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Paribhasha Kosh (Arthmiti, Janankiki, Ganitiya Arthshastra Aur Aarthik Sankhyiki) (English-Hindi)
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Contraception technology
गर्भ निरोधक प्रौद्योगिकी
गर्भ निरोधक उपायों या वस्तुओं संबंधी विज्ञान व तकनीकी विधाएं और उनका बड़े पैमाने पर विनिर्माण व प्रचार प्रसार।
परिवार नियोजन के लिए परंपरागत गर्भ निरोधकों के स्थान पर आधुनिक आविष्कारों के आधार पर कुछ वस्तुओं का बड़े पैमाने पर निर्माण जैसे, रासायनिक अथवा हार्मोनिक गोलियाँ (Pills), विविध प्रकार के लूप (I.U.D.) इंजेक्शन आदि।
इनके संबंध में नए-नए अनुसंधान और गवेषणाएं की जा रही हैं जिनमें डॉक्टर, उद्योगपति, समाजविज्ञानी, आदि सभी सक्रिय सहयोग दे रहे हैं। इस सारे विज्ञान का अब गर्भ निरोध प्रौद्योगिकी के नाम से बड़ी तेजी से विकास हो रहा है।
इसका उद्देश्य यह है कि जनसंख्या विस्फोट को सस्ते दामों पर रोकने के कारगर और निश्चित उपाय ढूँढे जा सकें और साथ ही ये उपाय ऐसे होने चाहिए कि ये प्रयोगकर्ताओं के स्वास्थ्य पर किसी प्रकार का बुरा प्रभाव न डाल सकें।

Contraceptive
गर्भ निरोधक
ऐसी वस्तु या युक्ति जिसके माध्यम से या तो डिम्बाणु और शुक्रणु के मिलन पर रोक लगा दी जाये या शुक्र को नष्ट करके गर्भ का निवारण किया जा सके। गर्भनिरोधकों में गर्भपात, बंध्यकरण या पूर्ण संयम के उपाय शामिल नहीं किए जाते।

Contract curve
संकुचन वक्र
एक बाक्सनुमा वक्र जिसमें प्रतिस्थापन विधि द्वारा दो वस्तुओं के आबंटन के अधिकतम लाभ के उद्देश्य से अनधिमान वक्रों द्वारा दर्शाए गए क्षेत्र के अन्तर्गत मात्राओं के अनुपात या वस्तुओं की अदला-बदली को दिखाया जाता हैं।
संकुचन वक्र पर पहुँचकर हम एक ऐसी स्थिति में आ जाते हैं जब वस्तुओं के आदान-प्रदान से कोई और लाभ नहीं हो सकता। इस बिन्दु पर वस्तुओं का केवल पुनर्वितरण मात्र होता है।
संकुचन वक्र एक प्रकार का दक्षता बिन्दुओं का रेखापथ होता है जहाँ पहुँचकर वस्तुओं की उपयोगिताएं एक दूसरे पर निर्भर नहीं करतीं बल्कि पूर्णतः स्वतंत्र हो जाती हैं। यह रेखापथ संकुचन बिन्दु पर बहुत स्पष्ट बन जाता है जैसे कि नीचे चित्र में दिखाया गया है:— (DIAGRAM)

Conventional contraceptive
रूढ़ गर्भ निरोधक
इस पद का प्रयोग व्यापक रूप से ऐसे गर्भ निरोधक उपायों के लिए किया जाता है जिनका प्रयोग मैथुन अथवा संभोग के समय किया जाता है।
इसके अन्तर्गत निम्नलिखित उपाय शामिल हैं:— (i) मध्यपट अथवा डाइफ्राम तथा जैली (ii) निरोध (iii) ऐरोसोल फेन अथवा झागदार गोलियाँ (iv) शुक्रनाशक जैली तथा क्रीम (v) शुक्राणु नाशक (vi) फेनिल गोलियाँ (vii) डूश (viii) मैथुन अंतरामन अथवा निवर्तन (ix) आवर्तन प्रणाली आदि

Convergence
अभिसरण
जब किसी आर्थिक निकाय में कोई चर किसी निश्चित सीमा की ओर अग्रसर होता है, तो इस प्रक्रिया को अभिसरण कहते हैं।
निश्चित सीमा के परे चर के अग्रसर होने को अपसरण कहा जाता है।

Convex function
उत्तल फलन
कोई फलन y = f(x) तब उत्तल फलन माना जाता है जब इसके द्वितीय अवकलज y" अर्थात् (d_y^2)/〖dx〗^2 का मान के किसी अन्तराल (a, b) के प्रत्येक बिन्दु पर घनात्मक हो।
उपर्युक्त मान-अंतराल में फलन का ग्राफ केन्द्र की ओर उत्तल होता है जैसे नीचे के चित्र में दिखाया गया है:— (DIAGRAM)

उपर्युक्त मान-अंतराल में फलन का ग्राफ केन्द्र की ओर उत्तल होता है जैसे नीचे के चित्र में दिखाया गया है:— (DIAGRAM)

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Correlation
सहसंबंध
दो चरों के बीच संबंध या संबद्धता को सहसंबंध या सहविचरण कहते हैं।
अर्थात्, जब एक चर के मानों में परिवर्तन होने पर दूसरे चर में भी परिवर्तन होने की प्रवृत्ति हो तो हम कह सकते हैं कि उनमें सहसंबंध या सहविचरण है।
सहसंबंध मुख्यतः दो प्रकार का हो सकता है: (1) अनुलोम सहसंबंध, (2) विलोम सहसंबंध।

Correlation ratio
सहसंबंध अनुपात
आँकड़ों की समष्टि के किन्हीं दो गुणों के बीच समानता की मात्रा। सहसंबंध का अनुपात ज्ञात करने के लिए हम एक स्तंभ के माध्यों के विचरण और श्रृंखला के संपूर्ण विचरण के बीच अनुपात मापते हैं।
इसका सूत्र नीचे दिया जाता है :— N²y.x =स्तंभ माध्यों का विचरण/श्रृंखला का संपूर्ण विचरण

Correspondence principle
संगति सिद्धांत
इस सिद्धांत का प्रतिपादन प्रो∘ सेमुअलसन् द्वारा किया गया है। आर्थिक गतिकी की पूर्व धारणाओं और तुलनात्मक स्थैतिकी के सार्थक निष्कर्षों के बीच स्थिरता विश्लेषण की संगति को संगति सिद्धांत का नाम दिया गया है।
किसी प्रणाली के संदर्भ में जब संगत वक्रों और फलनों के बारे में हमारी जानकारी अधूरी होती है और हम संतुलन की स्थिति का प्रत्यक्ष रूप से निरूपण नहीं कर सकते तब इस सिद्धांत की सहायता से गतिकीय अर्थशास्त्र संबंधी परिकल्पनाओं के आधार पर हम तुलनात्मक स्थैतिक निष्कर्ष निकाल सकते हैं।

Cost benefit analysis
लागत हितलाभ विश्लेषण
किसी कार्यक्रम या योजना जैसे केन्द्रीय आयोजन प्रणाली में परियोजनाओं के चुनाव, अकाल, सूखे या अन्य प्राकृतिक प्रकोपों के समय किए जाने वाले राहत कार्यों या आर्थिक मंदी के समय रोजगार अथवा आय के पुनर्वितरण के कार्यों आदि की उपादेयता अर्थात् उस पर आने वाली लागत और उससे होने वाले लाभों का लेखा-जोखा या तखमीने की पद्धाति पर किया गया विश्लेषण।
इस प्रकार के विश्लेषण में कुछ ऐसे निदेशक सिद्धांत बनाये जाते हैं जिनके आधार पर साधनों का आबंटन किया जाता है। सामान्य नियम जिनका अनुपालन किया जाता है यह है कि किसी भी उपाय की सीमांत सामाजिक लागत उसके सीमांत सामाजिक लाभ के बराबर होनी चाहिए।
इस पद्धति की मुख्य समस्या यह है कि सामाजिक लाभ और सामाजिक लागत की संकल्पना इतनी अस्पष्ट है कि इनको आँकना या इनका मूल्यांकन करना व्यावहारिक दृष्टि से बहुत ही कठिन होता है।


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