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Hindu Dharmakosh (Hindi-Hindi)

उपनिषत्प्रस्थान
मध्वाचार्य रचित एक ग्रन्थ। इसमें उपनिषदों के आधार पर द्वैत मत का प्रतिपादन किया गया है।

उपनिषद्ब्राह्मण
उपनिषद्ब्राह्मण' और 'आश्रेयब्राह्मण' दोनो ही 'जैमिनीय' अथवा 'तलवकारब्राह्मण' में सम्मिलित हैं, जो सामवेद की तलवकार शाखा से सम्बन्धित हैं।

उपनिषद्भाष्य
शङ्कराचार्य के रचे हुए ग्रन्थों में 'उपिनषद्भाष्य' प्रसिद्ध हैं। जिन उपनिषदों का भाष्य उन्होंने लिखा है वे हैं : ईश, केन, कठ, प्रश्न, मुण्डक, माण्डूक्य, ऐतरेय, तैत्तिरीय, छान्दोग्य, बृहदारण्यक, नृसिंहपूर्वतापनीय तथा श्वेताश्वतर। शङ्कराचार्य के समान ही मध्वाचार्य ने भी दस उपनिषदों (ईश, केन, कठ, प्रश्न, मुण्डक, माण्डूक्य, ऐतरेय, तैत्तिरीय, छान्दोग्य एवं बृहदारण्यक) पर भाष्य लिखा है। इसी प्रकार रामानुजाचार्य आदि महानुभावों के भी उपनिषद्भाष्य प्रसिद्ध हैं।

उपनिषन्मङ्गलदीपिका
दोद्दय भट्टाचार्य के रचे नौ ग्रन्थों में से एक। दोद्दय भट्टाचार्य रामानुज मतानुयायी एवं अप्पय दीक्षित के समसामयिक थे। उनका काल सोलहवीं शताब्दी माना जाता है। इस ग्रन्थ में उपनिषदों के आधार पर विशिष्टाद्वैत मत का निरूपण किया गया है।

उपनिषदालोक
श्वेताश्वतर' एवं 'मैत्रायणीयोपनिषद्' यजुर्वेद की ही उपनिषदें कही जाती हैं। इन पर आचार्य विज्ञानभिक्षु ने 'उपनिषदालोक' नाम की विस्तृत टीका लिखी है।

उपनीत
जिसका उपनयन संस्कार हो चुका है। उपनीत होने के पूर्व के शौचाचार के नियम सरल होते हैं। उपनयन के पश्चात् उसको ब्रह्मचर्य आश्रम के नियमों का पालन करना होता है। स्मृतियों में अनुपनीत की छूटों और उपनीत के नियमों की विस्तृत सूचियाँ पायी जाती हैं।

उपपति
अवैध या गुप्त पति, जार, आचारहानि का कारण पति। उपपति की निन्दा की गयी है और परस्त्रीगमन के लिए उसको प्रायश्चित्‍ती बतलाया गया है।

उपपत्ति
किसी नियम की सङ्गति अथवा समाधान। सिद्धान्तप्रकरण के प्रतिपाद्य अर्थ की सिद्धि के लिए कही जाने वाली युक्ति को भी उपपत्ति कहते हैं। वेदान्तसार में कहा है :
श्रोतव्यः श्रुतिवाक्येभ्यो मन्तव्यश्चोपपत्तिभिः।
[आत्मा को वेदवाक्यों से सुनना चाहिए, युक्तियों से मानना चाहिए।]

उपपातक
पतन करने वाला कर्म, जो नरक में गिराता है, अथवा पाप के साथ जिसकी उपमा की जाय। विशेष पापों को भी उपपातक कहते हैं, ये उनचास प्रकार के हैं : (1) गोधनहरण, (2) अयाज्ययाजन, (3) परदारगमन, (4) आत्मविक्रय, (5) गुरुत्याग, (6) पितृत्याग आदि उपपातक होते हैं।

उपपुराण
अठारह पुराणों के अतिरिक्त अनेक उपपुराण भी हैं, जिनकी वर्णनसामग्री एवं विषय पुराणों के सदृश ही हैं। निम्नाङ्कित उपपुराण प्रसिद्ध हैं :
1. सनत्कुमार, 2. नरसिंह, 3. बृहन्नारदीय, 4. शिव अथवा शिवधर्म, 5. दुर्वासा, 6. कापिल, 7. मानव, 8. औशनस, 9. वारुण, 10. कालिका, 11. साम्ब, 12. नन्दिकेश्वर, 13. सौर, 14. पाराशर, 15. आदित्य, 16. ब्रह्माण्ड, 17. माहेश्वर, 18. भागवत, 19. वासिष्ठ, 20. कौर्म, 21. भार्गव, 22. आदि, 23. मुद्गल, 24. कल्कि, 25. देवी, 26. बृहद्धर्म, 27. परानन्द, 28. पशुपति, 29. हरिवंश
वैष्णव लोग भागवत पुराण को उपपुराण न मानकर महापुराण मानते हैं।
व्यासप्रणीत अठारह महापुराणों के सदृश अनेक मुनियों द्वारा प्रणीत अठारह उपपुराण भी कहे गये हैं :
अन्यान्युपपुराणानि मुनिभिः कथितान्यपि। आद्यं सनत्कुमारोक्तं नारसिंहं ततः परम्।। तृतीयं वायवीयञ्च कुमारेण च भाषितम्। चतुर्थं शिवधर्माख्यं साक्षान्नन्दीशभाषितम्।। दुर्वाससोक्तमाश्चर्यं नारदीयमतः परम्। नन्दिकेश्वरयुग्मञ्च तथैवोशनसेरितम्।। कापिलं वारुणं साम्बं कालिकाह्वयमेव च। माहेश्वरं तथा कल्कि दैवं सर्वार्थसिद्धिदम्।। पराशरोक्तमपरम् मारीचं भास्कराह्वयम्।
[मुनियों के द्वारा कहे गये अन्य उपपुराण हैं। सनत्कुमार द्वारा कहा गया प्रथम, नरसिंह द्वारा द्वितीय, कुमार द्वारा कहा गया वायवीय, साक्षात् नन्दीश द्वारा कहा गया शिवधर्माख्य, दुर्वासा द्वारा कहा गया आश्चर्य, नारदीय, नन्दिकेश्वर, औशनस, कापिल, वारुण, साम्ब, कालिका, माहेश्वर, कल्कि, दैव, पाराशर, मारीच और सौरपुराण ये अष्टादश उपपुराण कहे गये हैं।] दे० कूर्मपुराण, मलमासतत्व में उद्धृत।


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