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Hindu Dharmakosh (Hindi-Hindi)

गीतासार
भगवान् कृष्ण ने अर्जुन को जो उपदेश किया है वह गरुड पुराण (ध्याय 233) में 'गीतासार' के नाम से प्रसिद्ध है। मोक्ष के लिए समस्त योग, ज्ञान आदि के प्रतिपादक शास्त्रों का सार इसमें संक्षेप से संगृहीत है।

गुटका
कबीरपंथी सम्प्रदाय की यह प्रार्थना पुस्तिका है। कबीर के अनुयायी नित्य पाठ में इसका उपयोग करते हैं।

गुड़तृतीया
इस व्रत का अनुष्ठान भाद्र शुक्ल तृतीया को होता है। पार्वती इसकी देवता हैं। पुष्पों को गुड़ अथवा पायस (खीर) के साथ भगवती को समर्पण करना चाहिए।

गुण
वैशेषिक दर्शन के अनुसार पदार्थ छः हैं--द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, विशेष और समवाय। अभाव भी एक पदार्थ कहा गया है। इस प्रकार पदार्थ सात हुए।
द्रव्याश्रयी (द्रव्य में रहने वाला), कर्म से भिन्न और सत्तावान्, जो हो, वह गुण है। गुण के चौबीस भेद हैं : 1. रूप, 2. रस 3. गन्ध 4. स्पर्श 5. संख्या 6. परिमाण 7. पृथक्त्व 8. संयोग 9. विभाग 10. परत्व 11. अपरत्व 12. बुद्धि 13. सुख 14. दुःख 15. इच्छा 16. द्वेष 17. यत्न 18. गुरुत्व 19. द्रवत्व 20. स्नेह 21. संस्कार 22. धर्म 23. अधर्म और 24. शब्द। दे० भाषापरिच्छेद।
शाक्त मतानुसार प्राथमिक सृष्टि की प्रथम अवस्था में शक्ति का जागरण दो रूपो में होता है, क्रिया एवं भूति तथा उसके आश्रित छः गुणों का प्रकटीकरण होता है। वे गुण हैं--ज्ञान, शक्ति, प्रतिभा, बल, पौरुष एवं तेज। ये छहों मिलकर वासुदेव के प्रथम व्यूह तथा उनकी शक्ति लक्ष्मी का निर्माण करते हैं। छः गुणों में युग्मों के बदलकर संकर्षण, प्रद्युम्न एवं अनिरुद्ध (द्वितीय, तृतीय एवं चतुर्थ व्यूह) एवं उनकी शक्तियों का जन्म होता है आदि।
सांख्य दर्शन के अनुसार गुण प्रकृति के घटक हैं। इनकी संख्या तीन हैं। सत्त्व का अर्थ प्रकाश अथवा ज्ञान, रज का अर्थ गति अथवा क्रिया और तम का अर्थ अन्धकार अथवा जड़ता है। जिस प्रकार तीन धागों से रस्सी बँटी जाती है उसी प्रकार सारी सृष्टि तीन गुणों से घटित है। दे० सांख्यकारिका।

गुणरत्‍नकोष
आचार्य रामानुजचरित यह एक ग्रन्थ है।

गुणावाप्तिव्रत
यह फाल्गुन शुक्ल प्रतिपदा को प्रारम्भ होता है। एक वर्षपर्यन्त इसका अनुष्ठान होना चाहिए। शिव तथा क्रमशः चार दिनों तक आदित्य, अग्नि, वरुण और चन्द्रदेव की (शिव रूप में) पूजा होनी चाहिए। प्रथम दो रुद्र रूप में तथा अन्तिम दो कल्याणकारी शङ्कर रूप में अर्चित होने चाहिए। चारों दिन गेहूँ, तिल तथा यवादि धान्यों से होम का विधान है। आहार रूप में केवल दुग्ध ग्रण करना चाहिए। दे० विष्णुधर्मोत्तर पुराण, 3.137.1-13 (हेमाद्रि, 2.499-500 में उद्धृत)।

गुप्तकाशी
उत्तराखंड में रुद्रप्रयाग से 21 मील की दूरी पर स्थित। पूर्वकाल में ऋषियों ने भगवान् शङ्कर की प्राप्ति के लिए यहाँ तप किया था। कहते हैं बाणासुर की कन्या ऊषा का भवन यहाँ था। यहीं ऊषा की सखी अनिरुद्ध को द्वारका से उठा लायी थी। गुप्तकाशी में नन्दी पर आरुढ़, अर्धनारीश्वर शिव की सुन्दर मूर्ति है। एक कुंड में दो धाराएँ गिरती हैं, जिन्हें गङ्गा-यमुना कहते हैं। यहाँ यात्री स्नान करके गुप्त दान करते हैं।

गुप्तप्रयाग
उत्तराखंड का एक प्रसिद्ध तीर्थस्थल। यह हरसिल (हरिप्रयाग) से दो मील की दूरी पर स्थित है। झाला से आध मील पर श्यामप्रयाग (श्याम गङ्गा और भागीरथी का संगम) है। यहाँ से दो मील पर गुप्तप्रयाग है।

गुप्तगोदावरी
चित्रकूट के अन्तर्गत अनसूयाजी से छः मील तथा बाबूपुर से दो मील की दूरी पर गुप्त गोदावरी है। एक अँधेरी गुफा में 15-16 गज भीतर सीताकुण्ड है। इसमें सदा झरने से जल गिरता रहता है। यात्री इसमें स्नान करके गोदावरी के स्नानपुण्य का अनुभव करते हैं।

गुप्तारघाट
एक वैष्णव तीर्थ। शुद्ध नाम 'गोप्रतारतीर्थ'। अयोध्या से नौ मील पश्चिम सरयूतट पर है। फैजाबाद छाँवनी होकर यहाँ सड़क जाती है। यहाँ सरयूस्नान का बहुत माहात्म्य माना जाता है। घाट के पास गुप्त हरि का मन्दिर है।


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