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Definitional Dictionary of Indian Philosophy Vol.-II

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परंपरा मोक्ष
कर्म से सिद्ध होने वाला मोक्ष परंपरा मोक्ष है, क्योंकि कर्म से साक्षात् मोक्ष नहीं होता है। कर्म का विधान करने वाली श्रुतियाँ भी परंपरा मोक्ष को ही कर्म का फल निश्चित करती हैं। साक्षात् मोक्ष तो ज्ञान और भक्ति से ही होता है (अ.भा.पृ. 1198)।
(वल्लभ वेदांत दर्शन)

परोक्षवाद
अन्य को लक्ष्य कर अन्य का कथन परोक्षवाद है। अर्थात् किसी के संबंध में प्रत्यक्षतः कुछ न कर दूसरे व्याज से कुछ कहना परोक्षवाद है। जैसे, श्वेतकेतूपाख्यान में जीव को पुरुषोत्तम का अधिष्ठान बताने के उद्देश्य से ही जीव का अक्षर ब्रह्म से अभेद प्रतिपादित किया गया है, न कि जीव अक्षर ब्रह्म से वस्तुतः अभिन्न है। अक्षर ब्रह्म पुरुषोत्तम का अधिष्ठान है, यह पुष्टि मार्ग का सिद्धांत है। ऐसी स्थिति में जीव और अक्षर ब्रह्म को अभिन्न बताने में श्रुति का उद्देश्य यही है कि अक्षर ब्रह्म के समान ही जीव भी पुरुषोत्तम के अधिष्ठान के रूप में बोधित हो। ऐसा नहीं है कि जीव वस्तुतः अक्षर ब्रह्म से अभिन्न है। यही परोक्षवाद है (अ.भा.पृ. 1032)।
(वल्लभ वेदांत दर्शन)

पात
भक्ति मार्ग में भगवद्भाव से च्युत हो जाना पात है। भगवद् भाव से च्युति के कारण ही इन्द्रत्व आदि के प्राप्ति रूप आधिकारिक फल को भी पतन कहा गया है (अ.भा.पृ. 1289)।
(वल्लभ वेदांत दर्शन)

पुरुषार्थ
जीवन की सार्थकता के लिए मानव द्वारा अर्थ्यमान (प्रार्थित) होने से पुरुषार्थ कहा जाता है। यद्यपि अन्यत्र धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष नामक चार ही पुरुषार्थ माने गए हैं, किंतु वल्लभ दर्शन के अनुसार भक्ति भी एक स्वतंत्र पंचम पुरुषार्थ है और यह पुरुषार्थों में सर्वोत्कृष्ट है (भा.सु.11टी.स्क.10उ.पृ. 45)।
(वल्लभ वेदांत दर्शन)

पुरुषोत्तमानन्द
मानुषानन्द से लेकर ब्रह्मानन्द तक आनन्द की अनेक श्रेणियाँ हैं। इन सभी आनन्दों का उपजीव्य अर्थात् मूल स्रोत पुरुषोत्तमानन्द है। पुष्टि मार्ग में ब्रह्म से भी ऊँचा स्थान भगवान् पुरुषोत्तम का है। इसीलिए ब्रह्मानन्द से भी श्रेष्ठ पुरुषोत्तमानन्द माना गया है (अ.भा.पृ. 1184)।
(वल्लभ वेदांत दर्शन)

पुष्टि
भगवान् का अनुग्रह पुष्टि है। `पोषणं तदनुग्रहः`। प्रयत्न साध्य शास्त्र विहित ज्ञान एवं भक्ति रूप साधन से होने वाली मुक्ति मर्यादा है, तथा इन साधनों से रहितों को स्वरूप बल से होने वाली भगवत्प्राप्ति पुष्टि है। यद्यपि अक्षर प्राप्ति भी मुक्ति है जो ज्ञानियों को प्राप्त होती है तथा भगवत्प्राप्ति भी मुक्ति है जो भक्तों को प्राप्त होती है। इस प्रकार ज्ञान और भक्ति से प्राप्त होने वाली ये दोनों ही मुक्तियाँ मर्यादा कही गयी हैं। किन्तु स्वरूप बल अर्थात् भगवदनुग्रह से होने वाली भगवत्प्राप्तिरूप मुक्ति पुष्टि है (प्र.र.पृ. 74)।
(वल्लभ वेदांत दर्शन)

पुष्टिपुष्टि
अतिशय भाव को प्राप्त जो भगवदनुग्रह है, उससे साध्य मुक्ति पुष्टि-पुष्टि है। अर्थात् भगवान् में लय मर्यादामार्गीय मुक्ति है तथा भगवान की नित्य लीला में अंतःप्रवेश पुष्टिमार्गीय मुक्ति है। किन्तु पुष्टि मर्यादा को भी अतिक्रान्त करके जिसमें प्रवेश हो जाने पर भक्त के लिए पुष्टिमार्गीय परम तत्त्व अनुभव का विषय बने, वह पुष्टिपुष्टि है। यह भगवान् के अतिशय अनुग्रह से साध्य है (अ.भा.पृ. 1317)।
(वल्लभ वेदांत दर्शन)

पुष्टिभक्ति
भगवान् के विशेषानुग्रह से उत्पन्न भक्ति पुष्टिभक्ति है तथा भगवदनुग्रह को प्राप्त भक्त पुष्टि भक्त है (प्र.र.पृ. 81)।
(वल्लभ वेदांत दर्शन)

पुष्टिमार्ग
जिसमें विषय के रूप में विषय का त्याग हो अर्थात् विषय में ममता का विरह हो और विषय को भगवदीय समझ कर ग्रहण किया जाए, वह मार्ग पुष्टिमार्ग है। (प्र.र.पृ. 113)।
(वल्लभ वेदांत दर्शन)

पुष्टिमार्ग मर्यादा
विहित साधन के बिना ही मुक्ति प्रदान की भगवान् की इच्छा पुष्टिमार्ग की मर्यादा है (अ.भा.पृ. 1314)।
(वल्लभ वेदांत दर्शन)


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