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Paribhasha Kosh (Arthmiti, Janankiki, Ganitiya Arthshastra Aur Aarthik Sankhyiki) (English-Hindi)
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Completeness rate
पूर्णता दर
जब किसी घटना के लिए दोहरी रिकार्ड पद्धति का प्रयोग करते हैं तब इनमें से एक विधि को मानक मानकर दूसरी विधि द्वारा परिकलित दर के पहली दर से अनुपात को पूर्णता दर कहते हैं।
पूर्णता दर का प्रयोग पँजीकृत जन्म व मृत्यु दर के आँकड़ों की पूर्णता बताता है।

Complete years of Protection (CYP)
संरक्षण के दम्पत्ति-वर्ष
परिवार-नियोजन कार्यक्रम के अन्तर्गत किसी उपाय या विधि की सफलता आँकने के लिए यह देखा जाता है कि दम्पत्ति को इस उपाय द्वारा कितने वर्ष तक गर्भाधान से संरक्षण प्राप्त हुआ और इस उपाय के प्रयोग द्वारा कितने बच्चों के जन्म को रोका जा सका।
व्यावसायिक जनांकिकीविद् इस प्रकार के विश्लेषण में संरक्षण के दम्पत्ति वर्ष का सूचकांक निकालने के लिए निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग करते हैं :— (FORMULA)
यहाँ Cn कुल बाँटे गए रूढ़िगत गर्भनिरोधकों की संख्या, TLn स्त्रियों के आपरेशनों की संख्या, Vn पुरूषों के आपरेशनों की संख्या, O = बाँटी गई गोलियों की संख्या, और In लगाए गए लूपों की संख्या है।

Complex number
सम्मिश्र संख्या
ऐसी संख्या जिसमें साधारणतया एक वास्तविक तथा एक अधिकल्पित भाग होता है, यथा a + bi
यहाँ 'a' वास्तविक भाग है तथा bi अधिकल्पित। स्वयं 'b' एक वास्तविक संख्या है और I = √-1
इसकी संयुग्मी संख्या (Conjugate number) a - bi होती है।

Component part chart
घटक चार्ट
किसी सदिश मात्रा को एक अक्ष पर दिखाने वाला चार्ट। कई बार दण्ड आरेखों और वृत्त आरेखों द्वारा आर्थिक अवयवों का संपूर्ण निदर्शन नहीं हो पाता अर्थात् इनकी लंबाई और विभिन्न चापों के क्षेत्रफल अथवा कोणों द्वारा लोगों को आर्थिक आँकड़ों के महत्व का पूरा-पूरा ज्ञान नहीं हो पाता। ऐसी स्थिति में एक ही आरेख को भिन्न-भिन्न रंगों में दिखाकर उसके घटकों के परस्पर महत्व को आँकने के लिए घटक-चार्ट बनाये जाते हैं। ऐसे एक चार्ट का नमूना नीचे दिया जाता है। (DIAGRAM)

Concave function
अवतल फलन
ऐसा फलन जिसका आरेख एक वृत्त या खोखले गोलक के भीतरी खंड की तरह होता है। कोई फलन y=f(x) तब अवतल फलन होता है जब इसका दूसरा अवकलन y" अर्थात् (d^2 y)/dx^2 का मान f के किसी अंतराल (a, b) के प्रत्येक बिन्दु पर ऋणात्मक होता है। इस मान-अंतराल में फलन का ग्राफ केन्द्र की ओर अवतल होता है जैसा कि नीचे के चित्र में दिखाया गया है :— (DIAGRAM)
">

Concomitant variable
सहगामी चर
सहगामी चर ऐसे चर होते हैं जो किसी मॉडल में एक साथ परिवर्तित होते हैं और एक-दूसरे पर आश्रित नहीं होते।
आर्थिक विश्लेषण में कभी-कभी आश्रित चर और स्वतंत्र चर का भेद करना कठिन होता है। उस विवाद से बचने के लिए सहगामी चरों का प्रयोग किया जाता है।

Concurrent deviation
संगामी विचलन
काल श्रेणियों में अल्पकालीन उच्चावचन की अवस्था में एक बिंदु से निकलकर साथ-साथ होने वाला विचलन।
कार्ल पियर्सन के सहसंबंध गुणांक की अपेक्षा इस प्रकार के विचलन का प्रयोग करना काफ़ी आसान है।
जब हम यह देखना चाहते हैं कि दो चर एक ही दिशा में गतिमान है या विपरीत दिशा में तब हम संगामी या सहगामी विचलनों का उपयोग करते है।
संगामी विचलन के गुणांक का परिकलन निम्म सूत्र से किया जाता है- Υ^c=±√(12c-n!)/n
यहां c संगामी विचलनों की संख्या है, n कुल विचलनों की संख्या है और n=N-1 है अर्थात् कुल संख्या से एक कम है, क्योंकि पहले पद का विचलन नहीं होता।

Conditional cost minimization
प्रतिबंधित लागत न्यूनीकरण
न्यूनतम लागत पर उत्पादन प्राप्त करने की प्रक्रिया। जब कोई उत्पादक किसी निर्गत x का उत्पादन x_1,x_2,x_3,………x_n आगतों द्वारा करना चाहता है तब उसका उत्पादन फलन इस प्रकार होता है:— x=f(x_1,x_2,x_3,………x_n)
प्रतिबंधित लागत न्यूनीकरण की संकल्पना के अन्तर्गत हम उपर्युक्त फलन को यों भी लिख सकते हैं:— c= ∑n Pi xi यहाँ pi (i= 1, 2, ..........., n ) आगत की कीमतें हैं । यदि c दिया हो तो उत्पादक x̅ को c फलन के अन्तर्गत अधिकतम बनाना चाहेगा और यदि x̅ दिया हैं तो c को प्रतिबंध x̅ फलन के अन्तर्गत न्यूनतम बनाना चाहेगा।

Cone solution
शंकु हल
रैखिक प्रोग्रामन समस्या में व्यावहार्य हल के परिबद्ध उत्तल सेट के चरम बिन्दु शंकु बिन्दु कहलाते हैं और इनसे संबंधित चरों का मान शंकु हल कहलाता है।
रैखिक प्रोग्रामन समस्या में हलों की खोज बीजगणितीय विधि तथा ज्यामितीय विधि, दोनों प्रकार से की जाती है, पर उनमें समन्वय आवश्यक है। बीजगणितीय विधि से प्राप्त मूल हलों की संख्या तथा ज्यामितीय विधि से प्राप्त शंकु हलों की संख्या में एक-एक संगतता पाई जाती है।
रैखिक प्रोग्रामन समस्या का अनुकूलतम हल, इन्हीं सीमित शंकु हलों में से ही कोई एक (यदि कई हल हों) होता है ।

Confidence limit
विश्वसनीयता सीमा
आकलक के सही होने का प्रतिशत जो किसी पूर्व निर्दिष्ट संख्या द्वारा किया जाता है जैसे 95 प्रतिशत सही आदि।
इसे विश्वसनीयता गुणांक भी कहा जाता है। इसका आधार घटना की प्रायिकता पर निर्भर करता है।
कभी-कभी इन्हें विश्वास्यता सीमा (fiducial limits) भी कहा जाता है। किन्तु इन दोनों में भेद है और जरूरी नहीं ये दोनों सीमाएं समरूप हों।


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