कौषीतकि ब्राह्मण, कौषीतकि गृह्यसूत्र आदि के रचनाकार तथा ऋग्वेद के एक शाखा सम्पादक। इनका उल्लेख वंशसूची में शाङ्खायन आरण्यक के अन्त में हुआ है जहाँ गुणाख्य को उसका रचयिता कहा गया है। श्रौतसूत्र में शाङ्खायन का नामोल्लेख नहीं है। किन्तु गृह्यसूत्र सुयज्ञ शाङ्खायन को आचार्य के रूप में लिखता है। परवर्ती काल में शाख्यान शाखा के अनुयायी उत्तरी गुजरात में पाये जाते थे। शाङ्खायन तैत्तिरीय प्रातिशाख्य में काण्डमायन के साथ उल्लिखित हैं।
शाङ्खायन आरण्यक
ऋग्वेद का एक आरण्यक। इस आरण्यक का सम्पादन तथा अंग्रेजी अनुवाद प्रो० कीथ ने किया है।
शाङ्खायनगृह्यसूत्र
गृह्यसूत्रों के वर्ग में ऋग्वेद से सम्बन्धित शाङ्खायनगृह्यसूत्र प्रमुखतया प्रचलित है।
शाङ्खायनब्राह्मण
यह ऋग्वेद की कौषीतकि शाखा का ब्राह्मण है। कौषीतकिब्राह्मण नाम से भी यह ख्यात है।
शाङ्खायनश्रौतसूत्र
ऋग्वेदीय साहित्यान्तर्गत संहिता और ब्राह्मण के पश्चात् तीसरी कोटि का साहित्य। यह 48 अध्यायों में है। शाङ्खायन श्रौतसूत्र का शाङ्खायन ब्राह्मण से सम्बन्ध है। इस श्रौतसूत्र के पन्द्रहवें और सोलहवें अध्याय की रचना ब्राह्मण ग्रन्थों की भाषाशैली में हुई है। इससे इसकी प्राचीनता अनुमानित की जाती है। इसके सत्रहवें औऱ अठारहवें अध्याय का सम्बन्ध कौषीतकि आरण्यक के पहले दो अध्यायों के साथ घनिष्ठ प्रतीत होता है।
शाट्यायन
शाट्य के गोत्रज शाट्यायन का उल्लेख शतपथ ब्राह्मण (8.1.4.9;10.4.5.2) में दो बार हुआ है। जैमिनीय उपनिषद्ब्राह्मण में प्रायः इनका उल्लेख है। वंशसूची में ये ज्वालायन के शिष्य कहे गये हैं तथा सामविधान ब्रा० की वंशसूची में बादरायण के शिष्य उल्लिखित हैं। शाट्यायनों का उल्लेख सूत्रों में भरा पड़ा है। शाट्यायन ब्राह्मण तथा शाट्यायनक का भी उनमें उल्लेख है।
शाट्यायनब्राह्मण
आश्वलायन श्रौतसूत्र में शाट्यायन ब्राह्मण का उल्लेख है।
शाण्डिल्य
शण्डिल के वंशज शाण्डिल्य कहलाते हैं। अनेक आचार्यों का यह वंशबोधक नाम है। सबसे महत्त्वपूर्ण शाण्डिल्य वे हैं जो अनेक बार शतपथ ब्रा० में सुयोग्य विद्वान् के रूप में वर्णित हैं। इससे स्पष्ट है कि वे अग्निक्रियाओं (यज्ञों) के सबसे बड़े आचार्यों में थे, जिनसे (यज्ञों से) शतपथ ब्रा० का पाँचवाँ तथा उसके परवर्ती अध्याय भरे पड़े हैं। वंशब्राह्मण के दसवें अध्याय के अन्त में उन्हें कुशिक का शिष्य तथा वात्स्य का आचार्य कहा गया है। यह गोत्रनाम आगे चलकर बहुत प्रसिद्ध हुआ। विशेष विवरण के लिए दे० गोत्र प्रवरमञ्जरी।
शाण्डिल्यभक्तिसूत्र
यह एक विशिष्ट भागवत (वैष्णव) ग्रन्थ है। इसमें भक्तितत्त्व का विवेचन किया गया है। भक्तिशास्त्र के मौलिक ग्रन्थों में शाण्डिल्य तथा नारद के भक्तिसूत्र ही आते हैं।
शाण्डिल्यायन
शाण्डिल्य के गोत्रापत्य (वंशज) शाण्डिल्यायन कहलाते हैं। शतपथब्राह्मण में यह एक आचार्य का वंशसूचक नाम है। अवश्य वे तथा चेलक एक ही व्यक्ति हैं औऱ इसलिए यह सोचना ठीक है कि चैलिक जीवल उनके पुत्र का नाम था। यह सन्देहास्पद है कि वे प्रवाहण जैवलि के पितामह थे जो ब्राह्मण के बदले राजकुमार था।