महाराष्ट्र के प्रधान तीर्थ पण्ढरपुर में विष्णु की पूजा बिट्ठल अथवा बिठोबा के नाम से की जाती है। वहाँ मन्दिर में जाने वाले यात्री एक प्रकार के पद गाते हैं जिन्हें अभङ्ग कहते हैं। ये अभङ्ग लोकभाषा में रचे गये हैं, संस्कृत में नहीं। मुक्ताबाई (1300 ई.), तुकाराम तथा नामदेव (1425 ई.) के अभङ्ग प्रसिद्ध हैं।
अभय
भय का अभाव, अथवा जिसे भय नहीं है। राजा के लिए अभयदान सबसे बड़ा धर्म कहा गया है :
[राजाओं के लिए इससे बढ़कर कोई धर्म नहीं है कि वे युद्ध में प्राप्त धन ब्राह्मणों को दें तथा प्रजा को सदा के लिए अभय दान दे दें।]
अभयतिलक
न्यायदर्शन के एक आचार्य। इन्होंने 'न्यायवृत्ति' की रचना की है।
अभिक्रोशक
पुरुषमेध का एक बलि पुरुष। कदाचित् इसका अर्थ 'दूत' है। भाष्यकार महीधर ने इसका अर्थ 'निन्दक' बताया है।
अभिचार
शत्रु को मारने के लिए किया जानेवाला प्रयोग। अथर्ववेद में कहे गये मन्त्र-यन्त्र आदि द्वारा किया गया मारण, उच्चाटन आदि हिंसात्मक कार्य अभिचार कहलाता है। वह छः प्रकार का है : (1) मारण, (2) मोहन, (3) स्तम्भन, (4) विद्वेषण, (5) उच्चाटन और (6) वशीकरण। यह एक उपपातक है। श्येन आदि यज्ञों से अनपराधी को मारना पाप है।
अभिनवनारायण
शङ्कराचार्य द्वारा ऐतरेय एवं कौषीतकि उपनिषदों पर लिखे गये भाष्यों पर अनेक पण्डितों ने टीकाएँ लिखी हैं, जिनमें से एक अभिनवनारायण भी है।
अभिनिवेश
मन का संयोग-विशेष। इसके कई अर्थ हैं-मनोनिवेश, आवेश, शास्त्र आदि में प्रवेश आदि। मरण की आशंका से उत्पन्न भय के अर्थ में भी इसका प्रयोग होता है। इसकी गणना पञ्च क्लेशों में हैं :
आसक्ति, अनुराग और अभिलाष के लिए भी यह शब्द प्रयुक्त होता है। 'बलीयान् खलु मे अभिनिवेशः।' (अभिज्ञानशाकुन्तल)
[मेरा अनुराग बहुत बलवान् है। ] दे. 'पञ्चक्लेश'।
अभिप्रश्नी
तैत्तिरीय ब्राह्मण एवं वाजसनेयी संहिता में वर्णित पुरुषमेध यज्ञ की बलिसूची में 'अभिप्रश्नी' का उल्लेख हुआ है। यह शब्द 'प्रश्नी' के बाद एवं 'प्राश्नविवेक' के पहले उद्धृत है। भाष्यकार सायण एवं महीधर ने इसे केवल जिज्ञासु के अर्थ में लिया है। किन्तु यहाँ इस शब्द से कुछ वैधानिकता का बोध होता है। न्यायालय में वाद उपस्थित करने वाले को प्रश्नी (प्रश्निन्), प्रतिवादी को अभिप्रश्नी (अभिप्रश्निन्) और न्यायाधीश को प्राश्नविवेक कहा जाता था।
अभिशाप
किसी अपराध के लिए क्रोध उत्पन्न होने पर रुष्ट व्यक्ति द्वारा अनिष्ट कथन करना। ब्राह्मण, गुरु, वृद्ध एवं सिद्धों के अनिष्टकारक वचनों को शाप कहा जाता है :