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Hindu Dharmakosh (Hindi-Hindi)

योगमत
भारत में योग विद्या से सम्बन्ध रखने वाले अनेक सम्प्रदाय प्रचलित हैं। उनमें प्रमुख हैं 'नाथ सम्प्रदाय' जिसका वर्णन पिछले अक्षरक्रम में हो गया है। योग का दूसरा साधक है 'चरनदासी पन्थ'। इसका भी वर्णन किया जा चुका है। योगमत के अन्तर्गत शब्दाद्वैतवाद भी आता है, क्योंकि किसी न किसी रूप में सभी योग मतावलम्बी शब्द की उपासना करते हैं। यह उपासना अत्यन्त प्राचीन है। प्रणव के रूप में इसका मूल तो वेदमन्त्रों में ही वर्तमान है। इसका प्राचीन नाम प्रणववाद अथवा स्फोटवाद है। इसका वर्णन आगामी पृष्ठों में किया जायेगा। वर्तमान कालका शब्दध्यानवादी राधास्वामी पन्थ भी ध्यानयोग का ही एक प्रकार है।

योगराज
काश्मीर शैवाचार्यों में योगराज एक विद्वान् थे। इन्होंने अभिनवगुप्त कृत 'परमार्थसार' (काश्मीर शैववाद पर लिखे गये 105 छन्दों के एक ग्रन्थ) का भाष्य प्रस्तुत किया है। इनके 'परमार्थसारभाष्य' का अंग्रेजी अनुवाद डा० बार्नेट ने प्रस्तुत किया है।

योगवार्तिक
सोलहवीं शताब्दी के मध्य विज्ञानभिक्षु ने योगसूत्रों की एक व्याख्या लिखी जो 'योगवार्तिक' कहलाती है।

योगवासिष्ठ रामायण
प्रचलित अद्वैत वेदान्तीय ग्रन्थों में 'योगवासिष्ठ रामायण' का विशिष्ट स्थान है। यह तेरहवीं-चौदहवीं शताब्दी में रचे गये संस्कृत ग्रन्थों में से एक है। यह अध्यात्मरामायण के समानान्तर है, क्योंकि इसमें राम और वसिष्ठ के संवाद रूप में वेदान्त के सिद्धान्तों पर प्रकाश डाला गया है। यह बड़ा विशालकाय 32000 पद्यों का ग्रन्थ है। इसमें अद्वैत वेदान्त की शिक्षा के साथ सांख्य के विचारों का मिश्रण भी प्राप्त है। योग की महत्ता पर भी इसमें बल दिया गया है। इसकी रचनातिथि 1300 ई० के लगभग अथवा और पूर्व हो सकती है।

योगसारसंग्रह
सोलहवीं शताब्दी के मध्य आचार्य विज्ञानभिक्षु द्वारा रचित एक उपयोगी योगविषयक ग्रन्थ।

योगसूत्र
पतञ्जलि मुनि द्वारा रचित योगशास्त्र की मौलिक कृति। विद्वानों ने इसका रचना काल चौथी शताब्दी ई० माना है। यह योग उपनिषदों के बाद की रचना है। विशेषार्थ दे० 'योग (दर्शन')।

योगसूत्रभाष्य
यह भाष्य 7वीं या 8वीं शताब्दी में रचा गया है। कुछ लोग इसके लेखक का नाम वेदव्यास बताते हैं। परन्तु इस वेदव्यास तथा महाभारत के रचयिता वेदव्यास को एक नहीं समझना चाहिए। इस भाष्य का अंग्रेजी अनुवाद तथा परिचय उड्स् महोदय ने लिखा है। उन्होंने इसकी दार्शनिक शैली की प्रशंसा की है।

योगिनी
भारतीय लोककथाओं में योगी प्रायः जादूगर के रूप में प्रदर्शित हुए हैं। जादू की ऐसी शक्ति रखनेवाली साधिका स्त्री 'योगिनी' (जादूगरनी) के रूप में वर्णित है। शिवशक्तियाँ अथवा महाविद्याएँ भी योगिनी के रूप में कल्पित की गयी हैं। योगिनियों की चौसठ संख्या बहुत प्रसिद्ध हैं। चौसठ योगिनियों के कई प्राचीन मन्दिर हैं जिनमें भेड़ाघाट (त्रिपुरी-जबलपुर), खजुराहों आदि के मन्दिर विशेष उल्लेखनीय हैं।

योगिनीतन्त्र
वाममार्गी शाक्त शाखा का 16वीं शताब्दी का यह ग्रन्थ दो भागों में उपलब्ध है। पहला भाग सभी तान्त्रिक विषयों का वर्णन करता है, दूसरा भाग वास्तव में 'कामाख्यामाहात्म्य' है। इस पर वाममार्ग का विशेष प्रभाव है।

योगी
योगमत पर चलने वाले, योगाभ्यास करने वाले व्यक्ति योगी कहलाते हैं। प्रायः हठयोगियों के लिए साधारण जनता में यह शब्द प्रयुक्त होता है।


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