सौ मायाशक्ति वाला। ऋग्वेद (7.18.21) में यह एक ऋषि का नाम है। इनका उल्लेख पराशर के पश्चात् तथा वसिष्ठ के पूर्व हुआ है। कुछ विद्वान् इन्हें वसिष्ठ का पुत्र कहते हैं।
शतरुद्रसंहिता
शिवपुराण के सात खण्डों में तीसरा खण्ड शतरुद्रसंहिता के नाम से ज्ञात है।
शतरुद्रिय
यजुर्वेद का रुद्र सम्प्रदाय संबन्धी एक प्रसिद्ध सूक्त। वैदिक काल में रुद्र (शिव) के क्रमशः अधिक महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त करने का यह द्योतक है। इसको रुद्राध्याय भी कहते हैं।
शतश्लोकी
शङ्कराचार्य विरचित ग्रन्थों में से एक ग्रन्थ शतश्लोकी है। इसमें वेदान्तीय ज्ञान के एक सौ श्लोक संगृहीत हैं।
शत्रुञ्जय (सिद्धाचल)
गुजरात प्रदेश का प्रसिद्ध जैन तीर्थ। कहा जाता है कि यहाँ आठ करोड़ मुनि मोक्ष प्राप्त कर चुके हैं। यह सिद्धक्षेत्र है। जैनों में पाँच पर्वत पवित्र माने जाते हैं : (1) रत्रुञ्जय (सिद्धाचल) (2) अर्बुदाचल (आबू) (3) गिरनार (सौराष्ट्र) (4) कैलास और (5) सम्मेत शिखर (पारसनाथ, बिहार में)।
शनिप्रदोषव्रत
शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी जिस किसी शनिवार के दिन पड़े उसी दिन इस व्रत का अनुष्ठान करना चाहिए। यह सन्तानार्थ किया जाता है। इसमें शिवाराधन तथा सूर्यास्तोपरान्त भोजन विहित है।
शनिवारव्रत
श्रावण मास में प्रति शनिवार को शनि की लौहप्रतिमा को पञ्चामृत से स्नान कराकर पुष्पों तथा फलों का समर्पण करना चाहिए। इस दिन शनि के नामों का उच्चारण विभिन्न शब्दों में किया जाय, यथा--कोणस्थ, पिंगल, बभ्रु, कृष्ण, रौद्र, अन्तक, यम, सौरि (सूर्यपुत्र), शनैश्वर तथा मन्द (शनि मन्दगामी है)। चारों शनिवारों को क्रमशः चावल तथा उरद की दाल, खीर, अम्बिली (मट्ठे में पकाया हुआ चावल का झोल) तथा पूड़ी समर्पित करनी चाहिए और व्रती को स्वयं खाना चाहिए। उक्त शनैश्वरस्तोत्र स्कन्दपुराण से ग्रहण किया गया है।
शनिव्रत
(1) शनिवार के दिन तैलाभ्यंग के साथ स्नान करके किसी ब्राह्मण (या भड्डरी को) तैल दान करना चाहिए। इस दिन गहरे श्याम पुष्पों से शनि का पूजन करना चाहिए। एक वर्षपर्यन्त इस व्रत का आचरण होता है। किसी लोहपात्र अथवा मृत्तिका के कलश में, जो तेल से भरा हो तथा काले वस्त्र से आवृत हो, शनैश्वर महाराज की लौहप्रतिमा का पूजन करना चाहिए। ब्राह्मण व्रती के लिए मन्त्र है---`शन्नो देवीरभष्टिय आपो भवन्तु पीतये, शं यो रभिस्रवन्तु नः।` किन्तु दूसरे वर्ण वाले लोगों के लिए पौराणिक मन्त्रों का विधान है। शनि की (जो `कोण` के नाम से भी विख्यात है, जो कदाचित् ग्रीक भाषा का शब्द है) प्रार्थना तथा स्तुति की जानी चाहिए। इसके आचरण से शनि ग्रह के समस्त दुष्प्रभाव दूर हो जाते हैं।
(2) प्रत्येक शनिवार को शनि ग्रह के प्रीत्यर्थ किया जाने वाला व्रत 'शनिव्रत' कहलाता है।
शपथ
वेदसंहिताओं में यह शाप का बोधक है। ऋग्वेद के एक परिच्छेद में यह सौगन्ध का द्योतक है (7.104.15)। परवर्ती साहित्य में शपथ का व्यवहार सौगन्ध के अर्थ में ही होता है। न्यायपद्धति में 'सत्य के प्रमाण' रूप से इसका प्रयोग होता है।
शबरशंकरविलास
वीर शैव सम्प्रदाय से सम्बन्धित कन्नड़ भाषा में रचित एक ग्रन्थ, जो षडक्षरदेव (1714 वि०) द्वारा प्रणीत है।