logo
भारतवाणी
bharatavani  
logo
Knowledge through Indian Languages
Bharatavani

Paribhasha Kosh (Arthmiti, Janankiki, Ganitiya Arthshastra Aur Aarthik Sankhyiki) (English-Hindi)
A B C D E F G H I J K L M N O P Q R S T U V W X Y Z

Econometrics
अर्थमिति
अर्थमिति वह विज्ञान है जो अर्थशास्त्र के क्षेत्र में संख्यात्मक मात्राओं का विवेचन करने और आर्थिक सिद्धांतों को सत्यापित करने का प्रयत्न करता है।
इसका आधार आर्थिक सिद्धांत का विकास और पर्यवेक्षण तथा उससे संबद्ध उपयुक्त सांख्यिकीय अनुमिति पद्धति है।
अर्थमिति का उद्देश्य आर्थिक व्यवहार संबंधी प्रेक्ष्य चरों को सरल समीकरणों के फलनों के रूप में दर्शाना होता है और फिर गणितीय विधियों के आधार पर कलन करके उनके संबंध में किसी प्रकार की भविष्य वाणी करना या पूर्वानुमान लगाना होता है।
अर्थमिति में मात्रिक प्रकथनों की व्याख्या बीजगणतीय संकेतों और चिहों के द्वारा की जाती है।

Economic analysis
आर्थिक विश्लेषण
आर्थिक विश्लेषण में कुछ मान्यताओं के आधार पर आर्थिक पद्धति के कार्य कारण संबंधों का अध्ययन किया जाता है।
इसका मुख्य उद्देश्य आर्थिक घटनाओं मात्राओं, व्यवसाय चक्र आदि का निर्वचन करना होता है।
आर्थिक विश्लेषण के अन्तर्गत हम सांख्यिकीय विधियों तथा गणितीय विधियों द्वारा आर्थिक सिद्धांत के नियमों व मनुष्य के अर्थपरक व्यवहार का विश्लेषण करते हैं। इसके तीन भाग होते हैं:— (1) सिद्धांत और संकल्पनाओं का प्रतिपादन, (2) इनमें की गई भविष्यवाणियों या पूर्वकथनों को वास्तविक तथ्यों पर घटाना (निगमन) तथा (3) इसका परीक्षण करना।

Economic development
आर्थिक विकास
किसी देश की आर्थिक व्यवस्था में उत्पादन के साधनों जैसे कृषि, उद्योग, श्रम, पूँजी, व्यापार आदि के विकास को आर्थिक विकास की संज्ञा दी जाती है।
आर्थिक विकास का एक ओर जनसंख्या वृद्धि, आयु संरचना और प्राकृतिक साधनों से घनिष्ट संबंध होता है तथा दूसरी ओर इसका संबंध प्रौद्योगिकी से होता है।
विकास को हम वृद्धि दरों के रूप में मापते हैं और इसके स्तर का निर्धारण आर्थिक कल्याण या रहन-सहन के स्तर की तुलना से करते हैं।
जिन देशों का आर्थिक कल्याण का मापांक अथवा सकल या निवल राष्ट्रीय उत्पादन वहाँ की जनसंख्या के अनुपात में कम होता है उन्हें अल्पविकसित देश कहा जाता है।

Economic dynamic
आर्थिक गतिकी
आर्थिक गतिकी पूर्ववर्ती और परवर्ती बदलती स्थितिययों से संबंधित आर्थिक परिघटनाओं का अध्ययन है।
सतत परिस्थितियों के अंतर्गत आर्थिक संबंधों का विश्लेषण और संतुलन की स्थिति का अध्ययन आर्थिक गतिकी कहलाता है।
गतिकी विश्लेषण में परिवर्तन का प्रक्रम बहुत महत्व रखता है। किसी पद्धति को तभी गत्यात्मक माना जाता है जब इसके अन्तर्गत भिन्न-भिन्न समयों पर चरों का मान बदलता रहता है। इस प्रकार के विश्लेषण में समय का योगदान प्रधान होता है।
सैमुअलसन ने इसे 6 वर्गों में बाँटा है:— 1. स्थैतिक एवं स्थायी 2. स्थैतिक एवं ऐतिहासिक 3. गतिकीय एवं कारणात्मक 4. गतिकीय एवं ऐतिहासिक 5. प्रसंभाव्य एवं कारणात्मक 6. संभाव्य एवं ऐतिहासिक

Economic efficiency
आर्थिक दक्षता
उत्पादन क्रिया आर्थिक दृष्टि से तब दक्ष मानी जाती है जब उत्पादन लागत प्रति निर्गम की इकाई के पीछे न्यूनतम हो।
तकनीकी दक्षता और आर्थिक दक्षता की संकल्पनाओं में भेद है। तकनीकी दक्षता का माप ‘आगत-निर्गत’ की इकाइयों में किया जाता है। संभव है कोई प्रक्रिया तकनीकी दृष्टि से दक्ष होने पर भी आर्थिक दृष्टि से दक्ष न कही जा सके।

Economic equation
आर्थिक समीकरण
आर्थिक समीकरण में यह गुण होने चाहिए :— (1) आर्थिक सिद्धांत से संगति (2) आर्थिक घटनाओं या समस्याओं से सम्बद्ध होना, (3) तार्किक तथा विश्लेषण की संक्रिया की दृष्टि से सरल होना, (4) आर्थिक सिद्धांत के किसी नियम के अनुरूप सत्याभासी होना, (5) संगत आर्थिक आँकड़ों से तालमेल रखना ।
इसके गुणांक पूर्णतः सही होने चाहिए ताकि इनके आधार पर भविष्य के बारे में अनुमान लगाया जा सके।
इसका एक उदाहरण नीचा दिया है :—c_t=∝+βy_t+ut
दे∘ equation

Economic growth
आर्थिक संवृद्धि
आर्थिक संवृद्धि का प्रयोग दो अर्थों में किया जाता है:-
(1) जब किसी समुदाय का श्रमबल स्थिर रहता है और वह पूर्ण रोजगार की स्थिति में अपरिवर्तनशील प्रौद्योगिक अवस्था के अन्तर्गत काम करता है व पूँजी संचय से राष्ट्रीय उत्पादन बढ़ाता है। ऐसी स्थिति में पूँजी की सीमांत निवल भौतिक उत्पादिता घनात्मक होती है।
इस स्थिति में पूँजी और श्रम का अनुपात बहुत ऊँचा होता है और प्रति व्यक्ति पूँजी की मात्रा अधिक होती जाती है तथा अतिरिक्त पूँजी के कारण उत्पादन बढ़ता रहता है।
आर्थिक संवृद्धि के फलस्वरूप समाज के सभी व्यक्तियों के रहन-सहन का स्तर निरंतर ऊँचा होता रहता है।
(2) जब किसी समाज का कुल उत्पादन बढ़ता है तथा प्रतिव्यक्ति श्रमिक शक्ति उत्पादिता बढ़ती है और पूँजीगत स्टाक में वृद्धि होती है तब इसे भी संवृद्धि की स्थिति कहा जाता है।
श्रमिक शक्ति और प्रौद्योगिकी की स्थिति दी हुई होने पर आर्थिक संवृद्धि कुछ सीमाओं के अन्दर ही हो सकती है।

Economic indicator
आर्थिक संकेतक
आर्थिक संकेतक सांख्यिकीय श्रेणियाँ या सूचकांक होते हैं जो आर्थिक चरों, जैसे कीमतों, रोजगार, उत्पादन, व्यापार की घट-बढ़ आदि को दर्शाते हैं।
ये भिन्न-भिन्न समयों पर अर्थ-व्यवस्था की सामान्य स्थिति के द्तयोक होते हैं।
ये तीन प्रकार के होते हैं:— (1) प्रमुख संकेतक— ये आर्थिक घटनाओं की घट-बढ़ की सूचना अग्रिम रूप से देने के लिए होते हैं ;
(2) समानुपाती संकेतक —जैसे बेरोज़गारी और बैक के कर्जों आदि के बारे में। यह कुल अर्थव्यवस्था की तुलना में घट-बढ़ को व्यक्त करते हैं ;
(3) पश्चता संकेतक— जैसे पूँजी व्यय। ये व्यापार चक्र के बाद होने वाली घट-बढ़ को दिखाते हैं।
पूर्वानुमान लगाने और आर्थिक कल्याण तथा संवृद्धि की दर आदि के विश्लेषण में आर्थिक संकेतकों का विशेष महत्व है।

Economic model
आर्थिक मॉडल
आर्थिक मॉडल का तार्त्पय कुछ ऐसे पूर्व साध्यों के समुच्चय से है जिसके आधार पर मात्रिक समीकरणों द्वारा आर्थिक सम्बन्धों को व्यक्त किया जाता है।
अर्थशास्त्रियों को प्रायः विशिष्ट आर्थिक परिवर्तनों के प्रभाव के बारे में पूर्वानुमान लगाने के लिए कहा जाता है तथा अपेक्षा की जाती है कि वे कौन से नीति संबंधी परिवर्तनों का सुझाव देना चाहेंगे। इस प्रकार के अध्ययनों के लिए उन्हें किसी मॉडल का विश्लेषण करते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना पड़ता है।
(1) अन्तर्जात कारक (2) बहिर्जात कारक (3) फलनात्मक संबंध (4) प्रायिकता बंटन ।
इनको दर्शाने वाले विशिष्ट फलनों के निदर्श को आर्थिक मॉडल कहा जाता है।
इसके अन्तर्गत दो प्रकार की समीकरण प्रणाली दी जाती है:— (i) पूर्ति और माँग के स्वायत्त समीकरणों का समुच्चय, जिसे संरचनागत समीकरण प्रणाली कहा जाता है। ऐसे समीकरणों के प्राचलों को संरचना प्राचल कहा जाता है। (ii) अस्वायत्त व्युत्क्रमित समीकरणों की प्रणाली जिसमें एक चर परिवर्तनशील होता है।
कुछ मॉडल प्रसंभाव्य प्रकार के होते हैं। इनमें एक से अधिक परिकल्पनाओं का समावेश किया जाता है। इन मॉडलों को बीजगणितीय संकेतो और समीकरणों के रूप में लिखा जाता है।
मॉडल का अभिगृहीत मान्यताओ के आधार पर संक्षिप्त नामकरण निम्नलिखित प्रकार से किया जा सकता है:— (क) रैखिक मॉडल (ख) शुन्येतर सारणिक (ग) जैड का रैखिक स्वतंत्र मॉडल (घ) समीकरण अभिनिर्धाण मॉडल, इत्यादि।

Economic statics
आर्थिक स्थैतिकी
आर्थिक सिद्धान्त की वह शाखा जिसमें समय या काल के अनुसार विश्लेषण नहीं किया जाता।
इस प्रकार के विश्लेषण में स्थिर परिस्थितियों के अन्तर्गत संतुलन की शर्तों का पता लगाया जाता है और इसमें भूत या भविष्य के बारे में यह माना जाता है कि यह संतुलन संबंध हमेशा एक जैसा बना रहता है।
आर्थिक स्थैतिकी को कभी-कभी 'तुलनात्मक स्थैतिकी' भी कहा जाता है क्योंकि इसमें पूर्व और बाद की स्थिति को ही संतुलन की स्थिति माना जाता है।


logo