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Paribhasha Kosh (Arthmiti, Janankiki, Ganitiya Arthshastra Aur Aarthik Sankhyiki) (English-Hindi)
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Dual pricing
दोहरी कीमतें
दोहरी कीमतें वह ऊँची से ऊँची कीमतें हैं जो लागत को न्यूनतम रखते हुए विभिन्न उत्पादनों मे अर्जित लाभ को तमाम प्रयुक्त साधनों (आगतों) में पूर्ण रूप से वितरित करती हैं।
इनको रेखा कीमतें तथा प्रतिच्छाया कीमतें भी कहा जाता है। रैखिक समस्या में द्वैत कीमतों को सदिश मानकर उनको चरों के रूप में परिकलित किया जाता है।
सार्वजनिक वितरण प्रणाली, बेरोजगारी और वेतन सिद्धांत में इनका विशेष महत्व माना गया है।

Dual programming
द्वैत प्रोग्रामन
मूल रैखिक प्रोग्रामन का प्रतिपक्ष।
तुल∘ दे∘ duality theorem तथा linear programming

Dual record system
दोहरी अभिलेख पद्धति
दोहरी अभिलेख पद्धति का तात्पर्य है दो विधियों से या दोतरफा रिकार्ड तैयार करना।
जीवन संबंधी प्रमुख घटनाओं (जैसे जन्म, मृत्यु, विवाह आदि) के बारे में आँकड़े इकट्ठे करने के लिए दोहरी अभिलेख पद्धति अपनाई जाती है।
इस पद्धति में दो प्रकार की विधियाँ काम में लाई जाती हैं:— (1) ऐसी प्रमुख घटनाओं के बारे में सूचियों या फार्मों पर निरंतर विधिवत सूचनाएँ एकत्रित की जाती हैं और उन्हें रजिस्टरों में दर्ज किया जाता है, तथा (2) उस क्षेत्र में समय-समय पर घरों में जाकर साक्षात्कार सर्वेक्षण किए जाते हैं और उनसे घटनाओं के बारे में आँकड़े एकत्रित किए जाते हैं।

Duality theorem
द्वैत प्रमेय
द्वैत प्रमेय के अनुसार किसी समस्या (यदि उसके हल का अस्तित्व हो) के हल तथा उससे संबंधित द्वैत समस्या का हल समान होता है।
रैखिक प्रोग्रामन समस्या में कई द्वैत प्रमेय हैं जो इन समस्याओं की विशेषताओं को प्रदर्शित करते हैं। जैसे, यदि आद्य समस्या में n चर तथा m प्रतिबंध हों तो द्वैत समस्या में m चर तथा n प्रतिबंध होंगे।
हल हेतु आद्य समस्या में n मूक चर तथा द्वैत समस्या में n मूक चरों का समावेश करना पड़ेगा।
इसी प्रकार एक अन्य द्वैत प्रमेय के अनुसार यदि द्वैत समस्या में कोई समस्या चर yi अनुकूलतम हल में शून्येतर मान ग्रहण करता है तो उससे संबंधित आद्य समस्या का मूक चर शून्य मान ग्रहण करेगा।

Dummy variables
मूक चर
ऐसे न्यून चर या अधिचर जो हमें न्यूनतमीकरण या अधिकतमीकरण के संदर्भ में प्रतिबंधित असिमकाओं को पूर्ण समीकरणों में बदलने में सहायता देते हैं।
ये चर हमें व्यवहार्य प्रक्षेत्र के अंतिम बिन्दुओं का पता लगाने में सहायता करते हैं।
तुल∘ दे∘ slack variable

Dynamic analysis
गति की विश्षलेण
कालांतर में गतिशील चरों और पदों से संबंधित विश्लेषण।
आर्थिक घटनाक्रम की दिशा और मात्राएँ निरंतर बदलती रहती हैं। उत्पादिता और वास्तविक आय घटती-बढ़ती रहती है और इसके फलस्वरूप माँग और पूर्ति के वक्र भी बदलते रहते हैं। भिन्न-भिन्न वस्तुओं के लिए यह परिवर्तन दर अलग-अलग होती है। इस प्रकार आर्थिक संवृद्धि के प्रक्रम में हमें अर्थव्यवस्था के अन्तर्गत साधनों के आबंटन में दक्षता की दृष्टि से सदा फेर-बदल करना पड़ता है। इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए आर्थिक क्रिया या व्यवहार का जो अध्ययन किया जाता है उसे गतिकी विश्लेषण कहा जाता है।
इसके अन्तर्गत हम अधिमाँग के कारण होने वाले कीमतों और पूर्ति के परिवर्तनों का अध्ययन करते हैं और बाजार के संतुलन की स्थिति ज्ञात करने का यत्न करते हैं।

Dynamic multiplier
गत्यात्मक गुणक
स्थैतिक गुणक विश्लेषण में समय पश्चता तथा प्रत्याशाओं का समावेश करने पर गत्यात्मक गुणक प्रत्यय प्राप्त होता है।

Dynamic theory
गतिकीय सिद्धांत
गतिकीय सिद्धांत एक प्रकार का काल फलन मॉडल है।
गतिकीय मॉडल में संरचना समीकरणों में एक ऐसा चर अवश्य होता है जिसका मान अलग-अलग समयों पर लिया जाता है जिसे काल अवकलज कहा जाता है।
किसी अवधि में होने वाले परिवर्तन ऐसे हो सकते हैं कि मॉडल की संरचना तथा बहिर्जात चर (काल या अवधि को छोड़कर) स्थिर रहें किंतु इसके अन्तर्जात चर बदल जाएं और इनका अन्य स्थितियों के साथ एकदम समंजन न होकर इनमें कुछ समय लगे। इन्हें गतिकी परिवर्तन की संज्ञा दी जाती है।
इसका एक उदाहरण मकड़जाल का प्रसिद्ध सिद्धांत है जिसमें किसी वस्तु की एक वर्ष में माँग की मात्रा उसकी चालू कीमत पर निर्भर करती है किन्तु पूर्ति की मात्रा पिछले वर्ष की कीमत पर निर्भर करती है।

Echelon matrix
सोपानिक आव्यूह
यदि कोई आव्यूह A, m x m आकार का और इसमें m x m व्यूत्क्रमणीय अथवा नियमित आव्यूह B शामिल होता है तब BA को सोपानिक आव्यूह कहा जाता है।
कोई आव्यूह तभी सोपानिक स्वरूप का होता है, जब यह निम्नलिखित शर्तों को पूरा करता है:— (क) इसकी प्रत्येक पंक्ति में सभी शून्य हों अथवा एक पंक्ति में 1 हो और इससे पूर्व अन्य सभी शून्य हों, किंतु 1 के पश्चात आवश्यक नहीं शून्य ही आये, (ख) किसी भी स्तंभ में प्रथम अंक 1 होने पर शेष सभी पंक्तियों के अवयव शून्य हों।

Echo effect = (Renewal theory)
प्रतिध्वनि प्रभाव
इस सिद्धांत के अनुसार किसी प्रारंभिक निवेश के प्रभाव से प्रतिस्थापनों का एक ऐसा समुच्चय पैदा होता है जिसे हम कालक्रम में फैलाकर दिखा सकते हैं और फिर प्रत्येक नए प्रतिस्थापन के फलस्वरूप आगे से आगे नए सेट बनते रहते हैं। निवेश के इस प्रभाव को हम प्रतिध्वनि प्रभाव कहते हैं।
प्रतिध्वनि प्रभाव पूँजी निर्माण सिद्धांत में आवधिक घात या जनांकिकी में मर्त्यता बंटन से संबद्ध होता है। इसमें प्रतिस्थापनों का आवधिक बंटन तथा आवधिक निवेश के चक्र या जनसंख्या चक्र शामिल होते हैं जिनमें मर्त्यता और जन्म दर के चरों का उल्लेख रहता है।


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