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Paribhasha Kosh (Arthmiti, Janankiki, Ganitiya Arthshastra Aur Aarthik Sankhyiki) (English-Hindi)
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Amplitude
आयाम
किसी फलन का उच्चतम या न्यूनतम मान उसका आयाम कहलाता है।
यदि किसी फलन का आयाम अपने आवर्तकाल में स्थिर रहता है तो इसे नियमित फलन कहा जाता है।
यदि आयाम कम होता जाता है तो फलन को अवमंदित फलन कहा जाता है और यदि आयाम बढ़ता जाता है तो फलन को विस्फोटी फलन कहा जाता है।

Analysis of variance
प्रसरण विश्लेषण
प्रसरण विश्लेषण सार्थकता-परीक्षण की एक उपयोगी व्यावहारिक विधि है।
इस प्रकार के विश्लेषण के लिए नीचे दी गई विधि से सारणी बनाई जाती है :— विचरण का स्रोत वर्गों का जोड़ स्वातंत्र्य कोटि वर्ग माध्य
प्रसरण-विश्लेषण प्रसरणों के बीच के अन्तर का परीक्षण करने वाली विधि है।
इस विधि द्वारा माध्यों की समांगता की जाँच की जाती है। प्रसरण-विश्लेषण द्वारा हम इस बात का अनुमान लगाते हैं कि प्रत्येक उपादान का कुल विचरण में कितना योगदान है। प्रसरण-विश्लेषण द्वारा आँकड़ों में निहित कुल विचरण का विभिन्न स्रोतों द्वारा हुए घटक-विचरणों में विभाजन किया जाता है।

Anticipation
प्रत्याशा
अर्थमिति में प्रत्याशा का तात्पर्य है पूर्व परिकल्पना अर्थात् किसी चर के बारे में वर्तमान धारणा के आधार पर भविष्य में उसके मान के बारे में कल्पना करना।
यदि कोई व्यवहार चर yt समय t पर इसका नियंत्रण करने वाले व्यक्तियों के भविष्य मान xt^e पर निर्भर करता हो तब हम प्रत्याशा फलन को यों लिख सकते हैं :—
Yt=⍺+βxt^e
यहां पर x प्रत्याशा का भारित औसत है। उक्त प्रत्याशा परिकल्पना को हम इस प्रकार भी व्यक्त कर सकते हैं :— xt^e=yX^e+(1-y)^xt t-1 जबकि 0

Approximate mean
सन्निकट माध्य
किसी सीमित बंटन के सन्निकट माध्य को uo द्वारा लिखा जाता है।
यदि किसी ऐसे बंटन में कोई आकलक a हो और इसमें Ea का पता हो तब सन्निकट माध्य को हम निम्नलिखित फलन के रूप में लिख सकते हैं:­­­- Ec (a - β) = uo यहाँ पर a एक आकलक है। T प्रतिदर्श का परिमाण है। β स्थिरांक है।

Approximate variance
सन्निकट प्रसरण
जब परिसीमन बंटन a से संबद्ध प्रसरण a तथा प्रसरण 〖σO〗^2 दोनों ज्ञात होते हैं तब सन्निकट प्रसरण को निम्नलिखित रूप में लिखा जा सकता है:­­­ C_T (a-β)=O_o^2 अथवा
प्रसरण a ≅ 〖σO〗^2/T^2 सभी वांछनीय आकलनों में (FORMULA) इस प्रकार के प्रसरण में जैसे जैसे (FORMULA) वैसे वैसे (FORMULA) का मान विलुप्त होता जाता है।

Approximation
सन्निकटन
आर्थिक सांख्यिकी में अध्ययन के लिए इकट्ठे किए जाने वाले आँकड़े तथ्य आदि अधिकांशतः शत-प्रतिशत सही नहीं होते इसलिए उनके निकटतम मानों के प्रयोग की विधि को सन्निकटन कहा जाता है।
सन्निकटन के लिए अध्ययन समूह या प्रतिदर्श तैयार करने के हेतु कई प्रकार के सांख्यिकी प्रक्रम किए जाते हैं और उनसे कोई भविष्यवाणी की जाती है।
इस प्रक्रिया में अनेक त्रुटियाँ, चुनाव संबंधी पूर्वाग्रह, परिभाषा की कमियाँ, गुणांकों तथा प्रतिबंधों की अस्पष्टता संबंधी दोष आदि आ जाते हैं।
सन्निकटन की विधि द्वारा हम अपूर्ण समीकरणों व परिवर्तनशील संरचनाओं का गणितीय अध्ययन प्रस्तुत कर सकते हैं।

Arithmetic mean
समांतर माध्य
समांतर माध्य एक ऐसा सांख्यिकीय माप है जो बंटन की केन्द्रीय प्रवृत्ति को दर्शाता है। व्यावहारिक रूप में इसे ‘माध्य’ या औसत भी कहा जाता है।
माध्य वह संख्या है जो पद मानों के योग को पद संख्या द्वारा विभाजित करने से प्राप्त होती है।
माध्य =(पद मानों का योग)/(पद संख्या) या X̅=∑X/N

Arrow's possibility theorem
ऐरो का संभावना प्रमेय
उपयोगिता की अन्तर्वैयक्तिक तुलनाओं को ध्यान में न रखते हुए व्यक्तिगत रूचियों से सामाजिक अधिमान्यताओं तक पहुँचने का प्रमेय अथवा संभाविता जिसमें व्यक्तिगत क्रमों के समुच्चयों का विस्तृत परास विशेषतया परिभाषित होता है।

Arrow's scheme
ऐरो स्कीम
ऐरो स्कीम जे∘ टिंबर्गन द्वारा प्रतिपादित की गई थी। इसके द्वारा कीमतों और आपूर्ति के मानों को ज्ञात किया जाता है।
इस मॉडल की व्याख्या और परिवर्तित संरचना को निम्न चित्र द्वारा दर्शाया जा सकता है, जिसको ऐरो स्कीम कहा जाता है। (DIAGRAM)
इसमें प्रथम समीकरण इस बात की व्याख्या करता है कि समय t में माँग उसी समय की कीमत (pt) का फलन होती है। प्रथम समीकरण उपभोक्ताओं की माँग की प्रक्रियाओं को दिखाता है जो कीमत परिवर्तन के कारण होती है।
द्वितीय समीकरण यह बताता है कि t समय की पूर्ति गत वर्ष (t-1) की कीमत का फलन होता है।
तृतीय समीकरण माँग के पीछे होने वाले परिवर्तनों की हेतु-हेतुक प्रक्रिया की व्याख्या करता है।

Association of attributes
गुण साहचर्य
दो गुण A तथा B तब सहचारी कहे जाते हैं जब गुण A गुण B के साथ साधारण प्रत्याशा से अधिक सामान्य रूप में पाया जाये। अतः दो गुणों A व B में तब साहचर्य माना जाता है जब (AB) का वास्तविक प्रेक्षित मान उसके प्रत्याशित मान से अधिक या कम हो।
अर्थात् (AB)>((A)×(B))/N (AB)<((A)×(B))/N पहली अवस्था धन साहचर्य की है और दूसरी ऋण साहचर्य की। यदि (AB)=((A)×(B))/N हो, तो दोनों गुण परस्पर स्वतंत्र माने जाते हैं।


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