आजकल की 'ईंट'। वास्तव में यह यज्ञ (इष्टि) वेदी के चयन (चुनाव) में काम आती थी, अतः इसका नाम इष्टिका पड़ गया। बाद में इससे गृहनिर्माण भी होने लगा। चाणक्य ने इष्टिकानिर्मित भवन का गुण इस प्रकार बतलाया है :
कूपोदकं वटच्छाया श्यामा स्त्री इष्टिकालयम्। शीतकाले भवेदुष्णमुष्णकाले तु शीतलम्।।
ईंटों से निर्मित स्थान में पितृकर्म का निषेध है। श्राद्धतत्त्व में उद्धृत शङ्खलिखित। इष्टिका (ईंट) द्वारा देवालयों के निर्माण का महाफल बतलाया गया है :