साधारणतया 'ख्याति' का अर्थ प्रकाश या ज्ञान है। इस अर्थ में 'ख्याति' शब्द शब्दान्तर के साथ योगशास्त्र में बहुधा प्रयुक्त होता है। 'सत्वपुरुषान्यता ख्याति' अथवा 'विवेकख्याति' शब्द इसका प्रमुख उदाहरण हैं। [विवेक (= पृथग्भाव) की ख्याति (= ज्ञान)]। विवेकख्याति के लिए भी केवल ख्याति शब्द प्रयुक्त होता है जो 'प्रत्युदितख्याति' (व्यासभाष्य 4/33) आदि शब्दों में देखा जाता है। चित्त की उदयव्ययधर्मिणी वृत्ति ख्याति है, ऐसा प्राचीन सांख्याचार्य पंचशिख के 'एकमेव दर्शन ख्यातिरेव दर्शनम्' वाक्य (व्यासभाष्य 1/4 में उद्धृत) से जाना जाता है। सत्वगुण का धर्म जो प्रकाश है, उसके लिए भी ख्याति शब्द प्रयुक्त होता है (ख्याति क्रियास्थितिशीला गुणाः; व्यासभाष्य 3/44)।