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Paribhasha Kosh (Arthmiti, Janankiki, Ganitiya Arthshastra Aur Aarthik Sankhyiki) (English-Hindi)
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Machine tabulations
मशीन सारणीयन
मशीनों द्वारा सारणीयन की प्रक्रिया। कई बार यह आँकड़ा—कार्डों को पंच करके पूरी की जाती है।
जनसंख्या संबंधी आँकड़े कई बार ऐसे प्रलेखों से उद्घृत किये जाते हैं जो मुख्यतः इस प्रयोजन से तैयार नहीं किये होते। इसके लिए बुनियादी प्रलेखों पहले कूट संकेतों या संख्याओं का प्रयोग किया जाता है। फिर एक कूट योजना के अंतर्गत इनको कुछ शीर्षों के अंतर्गत कुँजी या बटन दबाकर वर्गीकृत किया जाता है।
मशीन द्वारा सारणियाँ तैयार करने की पद्धति निम्नलिखित हैं:— (1) छिद्रण या पंचिग— इस प्रक्रम में छिद्रित पत्रक पर सूचना को अंतरित किया जाता है, (2) पड़ताल या सत्यापन— इस प्रक्रम में पंच की गई सूचना की परिशुद्धता की जाँच की जाती है, (3) छँटाई या शाटन— इस प्रक्रम में एक निर्धारित क्रम से कार्डों की छंटाई की जाती है तथा (4) सारणीयन— इस प्रक्रम में कार्डों की गिनती की जाती है और कुछ वर्गों में बाँटकर उनका जोड़ लगाया जाता है।
उपर्युक्त कार्यों के लिए जोड़ करने वाली मशीनों, परिकलन मशीनों, गुणा करने वाली मशीनों, डेस्क मशीनों और कम्प्यूटरों आदि का बहुधा प्रयोग किया जाता है।

Magnificent dynamics
राजसी गतिकी
संस्थापक अर्थशास्त्रीय सिद्धांतों की प्रणाली को विलियम ज∘ बाऊमल द्वारा गया नाम।
इस प्रणाली का नामकरण क्लासिकीय अर्थशास्त्रियों द्वारा अपनायी जाने वाली पद्धति के कारण किया गया है। इन अर्थशास्त्रियों ने व्यापक सामान्य नियमों के आधार पर सरल निष्कर्षों के रूप में अर्थशास्त्र के जो नियम प्रतिपादित किए हैं राजसी गतिकी के अंतर्गत उनका अध्ययन किया जाता है।
इसमें सम्मिलित विषयों का विश्लेषण सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था के दीर्घ-कालीन विश्लेषण से भिन्न होता है।
राजसी गतिकी का प्रक्रम या अनुक्रमी विश्लेषण से अन्तर उनकी क्रिया पद्धतियों के कारण किया जाता है।
राजसी गतिकी में निगमन विश्लेषण विधियों द्वारा सामान्यीकृत आर्थिक निष्कर्षों को ज्ञात करते हैं जबकि प्रक्रम विश्लेषण में आगमन विधियों (गणितीय नियमों, पुनरूक्ति, सांखिकीय विश्लेषण) का उपयोग किया जाता है।

Maintained hypothesis
सुस्थापित परिकल्पना
प्रारंभिक ज्ञान पर आधारित सांख्यिकी निष्कर्षों या कथनों का समूह या मॉडल सुस्थापित संकल्पना के नाम से जाना जाता है।
सुस्थापित संकल्पना विश्लेषण का पहला चरण है। इसे प्रायः सत्य माना जाता है तथा सांख्यिकीय निष्कर्ष निकालने की प्रक्रिया के दौरान इस पर किसी किस्म का संदेह नहीं व्यक्त किया जाता है।
विश्लेषण के दूसरे चरण में प्रेक्षणों के आधार पर प्रायिकता सिद्धांत की सहायता से इसके बारे में अन्य निष्कर्ष निकाले जाते हैं।
यदि प्रायिकता सिद्धांत का प्रयोग किया जाता है तो सुस्थापित परिकल्पना के साथ-साथ कम से कम यह स्पष्ट करना चाहिए कि अन्य प्रेक्षण यादृष्छिक विधि से चुने गए हैं।

Malthusian population theory
माल्थस का जनसंख्या सिद्धांत
माल्थस का जनसंख्या सिद्धांत अपने जन्मदाता थॉमस माल्थस (1766-1834) द्वारा प्रतिपादित किया गया था।
इसके अनुसार “मानव जनसंख्या पर यदि कोई रोक न लगाई जाये तो वह गुणोत्तर श्रेणी में बढ़ती है। जबकि जीवन निर्वाह के साधन विशेषतः खाद्यान्न का उत्पादन समांतर श्रेणी के अनुसार बढ़ता है।”
अतः जनसंख्या की तुलना में जीवन निर्वाह के साधनों की कमी होती जाती है और उनपर जनसंख्या का दबाव बढ़ता जाता है।
जनसंख्या के इस दबाव को रोकने के लिए आवश्यकता इस बात की है कि जनसंख्या को निर्बाध गति से बढ़ने न दिया जाये और उसके लिए नियंत्रण के उपाय काम में लाये जायें।
यदि ऐसा नहीं किया जाता तो स्वतः प्राकृतिक शक्तियाँ— जैसे अकाल, बाढ़ या युद्धों के माध्यम से, जनसंख्या तथा खाद्यान्न में संतुलन स्थापित कर देतीं हैं।

Mapping
प्रतिचित्रण
फलन का दूसरा नाम। कभी-कभी इसे रूपांतरण भी कहा जाता है।
प्रतिचित्रण में फलन की भाँति दो पदों का संबंध दिखाया जाता है। इसके लिए आलेखीय या बीजगणितीय विधियों का प्रयोग किया जाता है जैसे: f:x→y के प्रतिचित्रण को प्रकट करता है। इसमें f:x प्रतिचित्रण के नियम को बताता है।
तुल∘ दे∘ function

Marginal population
उपांत जनसंख्या
रोजगार या जीविका की तलाश में शहरों में या अधिक विकसित क्षेत्रों में जाने वाली जनसंख्या।
बहुत से क्षेत्रों में जनसंख्या की वृद्धि बड़ी तेजी से होती है किन्तु आर्थिक प्रगति अपेक्षाकृत कम होती है। आर्थिक दृष्टि से कमजोर वर्ग के लोग या ऐसी जनसंख्या उपांत जनसंख्या कहलाती है। जब इन लोगों को नगरों में काम मिल जाता है तो ये वहाँ रहते हैं और जब काम नहीं मिलता तो अपने ग्रामीण क्षेत्र में वापस आ जाते हैं।
किसी भी देश की उपांत जनसंख्या बहुत निर्धन होती है और भुखमरी के स्तर या गरीबी की सीमारेखा से नीचे रहने वाली मानी जाती है।

Marital status
वैवाहिक स्थिति
व्यक्ति की वैवाहिक स्थिति उसके विवाह के होने या न होने के आधार पर निर्धारित की जाती है। इसे प्रायः चार भागों में बाँटा जाता है, यथा (1) अविवाहित, (2) विवाहित, (3) विधवा या विधुर तथा (4) तलाकशुदा।
ऐसी विवाहित स्त्रियाँ जिनके पति सामान्यतः उनके साथ रहते हैं वर्तमानतः विवाहित स्त्रियों (currently married women) की श्रेणी में आती हैं। प्रजनन विश्लेषण में संख्या अलग से गिनी जाती है।

Mark sensing
चिन्ह बोधन
जनगणना या आँकड़ा अनुसूचियों में पेंसिल से अंकित विशेष चिन्हो को मशीन द्वारा छिद्रित कार्डों पर अंतरित करने की संक्रिया को चिन्ह बोधन कहते हैं।
इस संक्रिया द्वारा पंचिंग और पड़ताल दोनों काम एक साथ किए जा सकते हैं।

Marriageable population
विवाह योग्य जनसंख्या
विवाह योग्य जनसंख्या में ऐसे सभी व्यक्ति सम्मिलित होते हैं जो कानूनी तौर पर विवाह के लिए करार कर सकते हैं।
भारत में विवाह की न्यूनतम आयु लड़के और लड़की के लिए क्रमशः 18 व 15 वर्ष थी। अब इसे बढ़कर 21 व 18 करने का प्रस्ताव है।
इसके विपरीत गैर विवाह योग्य जनसंख्या वह होती है जो इस प्रकार का करार नहीं कर सकती।
विधुर, विधवाएं या तलाकशुदा व्यक्ति दुबारा विवाह कर सकते हैं किन्तु उनके विवाह का अंतर स्पष्ट करने के लिए (पुनर्विवाह) की संज्ञा दी जाती है।

Marriage age = (age at marriage)
विवाह आयु
ऐसी विशिष्ट आयु का अन्तराल जिस पर विवाह करने के लिए अधिकांश लोग या जनसंख्या लालायित रहती है अथवा जिस आयु पर विवाह करने के लिए अधिकतर लोगों की भीड़ लगी रहती है।
यह आयु देश काल के अनुसार पुरूषों और स्त्रियों के लिए भिन्न-भिन्न हो सकती है।
इस संकल्पना का एक चर के रूप में प्रजनन दर व जनसंख्या वृद्धि पर बड़ा प्रभाव पड़ता है।


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