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Definitional Dictionary of Archaeology (English-Hindi)
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Sacae (=Sakas)
शक मध्य एशिया के आक्सस (आमू दरिया) तथा जक्सरतस (Jaxartes) (आधु. सर दरिया) नदी के मुहाने पर रहने वाले प्राचीन यायावर लोग। शक लोगों का उल्लेख प्राचीन साहित्य में प्रचुर रूप से मिलता है। ईसवी पूर्व दूसरी सदी में, उत्तर-पश्चिमी भारत के कुछ क्षेत्रों पर उनका अधिकार रहा।

sacellum
लघु मंदिर (1) किसी गिरजाघर का अलंकृत छोटा उपासना गृह। (2) प्राचीन रोम में किसी देवी-देवता को समर्पित, बिना छतवाला, किंतु चारों ओर से घिरा स्थान।

sacrarium
1. पूजागृह प्राचीन रोम में, किसी भवन या मंदिर का वह स्थान, जहाँ पर पवित्र वस्तु रखी जाती है। 2. गर्भगृह किसी गिरजाघर का मुख्य या पवित्रतम भाग; किसी धार्मिक व्यक्ति द्वारा अनुष्ठान हेतु बनाया गया छोटा-सा भवन। 3. पाषाण-द्रोणी किसी चर्च में, युखेरिस्त (अंतिम भोज) संस्कार के बाद, चषक को धोने के लिए बनी पत्थर या संगमरमर की हौदी।

sacrificial altar
1. बलिवेदी वह ऊँचा उठा हुआ मंच या चबूतरा, जिस पर देवी-देवताओं को प्रसन्न करने के लिए, किसी पशु का वध किया जाता था। 2. यज्ञवेदी हवन-पूजन, अनुष्ठान आदि करने के लिए बनी वेदिका। किसी मंदिर या प्रासाद के प्रांगण में धरातल से कुछ ऊपर उठ कर बना चतुष्कोणीय स्थान, जहाँ यज्ञ किया जाता है।

sacrificial post
यज्ञ-स्तंभ, यूप यज्ञ-स्थल का वह खंभा, जिससे बलिदान हेतु पशु को बाँधा जाता है। भारत में, लौरिया नंदनगढ़, मथुरा आदि में, इस प्रकार के यूप स्तंभ मिले हैं। इनमें से अनेक पर ब्राह्मी लिपि के लेख अंकित हैं। गुप्त सम्राट समुद्रगुप्त और कुमार गुप्त प्रथम की स्वर्ण-मुद्राओं पर ऐसे अश्वमेध यूप के चित्र अंकित हैं, जिसके समीप अश्व बँधा दिखाया गया है।

saddle quern
काठी सिल, अवतल चक्की अंडाकार, चौकोर या आयताकर प्रस्तर, जिसके ऊपर का कार्यकारी तल सपाट या थोड़ा बहुत नतोदर तथा घिसा हुआ होता है। पुरातत्वज्ञों के अनुसार प्राचीन काल में इसका प्रयोग अन्न पीसने के लिए किया जाता था। सिल पर बेलनाकार या चौकोर लोढ़े के सपाट सतह पर रखे अन्न या किसी अन्य वस्तु को बार-बार आगे-पीछे हाथ से चलाकर पीसा जाता था। अवतल चक्की का आकार काठी (saddle) की तरह होता था। भारतवर्ष में इस प्रकार के सिलों के प्रमाण मध्य-पाषाणकाल से ही यथा बागोर (राजस्थान), नेवासा (महाराष्ट्र) में मिलते हैं। नवपाषाणकालीन प्राक्-हड़प्पा तथा ताम्राश्मकालीन पुरास्थलों से भी उसके प्रमाण मिलते हैं। इतिहासकाल में भी इसका उपयोग होता रहा। गाँवों में इसका अब भी उपयोग होता है।

Saka-era
शक संवत् शक राजा शालिवाहन द्वारा प्रवर्तित संवत्, जिसका आरंभ ईसा के 78 वर्ष पश्चात् हुआ था। प्राचीन भारतीय वांगमय एवं अभिलेखों तथा मुद्राओं पर इसका प्रयोग मिलता है।

salvage archaeology
उद्धारक पुरातत्व किसी पुरातात्विक स्थल या कलात्मक कृतियों को विनष्ट होने से बचाने के उद्देश्य से किया गया कार्य। उद्धारक पुरातत्व की उपलब्धि का सर्वोत्कृष्ट, नमूना मिस्र में नूबिया के स्मारक हैं, जो आस्वान बाँध के बनने के कारण पूर्णतः जलमग्न या विनष्ट हो जाते, यदि उन्हें उपयुक्त समय पर संयुक्त राष्ट्र संघीय सहायता से, सुरक्षित रूप में अन्यत्र न ले जाया जाता। भारत में, उद्धारक पुरातत्वीय उपलब्धि की कोटि में, नागार्जुनकोंडा के स्मारक हैं। पुराने कुओं, नदियों, तालाबों आदि में फेंकी गई प्राचीन मूर्तियों का उद्धार भी इसी कोटि में परिगणित किया जाता है। देखिए : 'rescue excavation'.

Samarra pottery
समरा मृद्भांड उत्तरी इराक में समरा नगर के उत्खनन में प्राप्त ई. पू. छठी सहस्राब्दि के विशिष्ट मृद्भांड। हल्के पृष्ठभूमि पर काले अथवा भूरे रंग से इन बर्तनों पर मछली, पशु तथा मानवों की सुंदर आकृतियाँ एवं ज्यामितिक अलंकरण चित्रित मिलते हैं। विशिष्ट पात्र-प्रकारों में खुले मुँह वाले अलंकृत कटोरे हैं। इस स्थल का उत्खनन प्रथम विश्वयुद्ध के पूर्व हर्जफेल्ड (Herzfeld) ने कराया था।

Samian ware (=Terra sigillata)
सेमियाई भांड दक्षिण और मध्य गाल तथा मोसेल (Moselle) घाटी में मिले वे विशिष्ट मृद्भांड, जो पहली से तीसरी शताब्दी ई.में बनाए गए थे। ये भांड इतालवी एरिन्ताइन भांडों की आकृति में निर्मित हुए। साँचे से बने रंग के इन मृद्भांडों की सतह अत्यन्त चमकीली होती है। ये मृद्भांड सादे और अलंकृत, दोनों ही प्रकार के मिलते हैं। आकार और अलंकरण के आधार पर यह माना जाता है कि इनका निर्माण धातु-निर्मित पात्रों की प्रतिकृति के रूप में हुआ होगा। इन मृद्भांडों पर निर्माता कुंभकार अथवा उसकी कार्यशाला का नाम ठप्पांकित मिलता है। साँचे में ढालकर बनाए गए मृद्भांडों पर प्रायः उभरी हुई मिथक आकृतियाँ, पशु-पक्षी एवं बेल-बूटे निर्मित मिलते हैं। इसी आधार पर इसे टेरा सिगिलाटा (terra sigillata) अर्थात् उभरी आकृतियुक्त मृद्भांड कहा जाता है। कुंभकारों अथवा उनकी कार्यशालाओं के ठप्पांकित नामों के आधार पर रोम के अनेक शाही पुरास्थलों की तिथि सुनिश्चित की जा सकी।


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