भोजन के अतिरिक्त भोग्यवस्तु। इसका पर्याय है निवेश।
न जातु कामः कामनामुपभोगेन शाम्यति। (मनु 2.94)
[कभी भी काम की शान्ति कामों के उपभोग से नहीं हो सकती।]
उपमाता
माता के समान, धात्री। यह स्मृति में छः प्रकार की कही गयी है :
मातुःष्वसा मातुलानी पितृव्यस्त्री पितृष्वसा। श्वश्रूः पूर्वजपत्नी च मातृतुल्याः प्रकीर्तिताः।।
[माता की बहिन, मामी, चाची, पिता की बहिन, सास, बड़े भाई की पत्नी ये माता के समान होती हैं।]
ये माता के तुल्य ही पूजनीय हैं। इनका अनादर करने से पाप होता है।
उपमान
न्यायदर्शन के अनुसार तीसरा प्रमाण। गौतम ने चार प्रमाण माने हैं--प्रत्यक्ष, अनुमान, उपमान और शब्द। किसी जानी हुई वस्तु के सादृश्य से न जानी हुई वस्तु का ज्ञान जिस प्रमाण से होता है, वही उपमान है। जैसे, "नीलगाय गाय के सदृश होती है।"
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उपयम
विवाह, पाणिग्रहण। दे० 'विवाह'।
उपयाचित
इष्टसिद्धि के प्रयोजन से देवता के लिए देय वस्तु। उसका पर्याय है 'दिव्यदोहद'। प्रार्थित वस्तु को भी उपयाचित कहते हैं।
उपरतस्पृह
निःस्पृह, निष्काम, जिसकी धन आदि की इच्छा समाप्त हो गयी है। धन रहने पर भी धन की इच्छा से रहित व्यक्ति उपरतस्पृह कहा जाता है। यह साधक का एक विशिष्ट गुण है।
उपरति
विरक्त होना, विरति। जैसे, मार्कण्डेय पुराण (19.8) में कहा है :
विश्वस्योपरतौ शक्ते नारायणि! नमोस्तु ते।'
[विश्व की विरति में समर्थ हे नारायणि, तुमको नमस्कार है।] जितेन्द्रियों की विषयों से उपरति एक साधन माना जाता है।
उपराग
एक ग्रह पर दूसरे ग्रह की छाया, राहुग्रस्त चन्द्र, अथवा राहुग्रस्त सूर्य आदि। निकट में होने के कारण अपने गुणों का अन्य के गुणों में आरोप भी उपराग है। जैसे स्फटिकमणि के खम्भों में लाल फूलों के लाल रंग का आरोप। दुर्नय, व्यसन आदि भी इसके अर्थ हैं।
उपरिचर वसु
पाञ्चरात्र धर्म का प्रथम अनुयायी उपरिचर वसु था। इसकी कथा नारायणीय आख्यान में आयी है। यह शान्तिपर्व के 315 वें अध्याय से 351 वें अध्याय के अन्त तक वर्णित है। नारायणीयाख्यान शान्तिपर्व का अन्तिम प्रतिपाद्य विषय है। वह वेदान्त आदि मतों से भिन्न और अन्तिम ही माना गया है। इस मत के मूल आधार नारायण हैं। स्वायम्भुव मन्वन्तर में सनातन विश्वात्मा नारायण से नर, नारायण, हरि और कृष्ण चार मूर्तियाँ उत्पन्न हुईं। नर-नारायण ऋषियों ने बदरिकाश्रम में तप किया। नारद ने वहाँ जाकर उनसे प्रश्न किया। उत्तर में उन्होंने यह पाञ्चरात्र धर्म सुनाया। इस धर्म का पहला अनुयायी राजा उपरिचर वसु था। इसी ने पाञ्चरात्र विधि से नारायण की पूजा की।
उपलेख
ऋक्संहिता का एक प्रातिशाख्य सूत्र शौनक का बनाया कहा जाता है। प्रातिशाख्य सूत्र के आधार पर निर्मित 'उपलेख' नामक एक संक्षिप्त ग्रन्थ है। इसको प्रातिशाख्य सूत्र का परिशिष्ट भी कहते हैं।