logo
भारतवाणी
bharatavani  
logo
Knowledge through Indian Languages
Bharatavani

Hindu Dharmakosh (Hindi-Hindi)

कामव्रत
(1) केवल महिलाओं के लिए इसका विधान है। यह कार्तिक में प्रारम्भ होकर एक वर्ष पर्यन्त चलता है। इसमें सूर्य का पूजन होता है। हेमाद्रि के अनुसार यह स्त्रीपुत्रकामावाप्ति-उत्सव है।
(2) पौष शुक्ल त्रयोदशी को प्रारम्भ होकर तदनन्तर एक वर्ष तक इसका अनुष्ठान होता है। प्रत्येक त्रयोदशी को नक्त (रात्रिभोजन) करना चाहिए। चैत्र में सुवर्ण का अशोक वृक्ष तथा 10 अंगुल लम्बा इक्षुदण्ड इस मन्त्र के साथ दान करना चाहिए : 'प्रद्युम्नः प्रसीदतु'।
(3) किसी भी महीने की सप्तमी को यह व्रत किया जा सकता है। सुवर्चला (सूर्य की पत्नी) की इसमें पूजा होती है। मनोवांछित पदार्थों की इससे उपलब्धि होती है।
(4) पौष शुक्ल पञ्चमी को यह व्रत प्रारम्भ होता है। इसमें कार्तिकेय के रूप में भगवान् विष्णु की पूजा होती है। पञ्चमी को नक्त करना चाहिए। षष्ठी के दिन केवल एक समय का आहार, सप्तमी को पारण। ऐसा एक वर्ष पर्यन्त करना चाहिए। स्वामी कार्तिकेय की सुवर्ण-प्रतिमा तथा दो वस्त्र दान में देने चाहिए। इससे मनुष्य जीवन में समस्त कामनाओं को प्राप्त करता है। हेमाद्रि (व्रतखण्ड) के अनुसार यह 'कामषष्ठी' व्रत है।

कामाख्या देवी
कामाख्या शब्द की व्याख्या इस प्रकार की गया है : 'जो भक्तों की कामना को पूर्ण करती है अथवा भक्त साधकों द्वारा जिसकी कामना की जाती है वह 'कामा' है। जिसका 'कामा' नाम है वह 'कामाख्या' है।" कालिकापुराण (अ० 61) में इसका विस्तृत वर्णन पाया जाता है।
">

कामाख्या पीठ
यह भारत का प्रसिद्ध शक्तिपीठ तीर्थ असम प्रदेश में है। कामाख्या देवी का मन्दिर पहाड़ी पर है, अनुमानतः एक मील ऊँची इस पहाड़ी को 'नील पर्वत' भी कहते हैं। इस प्रदेश का प्रचलित नाम कामरूप है। तन्त्रों में लिखा कि करतोया नदी से लेकर ब्रह्मपुत्र नद तक त्रिकोणाकार कामरूप प्रदेश माना गया है। किन्तु अब वह रूपरेखा नहीं है। इस देश में सौभारपीठ, श्रीपीठ, रत्नपीठ, विष्णुपीठ, रुद्रपीठ तथा ब्रह्मपीठ आदि कई सिद्धपीठ हैं, 'कामाख्यापीठ' सबसे प्रधान है। देवी का मन्दिर कूचविहार के राजा विश्वसिंह और शिवसिंह का बनवाया हुआ है। इसके पहले के मन्दिर को बंगाली आक्रामक काला पहाड़ ने तोड़ डाला था। सन् 1564 ई० तक प्राचीन मन्दिर का नाम 'आनन्दाख्या' था, जो वर्तमान मन्दिर से कुछ दूरी पर है। पास में छोटा सा सरोवर है।
देवीभागवत (7 स्कन्ध, अ० 38) में कामाख्या देवी के माहात्म्य का वर्णन है। इसका दर्शन, भजन, पाठ-पूजा करने से सर्व विघ्नों की शान्ति होती है। पहाड़ी से उतरने पर गोहाटी के सामने ब्रह्मपुत्र नदी के मध्य में उमानन्द नामक छोटे चट्टानी टापू में शिवमन्दिर है। आनन्दमूर्ति को भैरव (कामाख्यारक्षक) कहते हैं। कामाख्यापीठ के सम्बन्ध में कालिकापुराण (अ० 61) में निम्नांकित वर्णन पाया जाता है :
शिव ने कहा, प्राणियों की सृष्टि के पश्चात् बहुत समय व्यतीत होने पर मैंने दक्षतनया सती को भार्यारूप में ग्रहण किया, जो स्त्रियों में श्रेष्ठ थी। वह मेरी अत्यन्त प्रेयसी भार्या हुई। ....अपने पिता द्वारा यज्ञ के अवसर पर मेरा अपमान देखकर उसने प्राण त्याग किया। मैं मोह से व्याकुल हो उठा और सती के मृत शरीर को कन्धे पर रखकर समस्त चराचर जगत् में भ्रमण करता रहा। इधर-उधर घूमते हुए इस श्रेष्ठ पीठ (तीर्थस्थल) को प्राप्त हुआ। पर्याय से जिन-जिन स्थानों पर सती के अंगों का पतन हुआ, योगनिद्रा (मेरी शक्ति=सती) के प्रभाव से वे पुण्यतम स्थल बन गये। इस कुब्जिकापीठ (कामाख्या) में सती के योनिमण्डल का पतन हुआ। यहाँ महामाया देवी विलीन हुई। मुझ पर्वत रूपी शिव में देवी के विलीन होने से इस पर्वत का नाम नीलवर्ण हुआ। यह महातुङ्ग (ऊँचा) पर्वत पाताल के तल में प्रवेश कर गया....।
इस तीर्थस्थल के मन्दिर में शक्ति की पूजा योनिरूप में होती है। यहाँ कोई देवीमूर्ति नहीं है। योनि के आकार का शिलाखण्ड है, जिसके ऊपर लाल रंग की गेरू के घोल की धारा गिरायी जाती है और वह रक्तवर्ण के वस्त्र से ढका रहता है। इस पीठ के सम्मुख पशुबलि भी होती है।

कामावाप्तिव्रत
कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को यह व्रत किया जाता है। इस तिथि में महाकाल (शिव) का पूजन समस्त मनोवाञ्छाओं को पूरा करता है।

कामिकागम
शैव आगमों में सबसे पहला आगम 'कामिक' है। इसमें समस्त शैव पूजा पद्धतियों का विस्तृत वर्णन है।

कामिकाव्रत
मार्गशीर्ष कृष्ण द्वितीया को इस व्रत का अनुष्ठान होता है। इस तिथि को सुवर्ण अथवा रजतप्रतिमा का, जिस पर चक्र अंकित हो, पूजन करना चाहिए। पूजन करने के पश्चात् उसे दान कर देना चाहिए।

काम्पिल
यह स्थान बदायूँ जिले में है। पूर्वोत्तर रेलवे की आगरा-कानपुर लाइन पर कायमगंज रेलवे स्टेशन है। कायमगंज से छः मील दूर काम्पिल तक पक्की सड़क जाती है। किसी समय काम्पिल (ल्य) महानगर था। यहाँ रामेश्वरनाथ और कालेश्वरनाथ महादेव के प्रसिद्ध मन्दिर हैं और कपिल मुनि की कुटी है।
जैनों के अन्तिम तीर्थङ्कर महावीर का समवशरण भी यहाँ आया था। यहाँ प्राचीन जैनमन्दिर है, जिसमें विमलनाथजी की तीन प्रतिमाएँ हैं। एक जैनधर्मशाला है। चैत्र और आश्विन में यहाँ मेला लगता है।

काम्पील
यजुर्वेदसंहिता के एक मन्त्र में 'काम्पीलवासिनी' सम्भवतः राजा की प्रधान रानी को कहा गया है, जिसका कर्त्‍तव्‍य अश्वमेध यज्ञ के समय मेधित पशु के पास सोना था। बिल्कुल ठीक अर्थ अनिश्चित है। वेबर एवं जिमर दोनों काम्पील एक नगर का नाम बतलाते हैं, जो परवर्ती साहित्य में काम्पिल्य कहलाया एवं जो मध्यदेश (आज के उत्तर प्रदेश) में दक्षिण पञ्चाल की राजधानी था।

काम्यकतीर्थ या काम्यक वन
कुरुक्षेत्र के सात पवित्र वनों में से एक। यह सरस्वती के तट पर स्थित है। यहीं पर पाण्डवों ने अपने प्रवास के कुछ दिन बिताये थे। यहाँ वे द्वैतवन से गये थे। ज्योतिसर से पेहवा जाने वाली सड़क के दक्षिण में लगभग ढाई मील पर कमोधा ग्राम है। काम्यक का अपभ्रंश ही कामोधा है। यहाँ ग्राम के पश्चिम में काम्यक तीर्थ है। सरोवर के एक ओर प्राचीन पक्का घाट है तथा भगवान् शिव का मन्दिर है। चैत्र शुक्ल सप्तमी को प्रति वर्ष यहाँ मेला लगता है।

कायव्यूह
योगदर्शन में अनेक शारीरिक क्रियाओं द्वारा मन को केन्द्रित करने का निर्देश है। जब योगशास्त्र से तन्त्रशास्त्र का मेल हो गया तो इस 'कायव्यूह' (शारीरिक यौगिक क्रियाओं) का और भी विस्तार हुआ, जिसके अनुसार शरीर में अनेक प्रकार के चक्र आदि कल्पित किये गये। क्रियाओं का भी अधिक विस्तार हुआ और हठयोग की एक स्वतन्त्र शाखा विकसित हुई, जिसमें नेति, धौति, वस्ति आदि षट्कर्म तथा नाडीशोधन आदि के साधन बतलाये गये हैं।


logo