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Paribhasha Kosh (Arthmiti, Janankiki, Ganitiya Arthshastra Aur Aarthik Sankhyiki) (English-Hindi)
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Factor reversal test
उपादान उत्क्रमण परीक्षण
उपादान उत्क्रमण परीक्षण के अनुसार भाव-सूचकांकों के भावों के स्थान पर संगत मात्राएं तथा मात्राओं के स्थान पर संगत भाव रखने से जो मात्रा सूचकांक प्राप्त होता है वह इन सूचकांकों के गुणनफल मान के सूचकांक के बराबर होना चाहिए।
सूचकांक सूत्र में उत्पादनों के उत्क्रमण के फलस्वरूप प्राप्त सूचकांक तथा मूल सूचकांक का गुणनफल मान सूचकांक इस प्रकार होगा:— Σ(p^n q^n)/Σ(p^o q^o )
सूत्रों में p तथा q का परस्पर विनिमय किया जाता है। उपादान उत्क्रमण परीक्षण के अनुसार: I_p xI_q यहाँ I_p मूल सूचकांक, I_q परिवर्तित सूचकांक तथा I_v मान सूचकांक हैं।

F—distributiion
F-बंटन
अर्थ-मितिक मॉडलों के मूल्यांकन के लिए प्रतिदर्शकों के प्रसामान्य बंटन के अतिरिक्त तीन प्रकार के और बंटनों का प्रयोग किया जाता है:— (I) t- बंटन, (II) χ^2- बंटन, और (III) F- बंटन।
F— बंटन के प्रतिदर्शज में हम एक ऐसे अनुपात को लेते हैं जिसका अंश n_1 संख्या वाले स्वतन्त्र यादृच्छिक चरों के z बंटन में वर्गों के माध्य के बराबर होता है और जिसकी हर n_2 संख्या के यादृच्छिक चरों के z बंटन में वर्गों के माध्य के बराबर होती है। इस प्रकार के बंटन को हम निम्नलिखित विधि से दिखा सकते हैं:— (FORMULA)
इसका मानक प्रसामान्य बंटन वाले चर से घनिष्ठ संबंध होता है जिसका माध्य 0 होता है और प्रसरण 1 होता है।
इसका दूसरा नाम प्रसरण अनुपात बंटन भी है।
इस बंटन का अध्ययन सबसे पहले फिशर ने किया था जिसके नाम पर इसे फिशर-बंटन भी कहा जाता है।
इसका प्रयोग दो प्रसरण आकलकों तुलना के लिए किया जाता है और इसके आधार पर परिकल्पना की परीक्षा की जाती है। भिन्न की दो संख्याएं N_1 और N_2 को क्रमशः अंश और हर की स्वतंत्रता की कोटि भी कहा जाता है।
प्रतिदर्शज x^2 और t को F की एक विशेष दशा माना जा सकता है और इनके संबंध को निम्नलिखित फार्मूलों द्वारा दिखाया जा सकता है:— (FORMULA)

Feasible solution
व्यवहार्य हल
किसी प्रोग्रामन समस्या का व्यवहार्य हल का वह मान होता है जो उद्धेश्य फलन तथा व्यवरोधों संबंधी असमिकाऒं का समाधान करता है।
इसे सुसंगत हल भी कहा जाता है।
इस प्रकार के हल का क्षेत्र समीकरण का सुसंगत क्षेत्र होता है तथा शेष क्षेत्र असंगत होता है। रैखिक प्रोग्रामन समस्या का हल निकालते समय हम आधारी व्यवहार्य हल से अपनी खोज आरंभ करते हैं।
आधारी व्यवहार्य हल कोई भी ऐसा हल होता है जो व्यवरोधों को संतुष्ट करे। साधारणतया आधारी व्यवहार्य हल में हम कुछ स्वतंत्र चरों का मान शून्य मानते हैं।

Fecundity
प्रजनन-क्षमता
कोई स्त्री या पुरूष प्राणि-विज्ञान की दृष्टि से बिना किसी अवरोध या निरोध के जितने बच्चे उत्पन्न कर सकता है यह उसकी प्रजनन-क्षमता कहलाती है।
प्रजनन-क्षमता को प्रजनन-दर से भिन्न समझना चाहिए क्योंकि प्रजनन दर विभिन्न अवरोधों या निरोधों के बाद वास्तविक प्रजनन के आधार पर मापी जाती है।

Fertility
जननदर∕ जननता
जननता का तात्पर्य बच्चे को जन्म देना या गर्भ धारण करना है। इसका संबंध जन्म की बारंबारता से है।
जननदर बच्चे के जन्म की प्रायिकता को दर्शाती है।
जननदर उपनति (trend) में कालांतर में जन्मों या गर्भधारणों के स्तर का अध्ययन किया जाता है।
तुल∘ दे∘ fecundity

Fertility model (post insertion)
प्रजनन मॉडल (निवेशन उपरांत)
इस मॉडल का एक नमूना नीचे दिया जाता है: (FORMULA)
यह मॉडल श्री ए∘ के∘ जैन और एलबर्ट आई∘ हर्मोलिन द्वारा तैयार किया गया है। इसके आधार पर परिवार नियोजन लूप में (I.U.D.) कार्यक्रम की सफलता के मूल्यांकन के लिए यह देखा जाता है कि निवेश (लूप लगवाने) के बाद प्रजनन पर क्या प्रभाव पड़ता है।
इसमें y (t) औसत जन्म संख्या है, जिसका संबंध बिना किसी प्रकार के गर्भ निरोध के उपायों के विवाहित वर्षों में बच्चों की संख्या से है।
t विवाहित आयु के वर्ष हैं।
N पूर्ण परिवार की संख्या का द्तयोक है जो उस समूह के लिए देखने में आती है।
a तथा b दो ऐसे प्राचल हैं जिनका मान प्रयोगात्मक आधार पर t के विभिन्न मानों के अनुरूप तथा N का कोई कल्पित मान नुर्धारित कर मॉडल में y (t) के मानों के साथ आसंजित करके परिकलित किया जाता है।
इस मॉडल की सहायता से विवाह की अवधि में विशिष्ट जननता का पता लगाया जा सकता है और देखा जा सकता है कि लूप को स्वीकार करने वालों में कितनी प्रजनन क्षमता कम हुई अर्थात कितने बच्चों के जन्म को टाला जा सकता है तथा इसका जनलंख्या वृद्धि की दर को घटाने पर क्या प्रभाव पड़ा है।

fertility rate
जननता दर
जननता दर 6 प्रकार की होती है:— (1) अशोधित जन्म दर (CBR) (वर्ष में कुल जन्म)/(मध्य वर्ष की कुल जनसंख्या)×1000 (देखें∘ Birth Rate)
(2) सामान्य जनन दर (GFR)= (वर्ष में कुल जन्म)/(गर्भधारण योग्य स्त्रियों की संख्या)×1000
(3) आयुविशिष्ट जनन दर (ASFR)=(वर्ष में कुल जन्म)/(विशिष्ट आयु की स्त्रियों की संख्या)×1000
(4) कुल जननदर (TFR) 1000 स्त्रियों के सहगण से पैदा होने वाले बच्चों की संख्या जब इनकी आयु विशिष्ट जननता दर दी हुई हो और गणना की सम्पूर्ण अवधि में प्रजनन के प्रभावाधीन या आरक्षित रही हों।
(5) संचयी जनन दर (Cumulative Fertility rate) इस दर में कुल जनन दर से यह अंतर है कि यह गर्भधारण अवस्था से लेकर किसी विशिष्ट अवधि तक 1000 स्त्रियों के सहगण से पैदा होने वाले बच्चों की संख्या होती है। 45 वर्ष से 49 वर्ष से ऊपर इसे पूर्ण जनन दर कहा जाता है।
(6) मानकित जनन दर (SFR) आयु के अनुसार जनन दर का तुलनात्मक अध्ययन ।

First order difference equation
प्रथम कोटि अंतर समीकरण
ऐसा समीकरण जो किसी चर के दो क्रमागत परिमित-काल अन्तरमनों को संबंधित करे प्रथम कोटि अन्तर समीकरण कहलाता है।
उदाहरणतया, यदि 1976 तथा 1975 की राष्ट्रीय आयों को क्रमशः y_(t ) तथा y_(t-1)से प्रदर्शित करें तो:— 〖αy〗_t+βy_(t-1)+y=0 प्रथम कोटि का अन्तर समीकरण होगा।
यदि y शून्य हो तो प्रथम कोटि अन्तर समीकरण समांग कहलायेगा अन्यथा असमांग।
इसे प्रथम कोटि समीकरण इसलिए कहा जाता है क्योंकि इसमें एक अवधि की काल पश्चता होती है।
इसका दूसरा रूप निम्नलिखित होता है:— 〖α∆y〗_(t-1)+(α+β)y_(t-1)+Y=0 अर्थमिति में इसका एक और रूप भी होता है:—〖αy〗_t+βy_(t-1)+εt+Y=0
इसमें εt त्रुटि चर का घोतक है तथा यह यादृच्छि होता है। εt, yt से संबंधित नहीं होता। आपस में स्वसहसंबंधित नहीं हैं। εt का प्रत्याशित मान (माध्य) शून्य होता है:— (I)E (εt)=0 (II)E (εt,εt-1)=0 (III) 〖E (εt〗^2)=〖σt〗^2
इस समीकरण में घातें भिन्न-भिन्न हो सकती हैं। यदि समीकरण में सभी घातें एक हों तो समीकरण रैखिक समीकरण कहलाएगा। यदि y की घातें भिन्न-भिन्न हों तो उसे अरैखिक अन्तर समीकरण कहेंगे। इस समीकरण का हल होगा:— (FORMULA) इसमें εt का बंटन प्रसामान्य होता है। प्रथम कोटि अंतर समीकरण दो प्रकार के होते हैं। (i) प्रसंभाव्य (ii) अप्रसंभाव्य अप्रसंभाव्य प्रथम कोटि अंतर समीकरण में यादृच्छिक चर नहीं होते।

Fixed point theorem
स्थिर बिन्दु प्रमेय
सामान्य संतुलन मॉडलों के संदर्भ में मॉडल की पूर्वधारणा को संतुष्ट करने वाले हल के अस्तित्व के बारे में आश्वस्त होने के लिए स्थिर बिन्दु प्रमेय का सहारा लिया जाता है। हल के अस्तित्व के लिए मॉडल के समीकरणों का संगत होना पर्याप्त शर्त है, आवश्यक नहीं।
ये प्रमेय कई प्रकार के होते हैं।
बराबर के स्थिर बिन्दु प्रमेय के अनुसार किसी बिन्दु परिसीमित उत्तल सेट के सतत संरूपण में एक स्थिर बिन्दु अवश्य होगा यथा F(x) फलन के सेट में एक बिन्दु x का अस्तित्व है जिसके लिए संरूपण को निम्न प्रकार से परिभाषित किया जा सकता है:— x=F(x)
इस प्रकार कम से कम एक बिन्दु स्वयं पर संरूपित हो जाता है और हम एक स्थिर बिन्दु की प्राप्ति के प्रति आश्वस्त हो जाते हैं।
रेखाचित्र में फलन F(x) का संरूपण दिखाया गया है। यह संरूपण अंतराल 0≤x≤1 के लिए परिभाषित है तथा यह बन्द परिसीमित तथा उत्तल सेट है।
वास्तविक बिन्दुओं का यह सेट सरल रेखा से प्रदर्शित किया जाता है। अतः यह संरूपण सतत् भी है। इसमें कम से कम एक बिन्दु ऐसा अवश्य होगा जहाँ फलन F(x) का ग्राफ मूल बिन्दु से 45° वाली सरल रेखा को काटेगा। नीचे के चित्र में ऐसा बिन्दु A है तथा इसके लिए (DIAGRAM) x=F(x) सत्य है। अतः A यहाँ एक स्थिर बिन्दु है।

Flow
प्रवाह
कुछ मात्राएं ऐसी होती हैं जो न्यूनाधिक समय में लगातार घटती-बढ़ती रहती हैं। इनका स्तर किसी काल विशेष जैसे प्रति सप्ताह अथवा प्रति मास के अनुसार मापा जाता है। इन मात्राओं को हम प्रवाह के रूप में व्यक्त करते हैं। उदाहरणार्थ, निवेश, आगत तथा निर्गत, आय, जन्म और मृत्यु दरें आदि।
इनके मुकाबले में हम कुछ मात्राओं को स्टॉक के रूप में मापते हैं जैसे किसी देश के स्वर्ण आरक्षण, परिचालित बैंक नोटों की संख्या अथवा फर्म के पूँजीगत साधन आदि।
प्रवाह संकल्पना में काल दिशा का विशेष महत्व होता है। उदाहरण के रूप में किसी व्यक्ति की आय को प्रवाह और उसके धन को स्टॉक माना जाता है।


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