चन्द्र या चन्द्रमा सौर मण्डल में पृथ्वी का उपग्रह है। ऋग्वेद के पुरुषसूक्त के अनुसार यह विराट् पुरुष के मन से उत्पन्न हुआ। इसलिए यह मन का स्वामी है।
चन्द्रकलातन्त्र
दक्षिणाचार के अनुयायी विद्यानाथ ने, जिन्हें लक्ष्मीधर भी कहते हैं, 'सौन्दर्य लहरी' के 31 वें श्लोक की टीका में 64 तन्त्रों वी तालिका के साथ-साथ दो और सूचियाँ दी हैं। प्रथम में 8 मिश्र तथा द्वितीय में 5 शुभ तन्त्र हैं। उनके अन्तर्गत 'चन्द्रकलातन्त्र' मिश्र तन्त्र है।
चन्द्रकूप
कुरुक्षेत्रान्तर्गत ब्रह्मसर सरोवर के मध्य में बड़े द्वीप पर यह अति प्राचीन पवित्र स्थान है। यह कूप कुरुक्षेत्र के चार पवित्र कुओं में गिना जाता है। कूप के साथ एक मन्दिर है। कहा जाता है कि युधिष्ठिर ने महाभारत युद्ध के बाद यहाँ पर एक विजयस्तम्भ बनवाया था। वह स्तम्भ अब यहाँ नहीं है।
चन्द्रज्ञान आगम
चन्द्रज्ञान को चन्द्रहास भी कहते हैं। यह एक रौद्रिक आगम है।
चन्द्रग्रहण
पृथ्वी की छाया (रूपक अर्थ में छाया राक्षसी का पुत्र राहु अर्थात् अन्धकार) जब चन्द्रमा पर पड़ती है तब उसे चन्द्रग्रहण कहते हैं। इस पर्व पर नदीस्नान तथा विशेष जप-दान-पुण्य करने का विधान है। यह धार्मिक कृत्य नैमित्तिक माना गया है।
चन्द्रनक्षत्रव्रत
सोमवार युक्त चैत्र की पूर्णिमा को इस व्रत का अनुष्ठान होता है। यह वार व्रत है। इसमें चन्द्रपूजन का विधान है। आरम्भ से सातवें दिन चन्द्रमा की रजतप्रतिमा किसी काँसे के बर्तन में रखकर उसकी पूजा की जाती है। चन्द्रमा का नामोच्चारण करते हुए 28 या 108 पलाश की समिधाओं से घी तथा तिल के साथ होम करना चाहिए।
चन्द्रभाग
एक नदी औऱ तीर्थ प्राचीन काल में चिनाव नदी (पंजाब) को चन्द्रभागा कहते थे। जहाँ यह सिन्धु में मिलती थी वहाँ चन्द्रभागातीर्थ था। यहाँ पर कृष्ण के पुत्र साम्ब ने सूर्यमन्दिर की स्थापना की थी। मुसलमानों द्वारा इस तीर्थ के नष्ट कर देने पर उत्कल में इस तीर्थ का स्थानान्तरण हुआ। इस नाम की एक छोटी नदी समुद्र (बंगाल की खाड़ी) में मिलती है। वही नवीन चन्द्रभागा तीर्थ स्थापित हुआ और कोणार्क का सूर्यमन्दिर बना। कोणार्क का सूर्यमन्दिर धार्मिक स्थापत्य का अद्भुत नमूना है।
चन्द्रमा
पृथ्वी का उपग्रह। वेद में इसकी उत्पत्ति का वर्णन इस प्रकार पाया जाता है: