निहाई तकनीक
प्रागैतिहासिक मानव की उपकरण-निर्माण विषयक एक विशिष्ट प्रविधि जिसकी विषेषता यह है कि उपकरण बनाते समय, हथौड़ा या निहाई एक स्थानमें स्थिर रहता है और विखंडित किया जाने वाला प्रस्तर चलायमान स्थिति मे रहता है। उपकरण-निर्मण की इस प्रविधि की भी दो विधियों हैं। पहली विधि में, विखंडन के लिए प्रयुक्त प्रस्तर यदि बहुत बड़ा हो तो उसे सीधे निहाई पर पटककर तोड़ा जाता है। दूसरी विधि, उन प्रस्तरों के लिए है, जिनका आकार बहुत न हो।इसके अन्तर्गत प्रस्तर खंड को, दोनो हाथों से पकड़ और घुमा-फिरा कर, स्थिर निहाई से बार-बार रगड़ या टकरा कर मनोवांछित आकार-प्रकार दिया जाता है। इसे स्थिर घन प्रणाली (block-on-block technique) भी कहा जाता है।
देखिए : 'block-on-block technique'
Apennine Culture
एपिनायी संस्कृति
इटली में एपिनियस पर्वत श्रृंखला में स्थित, लगभग ई. पू. 1600 की कांस्ययुगीन संस्कृति, जिस पर बाल्कन देता है। क्षेत्रीय अध्ययन से ज्ञात हुआ है कि क्षेत्रांतरण तथा, पशुपालन, इन लोगों की विशिष्टता थी। इस संस्कृति में व्यापार का भी महत्व था। इनमें शवाधान-प्रथा प्रचलित थी। इनके मृद्भांड हस्तनिर्मित, ओपदर, पट्टीयुक्त, ओपदार, पट्टीयुक्त तथा अलंकृत होते थे, जिनमें श्वेत रंग की पच्चीकारी होती थी। प्राचीन अवशेषों में प्राप्त एपिनायी पात्रों में अधिकांश कठोरों में केवल एक ही हत्था मिलता है। लगभग ई. पू. 1000 के पियानिलो के शवभांड क्षेत्रों तथा लौहयुगीन संस्कृति के विकास में, इस संस्कृति का योगदान विवादास्पद है।
Aphrodite
अफ्रोदिती
प्राचीन यूनान और रोम की प्रेम और सौन्दर्य की देवी। प्राचीन यूनानी मूर्तिकारों तथा चित्रकारों ने इसकी अनेक मूर्तिया और चित्र निर्मित किए जो प्राचीन कला के उत्कृट उदाहरण हैं।
Apis
एपिस
प्रचीन मिस्र का एक देवता। इसे मिस्र-निवासी ओसाइरिस का प्रतीक मानते थे और वे उसकी पूजा श्याम वर्ण के रूप में करते थे। वृषभ के मस्तक पर, श्वेत त्रिकोण अंकित रहता था। इसकी पूजा का मख्य केन्द्र मैम्फिस में स्थित था। परवर्ती काल में, यूनान की देव कथाओं में एपिस का विकास, सिरेपिस नामक देवता के रूप में हुआ।
यह दृष्टव्य है कि हिन्दू पुराणों में वर्णित शिव के वाहन नंदी या नंदिकेश्वर की कल्पना कुछ-कुछ एपिस से मिलती-जुलती है।
apothecary jar
तैल-द्रोणी
काष्ठ या चीनी मिट्टी का बना, चौड़े मुँह का, विशाल-आकार का पात्र, जिसमें प्राचीन काल में तैल द्रव्यादि भर कर सुरक्षित रखे जाते थे।
यूनानी चिकित्सा-पद्धति के अन्तर्गत, रोगी व्यक्ति इस प्रकार के पात्र में लिटाए भी जाते थे।
सड़ने से बचाने के लिए भी, इस प्रकार के पात्रों में, शव को रखे जाने की प्रथा प्राचीनकाल में प्रचलित थी।
apothesis (=apodyterium)
परिधान कक्ष
प्राचीन यूनान तथा रोम के सार्वजनिक स्नानागारों अथवा मल्लभूमि (अखाड़ा ) के निकट बना वह कक्ष, जिसमें स्नानार्थी अथवा मल्ल अपने वस्रादि रखते या बदलते थे। यह कक्ष यदा-कदा प्रसाधन-कक्ष या श्रृंगार कक्ष के रूप में भी काभ में लाया जाता था।
इस प्रकार का कक्ष मोहनजोदड़ो के विशाल स्नानागार में भी पाया गया है।
apotropaic
अपशकुन-निवारक
प्राचीन यूनानी कला में प्रयुक्त मानव-मुखौटा, जिसमें नेत्र, पलक तथा मुँह उत्यादि बने होते थे। पात्रों तथा नौकाओं के अग्र-भाग में, यह अपशकुन-निवारण के लिए बनाया जाता था। किसी पात्र, भवन या वस्तु को भूत, पिशाच तथा कुदृष्टि से बचाने के लिए, इस प्रकार के मुखौटे बनाए, रखे या आरोपित किए जाते थे। ऐसी प्रथा, भारत तथा अन्य अनेक सभ्य देशों मे प्रचलित है।
निर्माणाधीन या नवनिर्मित मकानों के अग्र भाग मे आज भी इस प्रकार के अपरूप मुखौटे प्रायः देखे जा सकते हैं, जिनका प्रयोजन वस्तुतः कुदृष्टि से बचाव या उसका प्रतिकार करना होता है।
apotropaic imagery
नजरौटा प्रतिमावली, कुदृष्टि निवारक विम्बावली
दृष्ट-आत्माओं अथवा भूत-प्र्त इत्यादि के अनिष्टकारी प्रभाव से रक्षा करने के उद्धेशय से बनीअमूर्त या चित्रित आकृति। इनमें भयावह मानव-आकृति या जन्तु-मुख अथवा डरावने नेत्रों का चित्रण प्रतिमा में किया जाता रहा हैं। प्राचीन लोगों की यह मान्यता थी कि ऐसी प्रतिमाओं में, दृष्ट-आत्माओं तथा उनके बुरे प्रभाव को दूर करने की शक्ति होती है। आदिम कला में नज़रौटा प्रतिमा-निर्माण की प्रथा सर्वत्र प्रचलित रही है।
applique decoration (=applied decoration)
जड़ाऊ अलंकरण
किसी घरेलू वस्तु अथवा फर्नीचर उत्यादि को अलंकृत करने के लिए, नक्काशी, अभीकल्प तथा चित्रांतरण (decalcomania) द्वारा उसे सुंदर बनाना।
applique figure
जड़ाऊ आकृति
किसी वस्तु या आकृति का वह अंकित या चित्रित रूप, जिसे मिट्टी, नग, मोती, रत्न, धातु आदि से जड़कर बनाया गया हो ; एक वस्र से काटकर दूसरे से सिलकर या चिपकाकर बनाई गई आकृति, जड़ाऊ आकृति कही जाती है।