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Hindu Dharmakosh (Hindi-Hindi)

इष्टिका
आजकल की 'ईंट'। वास्तव में यह यज्ञ (इष्टि) वेदी के चयन (चुनाव) में काम आती थी, अतः इसका नाम इष्टिका पड़ गया। बाद में इससे गृहनिर्माण भी होने लगा। चाणक्य ने इष्टिकानिर्मित भवन का गुण इस प्रकार बतलाया है :
कूपोदकं वटच्छाया श्यामा स्त्री इष्टिकालयम्। शीतकाले भवेदुष्णमुष्णकाले तु शीतलम्।।
ईंटों से निर्मित स्थान में पितृकर्म का निषेध है। श्राद्धतत्‍त्व में उद्धृत शङ्खलिखित। इष्टिका (ईंट) द्वारा देवालयों के निर्माण का महाफल बतलाया गया है :
मृन्मयात्कोटिगुणितं फलं स्याद् दारुभिः कृते। कोटिकोटिगुणं पुण्यं फलं स्यादिष्टिकामये।। द्विपरार्ध गुणं पुण्यं शैलजे तु विदुर्बुधाः।। (प्रतिष्ठातत्त्व)

इहामुत्र-फलभोगविराग
इह' इस संसार को और 'अमुत्र' (वहाँ) स्वर्ग को कहते हैं। सांसारिक भोग तथा स्वर्ग के भोग दोनों मोक्षार्थी के लिए त्याज्य हैं। दे० वेदान्तसार।


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