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Paribhasha Kosh (Arthmiti, Janankiki, Ganitiya Arthshastra Aur Aarthik Sankhyiki) (English-Hindi)
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Data processing
आँकड़ों का प्रक्रमण
आँकड़ों के प्रक्रमण में निम्नलिखित कार्य शामिल किए जा सकते हैं:— (1) संपादन (2) वर्गीकरण (3) सारणीयन (4) विश्लेषण तथा (5) निर्वचन

Death function
मृत्यु फलन
जीवन सारणी के सहगणों में से भिन्न-भिन्न आयुओं पर मरने वाले व्यक्तियों की संख्या को उस आयु का मृत्यु फलन कहते हैं।
आयु x और x+n के बीच मरने वाले लोगों की संख्या और x आयु पर जीवित लोगों की संख्या के बीच अनुपात को मृत्यु की प्रायिकता (qx) कहा जाता हैं। ये फलन नीचे दी गई विधि से लिखे जाते हैं:—
(1) x और x+n की आयु के बीच मरने वाले व्यक्तियों की संख्या = मृत्यु फलन ndx (2) x और x+n की आयु के बीच मरने वाले लोगों की प्रायिकता = nqx (3) x आयु पर केन्द्रीय मृत्यु दर = mx

Death rate
मृत्यु दर
मृत्यु दर किसी क्षेत्र में एक निश्चित अवधि में मृत्युओं की कुल संख्या को सम्पूर्ण जनसंख्या से भाग करने पर प्राप्त होती है।
मानव-जनसंख्या के लिए यह अवधि सामान्यतः एक वर्ष ली जाती है। चूंकि, जनसंख्या में वृद्धि होती रहती है अतः वर्ष के मध्य में जो जनसंख्या होती है उसी को संपूर्ण जनसंख्या मान लिया जाता है।
इस प्रकार मृत्यु दर अशोधित होती है। यदि इसमें किसी आधार पर संशोधन कर दिया जाये तो वह शोधित या मानक मृत्यु दर कहलाती है।

Decreasing function
ह्रासमान फलन
जब एक चर या वस्तु की मात्रा y का दूसरे संतत चर या वस्तु की मात्रा x के साथ ऐसा संबंध हो कि x के बढ़ने पर y का मान घटे तब ऐसे संबंध को x का ह्रासमान फलन कहा जाता है।

Definitional equation
परिभाषानिष्ठ समीकरण
परिभाषानिष्ठ मॉडल या समीकरण ऐसे हैं जो केवल पारिभाषिक आर्थिक संबंधों को प्रगट करते हैं जैसे:— y = c + I यहाँ आय (y) =उपभोग (c) + निवेश ( I )
आर्थिक सिद्धांत में समीकरणों को चार भागों में बाँटा गया है:— (1) परिभाषा निष्ठ समीकरण (2) व्यवहार समीकरण (3) तकनीकी समीकरण (4) संस्थागत समीकरण
व्यवहार समीकरण व्यक्तियों या आर्थिक इकाइयों के व्यवहार को बताते हैं, जैसे उपभोग फलन ।
तकनीकी समीकरण तकनीकी आर्थिक संबंधों को प्रगट करते हैं, जैसे उत्पादन फलन।
संस्थागत समीकरण संस्थागत आर्थिक संबंधों को प्रदर्शित करते हैं, जैसे राजस्व या कर समीकरण।
तुल∘ दे∘ behavioural equation

Degeneracy problem
अपभ्रष्टता समस्या
अपभ्रष्टता की समस्या तब पैदा होती है जब रैखिक प्रोग्रमन विधि में दो चर परस्पर बराबर होते हैं। ऐसी स्थिति में सदा यह प्रश्न आड़े आता है कि उद्देश्य फलन में सुधार लाने वाला आविष्ट चर कहाँ से लिया जाये।
इस असमंजस की स्थिति (tie) को सुलझाने के लिए ऐसा चर चुनने की कोशिश की जाती है जिसका पादांक न्यूनतम होता है या फिर यादृच्छ संख्याओं की सारणी में जिस चर का पादांक पहले आता है उसे छोड़ दिया जाता है।

Degrees of freedom
स्वातंत्र्य कोटियाँ
स्वातंत्र्य से अभिप्राय है विचरित होने की स्वतंत्रता।
यदि एक प्रतिदर्श में x₁, x2, x₃ .............,xƞ; ƞ प्रेक्षण हों, तो x₁ की अन्य प्रेक्षणों के साथ (x₁ — x₂ ), (x₁ — x ₃ ),.............(x₁ — xƞ) इत्यादि ƞ—1 तुलनाएं होंगी। प्रेक्षणों के बीच यह तुलनाएं ‘स्वात्र्य कोटियाँ’ कहलाती हैं।
दूसरे शब्दों में स्वातंत्र्य कोटियों की संख्या एक समुच्चय में मानों की स्वेच्छ निर्दिष्ट संख्या है।
उदाहरणतया, x₁ , x₂, .........,xƞ पर निर्मित किसी समीकरण में यदि हम x₂, x₃ .......,xƞ के कोई भी मान निर्दिष्ट कर दें तब x₁ का मान स्वतः ही निर्धारित हो जायेगा। x₁ का मान इस प्रकार अन्य ƞ—1 प्रेक्षणों के मानों पर निर्भर करेगा। ये ƞ—1 मान मुक्त मान हैं और इनका वरण स्वतंत्र रूप से होता है।

Delimitation
परिसीमन
परिसीमन का अर्थ है क्षेत्रीय सीमाएं निर्धारित करना।
उदाहरण के लिए जनगणना के संदर्भ में कुल आबादी को गणना योग्य क्षेत्रों में परिसीमित कर दिया जाता है जैसे गाँव, तहसील, ब्लाक, ज़िला, राज्य या प्रदेश आदि।
यह कार्य नियत अवधि पर जनगणना आयुक्त द्वारा किया जाता है। इस प्रकार के क्षेत्रीय परिसीमन में सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक इकाइयों को अलग-अलग दिखाने का प्रयत्न किया जाता है।
परिसीमन को क्षेत्रीय वर्गीकरण तथा भौगोलिक वितरण का आधार माना जाता है। परिसीमन करते समय यह ध्यान रखना आनश्यक है कि क्षेत्र का कोई भाग छूट न जाये और कोई भाग दो क्षेत्रों में न आ जाए।

Demand curve
माँग वक्र
माँग वक्र दी हुई आय पर उपयोगिता फलनों के आधार पर परिकलित किए जाते हैं।
किसी वस्तु की कीमत बढ़ जाने पर उसकी माँग दो कारणों से घट सकती है— (1) वास्तविक आय में कमी, और (2) सस्ते स्थानापन्नों की तलाश ।
माँग वक्र सामान्यतः दाहिनी ओर अधोमुखी होते हैं जब माँग वक्र नीचे की ओर जाता है तो सीमांत आय का वक्र भी अधोमुखी होता है। (DIAGRAM)

Demand function
माँग फलन
माँग फलन का अर्थ माँग मात्रा और कीमत के परस्पर संबंध से है। माँग फलन को औसत आय फलन भी कहते हैं।
सामान्यतः माँग की लोच माँग फलन के झुकाव पर निर्भर करती है जिसे हम निम्न प्रकार से व्यक्त करते हैं—
f=(माँगी गई मात्रा में आनुपातिक परिवर्तन)/(कीमत में आनुपातिक परिवर्तन) अथवा ∆q/∆p . p/q


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