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Paribhasha Kosh (Arthmiti, Janankiki, Ganitiya Arthshastra Aur Aarthik Sankhyiki) (English-Hindi)
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Baby boom
शिशु धूम
विश्वव्यापी ऊँची शिशु जन्म दर जिसके फलस्वरूप संसार के सभी देशों में धड़ा-धड़ बच्चे पैदा हो रहे हैं।
संयुक्त राष्ट्र के अनुसार यह प्रवृत्ति 1920 से विशेष रूप से दिखाई दे रही है। दूसरे विश्वयुद्ध के बाद 1946 से 1966 तक इस दर में बड़ी त्वरित वृद्धि हुई है जिसे 'शिशु धूम' का युग कहा गया है।

Balanced growth
संतुलित संवृद्धि
यह संकल्पना जर्मनी के गणितीय अर्थशास्त्री वॉन न्यूमैन (Von Neumann) द्वारा दी गई है।
सामान्य संतुलन के मॉडल में जब आर्थिक क्रियाकलाप के सभी क्षेत्रों का निर्गत विस्तार एक ही अनुपात में होता है तब संवृद्धि प्रवाह अधिकतम संतुलित संवृद्धि की स्थिति में पैदा होता है।
इसे न्यूमैन पथ की संज्ञा भी दी जाती है।
सोलो ने संतुलित संवृद्धि की स्थिति में पूँजी श्रम अनुपात का बुनियादी समीकरण इस प्रकार दिया है:— SF(K, L)=nk यहाँ पर s= वांछित बचत, k=पूँजी स्टॉक, 1= श्रम पूर्ति, तथा nk= पूँजी श्रम अनुपात बनाये रखने के लिये आवश्यक निवेश हैं।
इसके अनुसार कोई भी अर्थव्यवस्था तब संतुलन की स्थिति में होती है जब इसके सभी आगत और निर्गत एक ही अनुपात में बढ़ते हैं।

Bar diagram
दंड आरेख
यह आरेख छोटी-छोटी ऊँचाई वाली मोटी सरल रेखाओं के रूप में होते हैं। विभिन्न आर्थिक मात्राओं के तुलनात्मक अध्ययन में इन दण्डआरेखों का इस्तेमाल किया जाता है तथा आँकड़ों को दण्ड आरेख द्वारा दिखाया जाता है।
इन दण्डों की ऊँचाई और क्षेत्रफल से आँकड़ों के आयाम का पता लगता है। दो दण्डों के बीच का अन्तर अवधि को प्रगट करता है।
आवश्यकतानुसार इन आरेखों का निरूपण क्षैतिज दंडों के रूप में भी किया जा सकता है। (DIAGRAM)

Base population
आधार जनसंख्या
किसी दिए हुए क्षेत्र (जैसे राष्ट्र, प्रदेश या नगर) की ऐसी जनसंख्या जिसे निदेशन के मानक के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। यह एक ऐसे समय या वर्ष की जनसंख्या होती है जिसे सूचकांक के आधार के रूप में माना जाता है। सुविधा के लिए आधार को 100 के बराबर माना जाता है।

Basic feasible solution
बुनियादी व्यवहार्य हल/आधारी सुसंगत हल
किसी रैखिक प्रोग्रामन समस्या का ऐसा हल जिसमें सभी मान ऋणेतर हों।
ऐसा हल व्यवहार्य क्षेत्र के किसी एक चरम बिंदु के सुसंगत होता है।
यह इसलिए व्यवहार्य या सुसंगत माना जाता है क्योंकि यह व्यवहार्य क्षेत्र के अंदर होता है और यह सभी प्रतिबंधों और ऋणेतरता की शर्त को पूरा करता है।
यह इसलिए बुनियादी या आधारभूत माना जाता है क्योंकि इसका पाया जाना इस बात पर निर्भर करता है कि समस्या में रैखिक दृष्टि से तीन गुणांक सदिश होने चाहिए जो मिलकर त्रि-विम समष्टि का आधार बनाते हैं।
इस समष्टि को आपेक्षिक समष्टि (requirement space) भी कहते हैं जिसका आकार या परिमाण व्यवरोधों की संख्या पर निर्भर करता है।

Basis of space
समष्टि आधार
जिन सदिशों से किसी समष्टि के सभी बिन्दुओं का व्युत्पादन किया जा सकता है उन्हें समष्टि आधार कहते हैं।

Behavioural equations
व्यवहारपरक समीकरण
व्यवहारपरक समीकरण मानव की क्रिया प्रतिक्रिया अथवा संव्यवहार के बीज गणितीय सूत्र होते हैं।
बाजार के संदर्भ में ये माँग एवं पूर्ति संबंधो में वैयक्तिक व्यवहार का उल्लेख करते हैं।
ये फलन अपने सरलतम रूप में रैखिक माने जाते हैं। प्रतियोगी बाजार में व्यवहार के समीकरण इस प्रकार हैं :—
q^d = a + bp q^s = c + dp यहां q^d = मांग मात्रा, q^s -पूर्ति मात्रा तथा p = मूल्य।
इन समीकरणों की सहायता से हम संतुलन की स्थिति का पता लगा सकते हैं।
यद्यपि इनके बारे में यह पूर्व धारणा है कि इनकी प्रकृति रैखिक होती है तथापि वास्तविक जगत में यह अरैखिक भी हो सकती है।
तुल∘ दे∘ definitional equation

Bergson contour
बर्गसन कन्टूर
बर्गसन कन्टूर (समोच्च रेखा) मात्राओं के समाहार के वैकल्पिक संयोगों को दिखाती है।
बर्गसन एक फ्रांसिसी समाज विज्ञानी थे जिनका मत है कि अनुभव की दो स्थितियों को अंतराल रेखाओं द्वारा स्पष्टतया दिखाया जा सकता है।
उपभोक्ता क्षेत्र में यदि हम दो व्यक्तियों के समाज की कल्पना करें और दो वस्तुओं q₁ q₂ को विचार में लायें तब उनसे मिलने वाली उपयोगिताओं को वितरण के संगत समोच्च रेखाओं द्वारा नीचे दिए चित्र के अनुसार दिखाया जा सकता है। (DIAGRAM)
q₂ की अल्पतम मात्रा जो q₁ की किसी मात्रा की संगत मात्रा होती है, ₂ की उस अल्पतम मात्रा को दिखाती है जो समाज को एक निश्चित कल्याण फलन पर रहने के लिए आश्वासन देती है।
इस चित्र में दिया गया आवरण (envelop) सीटोवस्की (Scitovsky) समोच्च रेखा से मिलता-जुलता है जो Q₁, Q₂ की उन अल्पतम मात्राओं के संयोगों का, जो समाज को एक निश्चित कल्याण फलन पर रखने के लिए आवश्यक है, बिंदुपथ होता है।
यह आवरण (envelop) AB बर्गसन कन्टूर कहलाता है।

Best estimator
श्रेष्ठ आकलक
प्रतिदर्श द्वारा दी गई सूचना के आधार पर किसी समष्टि के प्राचलों का ऐसा आकलन जो यथार्थ या वास्तविकता के निकट होता है श्रेष्ठ आकलक कहा जाता है।
इसका निर्णय समंजन की कसौटी द्वारा किया जाता है। यदि हमारे पास कोई ऐसा निकर्ष होता है, जिसके आधार पर हम दो आकलकों में से यह निर्णय कर सकें कि इनमें से एक आकलक दूसरे से श्रेष्ठ हे तब हम प्रसरण की इसी प्रक्रिया द्वारा यह भी कह सकते हैं कि इसका कोई श्रेष्ठतम आकलक भी हो सकता है।
श्रेष्ठतम आकलक के चयन में जिन निकर्षों का प्रयोग होता है, उनमें प्रमुख हैं—पर्याप्तता, न्यूनतम प्रसरण, संगतता, इत्यादि।

Better decision function
सुष्ठुतर निर्णय फलन
निर्णय फलन के गुण-दोष की परख जोखिम फलन की कसौटी द्वारा की जाती है अर्थात् निर्णय के द्वारा लिये जाने वाले जोखिम का मूल्य कितना है।
जोखिम का तात्पर्य है कि किसी प्रयोग पर हमारी कितनी लागत आएगी और इसमें प्रत्याशित हानि को निकाल कर हमें कुल कितना लाभ होगा।
किसी दी हुई परिस्थिति में प्रत्येक प्रकार के निर्णयों के साथ अलग-अलग हानि फलन जुड़े हुए होते हैं।
निर्णय फलन को तभी दूसरे निर्णय फलन से उत्तम या श्रेष्ठ कहा जा सकता है जबकि उसका जोखिम फलन दूसरे निर्णय के साथ जुड़े हुए जोखिम फलन से अधिक न हो बल्कि कुछ निश्चित मूल्यों पर उसका जोखिम दूसरे से कम हो।


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