका था।
Jorwe culture
जोर्वे संस्कृति
महाराष्ट्र राज्य की एक ताम्राश्मयुगीन संस्कृति। अहमदनगर जिले में, प्रवरा नदी के किनारे जोर्वे नामक स्थान से सर्वप्रथम इस संस्कृति के अवशेष प्राप्त हुए थे। अन्य प्रमुख स्थल हैं नेवासा, चन्दोली, इनामगाँव, दाइमाबाद आदि। विदर्भ तथा कोंकण के समुद्र तटीय क्षेत्रों को छोड़कर इस संस्कृति के अवशेष संपूर्ण महाराष्ट्र से प्राप्त हुए हैं। इस संस्कृति का काल ई.पू. 1400-ई. पू. 700 आँका गया है। यों तो यह ग्रामीण संस्कृति थी तथापि दाइमाबाद एवं इनामगाँव जैसे स्थलों में इससे सम्बद्ध चतुर्दिक समृद्धि के प्रमाण मिलते हैं। परन्तु यह समृद्धि दीर्घकालिक नहीं थी तथा प्रथम सहस्राब्दि के प्रारंभ से इसकी बस्तियाँ निर्धन हो गई। संस्कृति के प्रारंभिक चरण में ये लोग अनेक कमरों वाले बड़े-बड़े आयताकार घरों में रहते थे, परन्तु द्वितीय चरण में केवल मात्र छोटी-छोटी वृत्ताकार झोपड़ियों के ही प्रमाण हैं। चाक निर्मित लाल मृद्भांड, जिनपर काले रंग से बनी ज्यामितिक डिजाइन हैं, इनकी प्रमुख विशेषता हैं। नोतलाकार तथा टोंटीदार पात्र विशिष्ट कहे जा सकते हैं। संस्कृति की अन्य विशेषताओं में विभिन्न पत्थरों के मनके, ताम्र उपकरण, लघु पाषाण उपकरण तथा कलश-शवाधान की गणना की जा सकती है। शवों को बहुधा घर के अंदर अथवा निकट में गाड़ा जाता था।