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Paribhasha Kosh (Arthmiti, Janankiki, Ganitiya Arthshastra Aur Aarthik Sankhyiki) (English-Hindi)
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Asymptotic effciency
उपगामी दक्षता
दक्षता की भाँति उपगामी दक्षता भी एक आपेक्षिक माप है।
यदि कोई प्रसरण V(x₁) किसी दूसरे प्रसरण V(x₂) से उपगामी रूप से कम हो, तो x₁ को x₂ के सापेक्ष अधिक उपगामी दक्षता वाला बंटन कहते हैं।

Auto-correlation
स्वः सहसंबंध
किसी दी हुई काल श्रेणी का जब अपनी ही श्रेणी से पश्च सहसंबंध होता है तो उसे स्वःसहसंबंध कहते हैं। सूत्र रूप में,
∑(ut) (ut - 1) P = ------------------- ∑ ut² - 1
स्थिर काल श्रेणी में कोई ऐसा सहसंबंध या प्रवृत्ति नहीं होती। जब काल श्रेणी की गति आवर्ती होती है, तब किसी निश्चित अवधि के बाद पहले की स्थिति अवश्य दोहराई जाती है, किन्तु यदि गति अनियमित होती है अर्थात् जहाँ पर अवधि और आयाम स्थिर नहीं होते वहाँ पर आवर्तिता का पाया जाना आवश्यक नहीं।

Autonomy=(autonomous equation)
स्वायत्तता
अर्थव्यवस्था में केवल एक वर्ग या क्षेत्र के व्यवहार में होने वाले परिर्तवनों से प्रभावित होने का गुण जैसे जब पूर्ति समीकरण पर केवल विक्रेताओं के व्यवहार का प्रभाव पड़ता है या माँग समीकरण पर केवल खरीदारों का प्रभाव पड़ता है तथा ये दोनों क्रमशः माँग या पूर्ति में होने वाले परिवर्तनों से अप्रभावित रहते हैं।
इस प्रकार के व्यवहार को प्रगट करने वाले समीकरणों को अर्थमिति में स्वायत्त समीकरण कहा जाता है।

Auto-regressive disturbance
स्वःसमाश्रयी विक्षोभ
स्वःसमाश्रयी समीकरण का तात्पर्य एक ऐसा समीकरण होता है जो अपने चर का मान अपने किसी पूर्व मान पर समाश्रित दिखाता है। जैसे स्वःसमाश्रयी समीकरण में ut एक यादृच्छिक चर है जो अपने पहले मानों पर पूर्णतः आश्रित है—
ut = δut - 1 + vt, δ ≠ 0 इसमें ut और ut - 1 का सहसंबंध शून्येतर होगा ।
जब किसी समीकरण में कोई चर निरंतर स्वतंत्र नहीं होता किन्तु अपनी पहली अवधि के मानों पर निर्भर करता है तो ऐसे चर में परिवर्तन होने से समीकरण का जो नया रूप होता है वह स्वःसमाश्रयी विक्षोभ का फल कहा जाता है।
इसके पीछे यह अभिग्रह है कि किसी भी अवधि में होने वाले परिवर्तन दो भागों में बाँटे जा सकते हैं। (1) जो उसकी पूर्व अवधि के परिवर्तन के गुणांक होते हैं, और (2) जो यादृच्छिक विक्षोभ के कारण पैदा होते हैं।
पहले प्रकार के परिवर्तनों के गुण पूर्व निर्धारित ut के अनुसार होते हैं। दूसरी प्रकार के परिवर्तन रैखिक एकघाती अविकल समीकरणों के रूप में होते हैं और इनमें vt के यादृच्छिक विक्षोभ को पहले से नहीं देखा जा सकता।
इन समीकरणों का व्यापार चक्र तथा काल श्रेणी के अध्ययनों में प्रयोग किया जाता है।

Average deviation
औसत विचलन
विचलनों का माध्य या औसत अर्थात् माध्यम से घट-बढ़ों का औसत।
तुल∘ दे∘ mean deviation

Baby boom
शिशु धूम
विश्वव्यापी ऊँची शिशु जन्म दर जिसके फलस्वरूप संसार के सभी देशों में धड़ा-धड़ बच्चे पैदा हो रहे हैं।
संयुक्त राष्ट्र के अनुसार यह प्रवृत्ति 1920 से विशेष रूप से दिखाई दे रही है। दूसरे विश्वयुद्ध के बाद 1946 से 1966 तक इस दर में बड़ी त्वरित वृद्धि हुई है जिसे 'शिशु धूम' का युग कहा गया है।

Balanced growth
संतुलित संवृद्धि
यह संकल्पना जर्मनी के गणितीय अर्थशास्त्री वॉन न्यूमैन (Von Neumann) द्वारा दी गई है।
सामान्य संतुलन के मॉडल में जब आर्थिक क्रियाकलाप के सभी क्षेत्रों का निर्गत विस्तार एक ही अनुपात में होता है तब संवृद्धि प्रवाह अधिकतम संतुलित संवृद्धि की स्थिति में पैदा होता है।
इसे न्यूमैन पथ की संज्ञा भी दी जाती है।
सोलो ने संतुलित संवृद्धि की स्थिति में पूँजी श्रम अनुपात का बुनियादी समीकरण इस प्रकार दिया है:— SF(K, L)=nk यहाँ पर s= वांछित बचत, k=पूँजी स्टॉक, 1= श्रम पूर्ति, तथा nk= पूँजी श्रम अनुपात बनाये रखने के लिये आवश्यक निवेश हैं।
इसके अनुसार कोई भी अर्थव्यवस्था तब संतुलन की स्थिति में होती है जब इसके सभी आगत और निर्गत एक ही अनुपात में बढ़ते हैं।

Bar diagram
दंड आरेख
यह आरेख छोटी-छोटी ऊँचाई वाली मोटी सरल रेखाओं के रूप में होते हैं। विभिन्न आर्थिक मात्राओं के तुलनात्मक अध्ययन में इन दण्डआरेखों का इस्तेमाल किया जाता है तथा आँकड़ों को दण्ड आरेख द्वारा दिखाया जाता है।
इन दण्डों की ऊँचाई और क्षेत्रफल से आँकड़ों के आयाम का पता लगता है। दो दण्डों के बीच का अन्तर अवधि को प्रगट करता है।
आवश्यकतानुसार इन आरेखों का निरूपण क्षैतिज दंडों के रूप में भी किया जा सकता है। (DIAGRAM)

Base population
आधार जनसंख्या
किसी दिए हुए क्षेत्र (जैसे राष्ट्र, प्रदेश या नगर) की ऐसी जनसंख्या जिसे निदेशन के मानक के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। यह एक ऐसे समय या वर्ष की जनसंख्या होती है जिसे सूचकांक के आधार के रूप में माना जाता है। सुविधा के लिए आधार को 100 के बराबर माना जाता है।

Basic feasible solution
बुनियादी व्यवहार्य हल/आधारी सुसंगत हल
किसी रैखिक प्रोग्रामन समस्या का ऐसा हल जिसमें सभी मान ऋणेतर हों।
ऐसा हल व्यवहार्य क्षेत्र के किसी एक चरम बिंदु के सुसंगत होता है।
यह इसलिए व्यवहार्य या सुसंगत माना जाता है क्योंकि यह व्यवहार्य क्षेत्र के अंदर होता है और यह सभी प्रतिबंधों और ऋणेतरता की शर्त को पूरा करता है।
यह इसलिए बुनियादी या आधारभूत माना जाता है क्योंकि इसका पाया जाना इस बात पर निर्भर करता है कि समस्या में रैखिक दृष्टि से तीन गुणांक सदिश होने चाहिए जो मिलकर त्रि-विम समष्टि का आधार बनाते हैं।
इस समष्टि को आपेक्षिक समष्टि (requirement space) भी कहते हैं जिसका आकार या परिमाण व्यवरोधों की संख्या पर निर्भर करता है।


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