logo
भारतवाणी
bharatavani  
logo
Knowledge through Indian Languages
Bharatavani

Paribhasha Kosh (Arthmiti, Janankiki, Ganitiya Arthshastra Aur Aarthik Sankhyiki) (English-Hindi)
A B C D E F G H I J K L M N O P Q R S T U V W X Y Z

Conjugate transpose
संयुग्मी परिवर्त
यह एक ऐसी विशेष स्थिति होती है जिसमें किसी आव्यूह के अवयवों का संबंध जटिल संख्याओं के क्षेत्र में होता है।
एक आव्यूह A* को आव्यूह A का तब संयुग्मी परिवर्त कहा जाता है जब इसमें एक शर्त यह होती है कि आव्यूह A* की प्रविष्टि (i, j) आव्यूह A की प्रविष्टि (j, i) की सम्मिश्र संयुग्मी होती है।
इसके संकल्पना के अनुसार दोनों आव्यूहों का परस्पर संबंध निम्न-लिखित समीकरण द्वारा दिखाया जाता है।
(AB)* = B* A* (ABC)* = C* B* A*, Fld/eof >

Consistency
संगति
प्रायिकता सिद्धांत में जब कोई बात बिलकुल निश्चित होती है अर्थात् जब किसी बात की प्रायिकता एक के निकटतम होती है तब आकलित मान और समष्टि मानों का अंतर बहुत छोटा होता है, और यदि हम किसी प्रतिदर्श का आकार बहुत बढ़ा देते हैं तो यह अन्तर बिलकुल नगण्य तथा शून्य हो जाता है। दूसरे शब्दों में इन दोनों की संगति हो जाती है।
प्रायिकता बंटन में संगति की संकल्पना के आधार पर ही हम बहु समाश्रयण और सहसंबंधों का अभिकलन करते हैं।

Consistent estimator
संगत आकलक
संगत आकलक वह आकलक है जो प्रतिदर्श परिमाण n के अपरिमित होने की स्थिति में वास्तविक मान के बराबर हो।
किसी प्रतिदर्शज का वास्तविक मान ज्ञात न होने पर उसका आकलक प्रायः प्रतिदर्श के आँकड़ों के आधार पर ज्ञात किया जाता है। इस प्रकार से ज्ञात किए गए आकलकों की सुष्ठता की कसौटी में एक कसौटी उनका संगत होना भी है।
प्रायिकता की शब्दावली में हम उस आकलक को संगत आकलक कहेंगे जिसके मान और वास्तविक मान का अंतर ∑ (अत्यल्प राशि) से कम होने की प्रायिकता 1-n ( n एक दूसरी अत्यल्प राशि है) के बराबर हो, अर्थात् P(lμ -x1
संगत आकलक अपने सीमांत रूप में सदा अनभिनत होता है और प्रतिदर्श परिमाण की वृद्धि के साथ-साथ उसकी परिशुद्धता में भी बढ़ोत्तरी हो जाती है।

Consistent system
संगत प्रणाली
n अज्ञात समीकरणों वाली असमांगी रैखिक प्रणाली है जिसके एक या अधिक हल हों। यदि किसी प्रणाली का शून्य या कोई हल न हो तब इसे असंगत प्रणाली कहा जाता है।
ऐसी प्रणाली तभी तभी संगत होती है जब इसके गुणांक आव्यूह की कोटि (rank) संबंधित आव्यूह की कोटि के बराबर होती है।
संगत प्रणाली का उपयोग तीन प्रकार से होता है:- (i) सांख्यिकी ∕ गुण-अध्ययन में, (ii) आगत-निगर्त विश्लेषण में तथा (iii) आव्यूह-गणित में।
गुण-अध्ययन में आवृत्तियों के मध्य कई असमिकाएं होती हैं, जिनके संतुष्ट होने पर ही कोई भी आवृत्ति ऋणात्तमक होती है।
आगत-निर्गत विश्लेषण में ऐसा मॉडल संगत प्रणाली वाला माना जाता है जिसमें उत्पादन के बदलने पर श्रम-रोजगार का स्तर भी परिवर्तित हो जाये बशर्ते प्राविधिक गुणांक समान तथा दृढ़ बने रहें।

Constant
स्थिराँक
ऐसा संकेत जिसका मान विश्लेषण के दौरान स्थिर या एक जैसा रहता है।

Constraint
व्यवरोध
व्यवरोध का तात्पर्य ऐसे बाह्य परिसीमन या शर्त है जो किसी समुच्चय या फलन को व्यवहार्य बनाने से पहले पूरी करनी होती हैं।
जैसे, किसी साधन का प्रयोग उसकी पूर्ति की मात्रा से अधिक नहीं हो सकता अथवा ‘किन्हीं विचरों की मूल्यों का माध्य शून्य होगा’ अथवा ‘कोई निर्गत ऋणात्मक नहीं हो सकता’ आदि।
आर्थिक मॉडल में इस प्रकार की शर्तों का बड़ा महत्व होता है और किसी भी आर्थिक प्रोग्राम के अधिकतमीकरण या न्यूनतमीकरण में ऐसे सभी व्यवरोधों की गणना पूरी तरह से करना आवश्यक होता है ताकि किसी भी वस्तुनिष्ठ फलन में किसी प्रकार की त्रुटि न रहे और उससे सही निष्कर्ष निकाला जा सके।

Consumption function
उपभोग फलन
राष्ट्रीय आय मॉडल में कीन्स द्वारा दिया गया उपभोग फलन जो इस प्रकार माना जाता है:— (1) Y=c+T_o+G_o (2) C = a + bY यहाँ उपभोग Y=राष्ट्रीय आय Io=निवेश Go=सरकारी खर्च

Contingency table
आसंग सारणी
बहुधा वर्गीकरण में एक समष्टि को कई प्रभागों में विभाजित किया जाता है तथा समष्टि के सदस्यों को गुण अनुसार दो से अधिक वर्गों में समूहित किया जाता है। मान लीजिए गुण A के A1 प्रविभाग A1, A2, A3.......A1 हैं और गुण B के m प्रविभाग B1, B2............Bm हैं। इन दो गुणों के आधार पर जो सारणी बनती है, उसे आसंग सारणी कहते हैं।
इसके मुकाबले जब समष्टि को गुण की विद्यमानता तथा अविद्यमानता के आधार पर दो वर्गों में विभाजित किया जाता है जैसे उत्कृष्ट, योग्य, अयोग्य, स्वस्थ, अस्वस्थ इत्यादि, तब इसे द्विधा वर्गीकरण कहा -जाता है।
आसंग सारणी की रूपरेखा निम्न प्रकार की होती है। (TABLE)

Continuous function
सतत फलन
ऐसा फलन जो अपने प्रक्षेत्र या प्रांत में प्रत्येक बिन्दु और अंक पर निरंतर या अटूट होता है।
इसमें किसी भी स्थान पर ‘छिद्र' या रंध्र नहीं होते और न ही इसमें कहीं पर कूदने या ‘फाँदने’ की प्रवृत्ति होती है।

Contour
समोच्च रेखा
किसी फलन की सतह को जब वक्रों द्वारा अनेक अनुभागों या खण्डों में बाँटा जाता है तब इसके धरातल से लेकर समतलों के आर-पार जाने वाली रेखाओं को समोच्च रेखा कहते हैं। यह रेखा ऐसे सभी संयोजनों का रेखापथ होती है।
समोच्च उत्पाद रेखा के प्रत्येक बिन्दु पर उत्पाद की सम मात्रा होती है। ऐसी समोच्च रेखा को समोत्पाद या स्थिर उत्पाद वक्र की संज्ञा भी दी जाती है।
जब एक उत्पाद-सतह क्षैतिज तल (विभिन्न समतल) पर खींची गई रेखाओं से अनेक अनुभागों में बाँटी जाती है तो ऐसी प्रत्येक रेखा को समोच्च उत्पाद रेखा कहते हैं।
समोच्च रेखा की ऊँचाई समान मानी जाती है क्योंकि इसका प्रत्येक बिन्दु एक जैसी मात्रा को दर्शाता है।


logo