षष्ठी, सप्तमी, संक्रान्ति अथवा किसी रविवार के दिन इस व्रत का अनुष्ठान प्रारम्भ होता है और एक वर्ष तक चलता है। स्वर्ण, रजत अथवा काष्ठ की सूर्य तथा निक्षुभा (सूर्यपत्नी) की प्रतिमाओं को उपवास करते हुए घी इत्यादि पदार्थों से स्नान कराकर होम तथा पूजन करना चाहिए। सूर्यभक्तों को भोजन कराना चाहिए। इस व्रत का फल यह है कि मनुष्य़ के समस्त संकल्प तथा इच्छाएँ पूर्ण होती हैं तथा सूर्य और अन्य लोकों की प्राप्ति होती है।
निगम
ज्ञान की वह पद्धति जो अन्ततोगत्वा साक्षात् अनुभूति पर आधारित है, निगम कहलाती है। इसीलिए स्वयं साक्षात्कृत (अनुभूत) वेदों को निगम कहते हैं। इससे भिन्न ज्ञान की जो पद्धति तर्क प्रणाली पर अवलम्बित है वह आगम कहलाती है। इसीलिए दर्शनों को आगम कहते हैं। इस परम्परा में बौद्ध और जैन दर्शन प्रमुखतः आगमिक हैं। हिन्दू धर्म-दर्शनपरम्परा निगमागम का समन्वय करती है।
निगमपरिशिष्ट
कात्यायनरचित अनेक पद्धति और परिशिष्ट ग्रन्थ यजुर्वेदीय श्रौतसूत्र के अन्तर्गत हैं। कई स्थलों पर इनमें 'निग्मपरिशिष्ट' एवं 'चरणव्यूह' ग्रन्थों का भी नाम्मोल्लेख है।
निघण्टु
वेद के अर्थ को स्पष्ट करने के सम्बन्ध में दो अति प्राचीन ग्रन्थ हैं। एक है निघण्टु तथा अन्य है यास्क का निरुक्त। निघण्टु शब्द की व्युत्पत्ति प्रायः इस प्रकार से की जाती है : 'निश्चयेन घटयति पठति शब्दान् इति निघण्टुः।' इसमें वैदिक पर्याय शब्दों का संग्रह है। इसके निघण्टु नाम पडने का एक कारण यह भी बतलाया जाता है कि इस कोश में उन शब्दों का संग्रह है जो मन्त्रार्थ के निगमक अथवा ज्ञापक हैं। इन शब्दों का रहस्य जाने बिना वेदों का यथार्थ आशय समझ में नहीं आ सकता। निघण्टु पाँच अध्याओं में विभक्त है। प्रथम तीन अध्यायों में एकार्थक, चतुर्थ में अनेकार्थक तथा पञ्चम में देवतावाचक शब्दों का विशेष रूप से संग्रह किया गया है। इसी निघण्टु पर यास्क का निरुक्त लिखा गया है।
निजगुणशिवयोगी
निजगुणयोगी अथवा निजगुण शिवयोगी एक ही व्यक्ति के दो नाम हैं। ये वीरशैव संप्रदाय के एक आचार्य थे। इन्होंने 'विवेकचिन्तामणि' नाम का शैव विश्वकोश तैयार किया था। इनका प्रादुर्भावकाल सत्रहवीं शती वि० है।
नित्यपद्धति
आचार्य रामानुज रचित यह एक ग्रन्थ है।
नित्यवाद
यह वेदान्त का एक सिद्धान्त है। इसके अनुसार वस्तुसत्ता स्थायी और निश्चल है। संसार में दिखाई पड़नेवाला परिवर्तन और विध्वंस प्रतीयमान अथवा अवास्तविक है। इस प्रकार वस्तुसत्ता की नित्यता में विश्वास रखनेवाला यह वाद है।